जनसंख्या में संतुलन अपरिहार्य

जनसंख्या में संतुलन अपरिहार्य

नई दिल्ली। जनसँख्या की दृष्टि से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। अनुमान है कि अगले कुछ दशक में भारत की जनसंख्या चीन से भी अधिक हो जाएगी जबकि क्षेत्रफल के हिसाब से भारत बहुत पीछे रहेगा। प्राकृतिक संसाधनों की भी एक सीमा होती है।ऐसे में भारत को जनसँख्या नियन्त्रण और संतुलन की नीति बनानी होगी।देश और भावी पीढ़ी का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है। जनसंख्या नियंत्रण का संबन्ध विकास व संसाधनों से जुड़ा है। जनसंख्या व संसाधनों के बीच एक संतुलन होना चाहिए। अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि से संसाधनों का अभाव होने लगता है। सबसे पहले इसका प्रतिकूल प्रभाव गरीबों पर पड़ता है। जिस वस्तु का अभाव होता है, उसकी कीमत बढ़ जाती है। धनी वर्ग उनको खरीद सकता है जबकि गरीबों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है।

राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजय दशमी संबोधन में यह विषय उठाया था। उनका कहना था कि जनसँख्या में संतुलन की जरूरत होती है। हमने जनसंख्या असंतुलन के दुष्प्रभाव पहले भुगते हैं। जनसंख्या में पंथ और संप्रदायों के असंतुलन के कारण देश टूट गया। घुसपैठ के जरिए भी असंतुलन जैसी चीजें होती हैं। इस संतुलन पर ध्यान देना होगा।इसलिए जनसंख्या नियंत्रण पर एक व्यापक नीति तैयार की जानी चाहिए और उसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इससे किसी को भी छूट नहीं मिलनी चाहिए। जब जनसंख्या बढ़ती है तो बोझ बढ़ता है, लेकिन अगर जनसंख्या को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो वही जनसंख्या ताकत बन जाती है। दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन की सरकार ने अपने देश में परिवार नियोजन को कड़ाई से लागू किया था। आजकल चीन में बूढ़े लोग ज्यादा और युवा कम हैं। अब उसी चीनी सरकार को दो बच्चों के लिए आह्वान करना पड़ रहा है। यदि जनसंख्या घटती है तो समाज और कई भाषाओं के विलुप्त होने का डर भी रहता है। किसी भी आबादी में जाति, धर्म और पंथ के संतुलन की जरूरत होती है। भारत में जनसंख्या नियंत्रण का विषय दशकों पुराना है। पहले भी ये विषय उठता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विषय को उठाया था। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इस संबन्ध में एक मसौदा लेकर आई थी। संविधान की समवर्ती सूची में जनसंख्या नियंत्रण एवं परिवार नियोजन का विषय शामिल है। ऐसे में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा इससे संबंधित अधिनियम बनाने में कुछ भी अनुचित नहीं है। करीब दो दशक पहले भी संविधान समीक्षा आयोग ने केंद्र सरकार को इससे संबंधित निर्देश देते हुए कहा था कि वह जनसंख्या नियंत्रण संबंधी कानून बनाए।जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि विकास में बाधक भी साबित हो सकती है। इससे संसाधनों पर दबाव बढ़ता है। लोगों के जीवन स्तर में खराबी आती है। भारत के लिए यह स्थिति विशेष चिंता का विषय है। भारत के पास विश्व का मात्र दो प्रतिशत भूभाग है जबकि यहां पर विश्व की बीस प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। भारत की जनसंख्या वर्तमान में एक सौ पैंतीस करोड़ से अधिक है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले कुछ वर्षों में जनसंख्या के मामले में चीन भी भारत से पीछे हो जाएगा।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण के लिए विधि आयोग के परामर्श से जो कदम उठाए,वह सर्वथा उचित हैं। जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उसके अनुरूप संसाधनों की व्यवस्था संभव ही नहीं है। विपक्ष के राजनीतिक दल चाहे जो दावा करें, वह संसाधनों का सृजन नहीं कर सकते। जो लोग जनसंख्या नियंत्रण का विरोध करते है, उन्हें संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता के संबन्ध में भी विचार व्यक्त करना चाहिए। जनसंख्या का स्थिरीकरण होना अपरिहार्य है। 1951 से 1991 के बीच उत्तर प्रदेश की आबादी 120 प्रतिशत बढ़ी थी। आगे भी उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। तब प्रदेश की आबादी तेरह करोड़ थी। अब यह बढ़कर पच्चीस करोड़ से अधिक हो गई है। यह स्पष्ट है कि बढ़ती जनसंख्या से विकास व संसाधनों से संबंधित अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। हालांकि अभी समाज में दो वर्ग हैं। एक वर्ग ने स्वेच्छा से जनसंख्या नियंत्रण को स्वीकार किया है। यह उनका समाज व देश के प्रति सहयोग भी है। दूसरे वर्ग ने जनसंख्या नियंत्रण को स्वीकार नहीं किया है। इस कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। सहयोग करने वालों को प्रोत्साहन देना चाहिए जबकि ऐसा न करने वालों को उन्हीं सीमित संसाधनों से सुविधा प्रदान करते रहने का औचित्य नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण परिवार नियोजन से अलग है। सरकारी संसाधन और सुविधाएं उन लोगों को उपलब्ध हों, जो जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग कर रहे हैं। योगी सरकार की नई नीति में जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग करने वालों को प्रोत्साहन देने का प्रावधान है। योगी आदित्यनाथ ने इसका मसौदा जारी करते हुए कहा कि बढ़ती जनसंख्या समाज में व्याप्त असमानता समेत प्रमुख समस्याओं का मूल है। समुन्नत समाज की स्थापना के लिए जनसंख्या नियंत्रण प्राथमिक शर्त है। नई नीति में जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए जागरूकता प्रयासों के क्रम में स्कूलों में हेल्थ क्लब बनाये जाने का अभिनव प्रस्ताव है। डिजिटल हेल्थ मिशन की भावनाओं के अनुरूप नवजातों, किशोरों और वृद्धजनों की डिजिटल ट्रैकिंग की व्यवस्था की भी बात है। सभी समुदायों में जन सांख्यकीय संतुलन बनाये रखने, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं की सहज उपलब्धता, समुचित पोषण पर भी जोर दिया गया है।

इसे राज्य विधि आयोग ने तैयार किया है। इसमें जिनके दो ही बच्चे हैं, उन्हें प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव है। यह नीति कानून बनकर लागू हुई तो एक साल के भीतर सभी सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और स्थानीय निकायों में चयनित जनप्रतिनिधियों को शपथपत्र देना होगा कि वह इस नीति का उल्लंघन नहीं करेंगे। उल्लंघन पर निर्वाचन रद्द होगा। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि समाज के विभिन्न वर्गों को ध्यान में रखकर प्रदेश सरकार इस जनसंख्या नीति को लागू करने का काम कर रही है। जनसंख्या नीति का संबंध केवल जनसंख्या स्थिरीकरण के साथ ही नहीं है बल्कि हर एक नागरिक के जीवन में खुशहाली और समृद्धि का रास्ता उसके द्वार तक पहुंचाना भी है। सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत ने जनसंख्या असंतुलन पर चिंता जाहिर की है। सरसंघचालक ने कहा देश में उपलब्ध संसाधनों तथा भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का निर्धारण करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जनसंख्या का असंतुलन पर्यावरण को भी प्रभावित करता है। इसलिए जनसंख्या नीति समग्र रूप से संपूर्णता से विचार करते हुए बननी चाहिए और यानी सभी पर समान रूप से लागू होनी चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वर्ष 2015 में रांची में संपन्न अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में जनसंख्या असंतुलन पर प्रस्ताव पास कर चुका है। (हिफी)

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