पराये तो पराये, अपने भी दूर

पराये तो पराये, अपने भी दूर

नई दिल्ली। कोरोना महामारी जाते जाते लौट आयी। इस बार उसका रूप और ज्यादा विकराल है। पिछले साल इन्हीं दिनों में हमारा देश काफी संभला हुआ था। इस बार संक्रमितों की संख्या दोगुनी रफ्तार से बढ़ रही है। देशभर में कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार से झारखंड भी अछूता नहीं है। इस संकटकाल में लोगों को संक्रमण से बचने के लिए सामाजिक दूरी रखने की सलाह दी जाती है। यह सलाह बीमारी से बचाव के लिए है, लेकिन कई बार सामाजिक परिस्थितियों में इस सामाजिक दूरी का वीभत्स चेहरा भी नजर आता है। झारखंड के गोड्डा जिले में ऐसी ही एक तस्वीर सामने आई है। गोड्डा के नुंबट्टा गांव में करीलाल महतो की मौत के बाद कोरोना के डर से समाज का एक भी शख्स शव को कंधा देने आगे नहीं आया। करीलाल का इकलौता बेटा भी कोरोना संक्रमण की वजह से क्वारंटीन है।

घर में सिर्फ उनकी पत्नी, बहू और मासूम पोते हैं। ग्रामीणों के मुताबिक करीलाल को कुछ दिन पहले ही कोरोना टीका लगा था, जिसके बाद उनकी मौत हो गई। महामारियाँ पहले भी हुई थीं और काल के गाल में बहुत लोग समा गये थे। गांव के गांव बीरान हो गये थे। एलोपैथिक चिकित्सा तो शहरों तक ही सीमित थी। इतनी चीख पुकार के बाद भी लाशों को कंधा देने वाले थे। आज झारखण्ड के करीलाल महतो अकेले नहीं हैं जिनको कोई कंधा देने वाला नहीं मिला बल्कि ऐसे कयी लोग हैं। उनकी गिनती करना भी व्यर्थ है। पिछले साल कर्नाटक में कोरोना के चलते ही जान गंवाने वाले आठ दश लोगों के शव गड्ढे में फेंक दिये गये थे। किसी ने इसका वीडियो बना लिया था। वीडियो वायरल होने पर कर्नाटक सरकार ने जांच करायी। आमजनता से इसके लिए माफी भी मांगी गयी लेकिन इस मामले में ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता था। लाशों को गड्ढे में फेंकने वाले वे कर्मवीर थे कोरोना की लड़ाई फ्रंट लाइन पर लड रहे थे। संक्रमित होने की सबसे ज्यादा संभावना उन्हीं की थी। मन से या बेमन उनको पीपीई किट पहनकर कोरोना संक्रमितों को अस्पताल पहुंचाना पड़ता है और मरीज अगर जिंदगी की लड़ाई हार गया तो श्मशान घाट भी वही लेकर जाते हैं। पीपीई किट पहनने और सैनिटाइजेशन करने के बावजूद कितने ही चिकित्सकों, चिकित्सा कर्मियों और पुलिस व नगर निगमकर्मियों को कोरोना ने अपने संक्रमण पाश में जकड़ा है। इसके बावजूद कर्तव्य पथ पर लोग डटे हुए हैं। तो फिर इंसानियत के पथ पर चलने से लोग क्यों ठिठक रहे हैं?

झारखंड में कोरोना वायरस ने कहर ढा दिया है। यहां गत 10 अप्रैल को कोरोना वायरस संक्रमित 17 लोगों की मौत हो गई। सबसे ज्यादा 05 मौतें रांची में हुई थीं। इसके बाद सरकार की चिंता बढ़ गई। पूरे राज्य में संक्रमण की रफ्तार तेज होने की खबरें आ रही हैं। सरकार ने कोरोना गाइडलाइन के सख्ती से पालन किए जाने को लेकर निर्देश दे दिए हैं।

कोरोना को लेकर पूरे देश में ही चिंता बढ़ रही है। झारखंड में भी हालात खराब हैं। झारखंड में प्रतिदिन मिलने वाले कोविड मरीजों की संख्या दो हजार से पार हो गई। राज्य में 24 घंटे के भीतर कुल 2,373 मरीज मिले। शनिवार 10 अप्रैल को रांची में 904, पूर्वी सिंहभूम में 303, धनबाद में 148, हजारीबाग में 167, कोडरमा में 76, बोकारो में 67, रामगढ़ और गुमला में 51-51 कोरोना संक्रमित मिले। उस दिन तक राज्य में 01 लाख 37 हजार 88 कोरोना संक्रमित मरीज मिल चुके थे। एक्टिव केस की संख्या 12 हजार 293 पहुंच गयी। सबसे ज्यादा 05 मौतें रांची में हुईं हैं। पूर्वी सिंहभूम में 04, बोकारो व धनबाद में 02-02 मौतें, गिरिडीह, पाकुड़, पश्चिमी सिंहभूम और दुमका में भी 01-01 मौत हुई है। अब तक कोरोना से 1192 लोगों की मौत हो चुकी है। इस प्रकार झारखंड में कोरोना संक्रमण की रफ्तार काफी तेज हो गई है। राष्ट्रीय औसत 0.69 प्रतिशत की तुलना में राज्य में संक्रमण का 7 डेज ग्रोथ 01.07 प्रतिशत है। यह 7 डेज डबलिंग भी घटकर 65.12 दिन हो गया है। राष्ट्रीय औसत 101.41 दिन का है। रिकवरी रेट भी राष्ट्रीय औसत से नीचे है। राज्य में कोरोना का रिकवरी रेट 90.16 फीसद तो राष्ट्रीय औसत 90.80 प्रतिशत पर है।

झारखंड में हालात महाराष्ट्र जैसे राज्यों से फिर भी अच्छे हैं लेकिन घबराहट सब कहीं बढ गयी है। बदलते मौसम में सर्दी जुकाम, बुखार आता ही रहता है। यही लक्षण कोरोना के भी हैं। लोग बताने से भी परहेज करने लगे हैं। हालांकि ये सब बातें छिपाने की नहीं होतीं।संयुक्त परिवार रह नहीं गये हैं। कहीं कहीं तो पति पत्नी और एक दो छोटे बच्चे ही रहते हैं। कोरोना पाजिटिव ज्यादातर होम क्वारंटाइन कर अपना इलाज करते रहते हैं। उनको दवा आदि मंगवाने में पास पड़ोस के लोगों की मदद मिल सकती है। इसलिए कोरोना के लक्षण दिखते ही अपने पड़ोसी को जरूर सूचित कर दें। इसके साथ ही चिकित्सा भी लेते रहें। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इस मामले में डाक्टरों के नाम और नम्बर अखबारों में प्रकाशित करवाए हैं, उनसे सम्पर्क करके दवाइयां लेते रहें। इस प्रकार आप कोरोना के संक्रमण से शीघ्र मुक्त हो सकते हैं। हमारी कॉलोनी में एक डॉक्टर साहब कोरोना पाजिटिव हो गये लेकिन उन्होंने किसी को इस मामले में सूचित नहीं किया। लखनऊ के सीएमओ से कोरोना संक्रमण की सूची जारी होती है। वहीं, से पता चला कि डाक्टर साहब पाजिटिव हैं लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से नहीं बताया। ईश्वर की कृपा से कुछ दिनों बाद उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई, तब डाॅक्टर साहेब ने यह जानकारी ग्रुप में डाल दी।

पढ़े लिखे लोग जब इस बीमारी को छिपाते हैं, तब आश्चर्य और दुख होता है। कोरोना संक्रमण से बचने का सबसे आसान तरीका गाइड लाइन का पालन करना है। मास्क अधिक से अधिक समय तक लगाए रखें और हाथों को समय समय पर सैनिटाइज करते रहने से संक्रमण से बचने की संभावना रहती है लेकिन आप स्वयं को बचाने के चक्कर में इतने स्वार्थी भी न हो जाएँ कि कोरोना संक्रमितों की मदद करने से झिझकने लगें।हम पास पड़ोस में एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो जीवन कैसे चलेगा। परस्पर सहयोग से ही समाज बनता है और विकास करता है। अंतिम संस्कार के लिए भी पास पड़ोस के लोग इकट्ठा नहीं होंगे तो समाज का मतलब ही क्या रह जाएगा। इतना डर भी किस बात का? कोई अमर नहीं है। मृत्यु तो निश्चित है। यही सोचकर कोरोना के प्रति जो भय हमारे मन में समा गया है, उसे निकाल बाहर करें। यह पहल सबसे पहले परिवार और निकटतम संबंधियों को करनी होगी। समाज की मौलिक इकाई मनुष्य है लेकिन समाजशास्त्रीय व्याख्या के अनुसार समाज भी छोटे छोटे समुदायों से बना है। इसीलिए सबसे निकट हमारा परिवार होता है। इसके बाद हमारा गांव या मोहल्ला होता है। गांव मोहल्ले के बाद कहीं बाहर मिलें तो एक ही जिले में रहने वाले निकटता महसूस करते हैं। इसी प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर एक ही प्रदेश के लोग परिवार जैसे लगते हैं और जब हम विदेश में होते हैं तब हमारा देश ही एक दूसरे को जाति धर्म का भेद किये बिना एक कर देता है। यह एकता का भाव कोरोना बीमारी के समय भी बना रहना चाहिए। (हिफी)











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