कोरोना बम ब्लास्ट के मुहाने पर दिल्ली ?

कोरोना बम ब्लास्ट के मुहाने पर दिल्ली ?

नई दिल्ली दिल्ली के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि दिल्ली में कोरोना बम फूटने वाला है। उनका आंकलन इसलिए आया है क्योंकि दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की संख्या 31 हजार पार गई है, 900 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। केजरीवाल कहते हैं कि 15 जून तक तक दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की संख्या 44000 पार कर जाएगी। प्रति सप्ताह के सम्भावित आंकड़े बताते हुए उन्होंने कहा कि 31 जुलाई, 2020 तक दिल्ली में 5.32 लाख कोरोना संक्रमितों की संख्या पहुंच सकती है जिनके लिए 80,000 बेड की आवश्यकता पड़ेगी। दिल्ली में कोरोना टेस्टिंग में हर चैथा व्यक्ति कोरोना संक्रमित मिला रहा है। इसलिए सामुदायिक संक्रमण फैल रहा है, विशेषज्ञों के अनुमान को केंद्र सरकार ने नकार दिया है। परन्तु इस भयावह स्थिति के बावजूद दिल्ली में शह-मात का खेल खेला जा रहा है।

स्मरण रहे मुख्यमंत्री के निर्णय दिल्ली के सरकारी या गैर सरकारी अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों का ही इलाज होगा। इस निर्णय को पलटते हुए उपराज्यपाल ने कहा कि अब दिल्ली में कोई भी अपना इलाज करा सकेगा। मुख्यमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बताया था कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण व स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं पर सलाह देने के लिए उनकी सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। कमेटी ने जून के अंत तक 15000 बेड उपलब्ध कराने की संस्तुति की है। इसके अलावा वर्मा कमेटी ने दिल्ली के अस्पतालों के बेड को दिल्ली के निवासियों के लिए सुरक्षित करने की भी संस्तुति की है। बकौल मुख्यमंत्री कैबिनेट में इन भी मामलों पर विचार किया गया। दिल्ली सरकार ने लोगों से भी इस बारे में राय मांगी थी। केजरीवाल की माने तो दिल्ली की जनता ने भी राज्य के अस्पतालों में मौैजूद बेड को यहां के स्थानीय निवासियों के लिए रिवर्ज करने की राय व्यक्त की है। कोरोना संकट तक दिल्ली के सरकारी निजी अस्पतालों के बेड भी दिल्ली वालों के लिए सुरक्षित रहेंगे। अलबत्ता स्पेशल निजी अस्पताल में लोग देश भर से आकर सर्जरी करवाते हैं, वे सभी के लिए खुले रहेंगे।

दिल्ली सरकार के इस निर्णय की चौतरफा आलोचना की जा रही थी। लोग कह रहे थे कि जो व्यक्ति अन्य राज्य हरियाणा में जन्मा है, देश की अखिल भारतीय सेवा में कार्यरत रहा है, नोएडा उत्तर प्रदेश में रहते हुए दिल्ली का मुख्यमंत्री बन गया हो, वह ऐसी घटिया सोच कैसे रख सकता है। घटनाक्रम बताते हैं कि भारत माता की जय का नारा लगाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री का प्रत्येक कदम चुनावी लाभ-हानि के अनुसार होता है। उनके कदमों से कांग्रेस व जिन्ना के दांवपेंचों का सम्मिलित अहसास होता है। सीएए विरोधी आंदोलनों को बगैर उनके मंच पर जाए समर्थन देना, चुनावी मंच से वन्देेमारतम व भारत माता की जय के साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ कर हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की भाजपा की आस व सीएए विरोधी मंचों पर कांग्रेस नेताओं द्वारा मुस्लिम वोटों की फसल काटने की आशा पर एक साथ पानी फेरकर दिल्ली विधानसभा चुनाव भारी मतों से जीतना अरविन्द केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है। दिल्ली हिंसा व उसके बाद कोरोना संकट ने केजरीवाल की प्रशासनिक क्षमता का एसिड टेस्ट करवाया है। कोरोना संकट के समय जिनके समर्थन से सत्ता में आए उन्हीं को कुटिलतापूर्वक दिल्ली से बाहर भेजवाने का आरोप उन पर लगा। प्रतिदिन पांच लाख लोगों को भोजन कराने का दावा सुर्खियों में बना रहा। कोरोना फैलाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले जमातियों के प्रति उनका नरम दिल बना रहा।

अलबत्ता दिल्ली हिंसा व निजामुद्दीन मरकज में तब्लीगी जमात का जलसा जो आयोजित किया गया, का ठीकरा केन्द्रीय गृह मंत्रालय पर फोड़ने में उन्हें काफी हद तक सफलता मिली। कोरोना संक्रमितों को दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती कराने में जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों को छिपाने का भी आरोप लगाया जा रहा है। दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले थमने की बजाय बढ़ते जा रहे हैं। परंतु केजरीवाल के प्रशंसक उनके वादे, कार्यों के मुरीद बने हुए हैं। एक वर्ग इस बात से खुश है कि ईद के त्यौहार को देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने नमाज की व्यवस्था, बाजारों को खुलवा दिया ताकि उनका वोट बैंक प्रसन्न रहे। दिल्ली की संरचना अखिल भारतीय रही है। बार-बार दिल्ली की रट लगाना समझ से परे है।

महाभारत काल में यह नगर वनों से आच्छादित था, खाण्डवप्रस्थ के नाम से जाने वाला क्षेत्र पाण्डवों ने जलाकर इन्द्रप्रस्थ नगर बसाया। उसके बाद दिल्ली कितनी बार बसी, कितनी बार उजड़ी। यहां के मूल निवासी कहां किस हाल में है इसका पता कैसे चलेगा। स्वतन्त्रता के बाद प. पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के कारण दिल्ली का जनसांख्यिक स्वरूप बदला। 1990 तक दिल्ली में पंजाबियों व बनियों की बहुतायत थी। उसके बाद उत्तर प्रदेश व बिहार से रोजी-रोटी कमाने आए लोगों का जन सांख्यिक दबदबा बढ़ता गया। दक्षिण भारत के साथ ही लगभग देश के प्रत्येक कोने से लोग आकर दिल्ली में बसते चले गए। केजरीवाल जिनके कंधों पर सत्ता में आए, वे ही प्रवासी कामगार लाखों की संख्या में दिल्ली से चले गए। परंतु लाखों बांग्लादेशी, रोहिंग्या को इस आपदा में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। यह केजरीवाल की उपलब्धि कही जाय या त्रासदी।

दिल्ली में अन्य राज्यों के मरीजों का इलाज न हो, यह निर्णय दिल्ली सरकार की सोची-समझी योजना लगती है। दिल्ली में शारीरिक (सामाजिक) दूरी का पालन न करने से स्थिति बिगड़ती जा रही है। अब अनलाक के चलते दिल्ली सरकार की असफलता पर से पर्दा उठ रहा है। इसलिए अस्पतालों के प्रबन्धन की जिम्मेवारी अन्य राज्यों के मरीजों पर डालकर दिल्ली सरकार बचना चाह रही है। शायद उसको अहसास था कि इस निर्णय पर भाजपा चुप नहीं बैठेगी। अब उप राज्यपाल द्वारा निर्णय पलटने से वे यह प्रचार करेंगे-कोरोना संक्रमण की रोकथाम उपराज्यपाल या भाजपा सरकार के गलत निर्णयों से नहीं हो पा रही है। आप ने उप राज्यपाल को निशाने पर लेने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि भाजपा की राज्य सरकारें पीपीई किट घोटालों और वेंटीलेटर घोटालों में व्यस्त है। दिल्ली सरकार सोच समझकर ईमानारी से इस डिजास्टर को मैनेज करने की कोशिश कर रही है। यह बीजेपी से देखा नहीं जा रहा है। इसलिए उसने एलजी पर दबाव डालकर घटिया राजनीति की है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से उनके इरादे स्पष्ट होते हैं। उन्होंने कहा कि एलजी साहिब के आदेश ने दिल्ली के लोगों के लिए बहुत बड़ी दहशत फैला दी है। देश भर से आने वाले लोगों के लिए कोरोना महामारी के दौरान इलाज का इंतजाम करना बड़ी चुनौती है। शायद भगवान की मर्जी है कि हम पूरे देश के लोगों की सेवा करें। हम इलाज का इंतजाम करने की कोशिश करेंगे। दिल्ली में सभी का इलाज हो, यह व्यावहारिक नहीं अपितु सैद्धांतिक मामला है। जब कोरोना आपदा के कारण लाॅकडाउन लगा रहा है। अब अनलाक किया जा रहा है, तब बाहर से किनते लोग दिल्ली में इलाज कराने आ रहे हैं। इसलिए इस प्रकरण की आड़ में अपनी विफलता छिपाने के मंसूबे को जनता समझती है।

दिल्ली में केन्द्र सरकार की भी जिम्मेवारी बनती है । इसलिए दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार में तालमेल आवश्यक है। ऐसा लगता है कि दोनों एक दूसरे पर अपनी जिम्मेवारी थोपकर बचना चाह रही है। दिल्ली में उप राज्यपाल का निर्णय बाध्यकारी है, यह उक्त प्रकरण से स्पष्ट हो गया है।

सवाल यह है कि दिल्ली में हिंसा का खेल खेला जा रहा था, योजनाबद्ध तरीके से हिन्दुओं को मारा जा रहा था (जैसा दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र में कहा जा रहा है), दिल्ली से लाखों कामगारों को कुटिलता पूर्वक भगाया जा रहा था तब उपराज्यपाल ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? लाखों रोहिंग्या, बांग्लादेशियों को दिल्ली की जमीनों पर बसाया गया, उनके वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड बनवा दिए गए। बिजली, पानी, राशन सब फ्री। उप राज्यपाल महोदय ने संज्ञान नहीं लिया। दिल्ली सरकार मनमर्जी करती रही, वह क्या निरंकुश है। दिल्ली सरकार की लोकप्रियता के चलते शायद भाजपा उसकी मनमानी पर अंकुश लगाने से कतराती रही। यह देश का दुर्भाग्य है कि विदेशों से अवैध रूप से आए लोगों को सरमाथे बिठाया जाए, वैध रूप से आए लोगों पर वितण्डावाद खड़ा किया जाय तथा अपने ही बन्धुओं को सड़कों पर उनके हाल पर छोड़ दिया जाए। हम भारत के लोग की बजाय दिल्ली के लोग की माला जपने वाले अपने धतकर्मों की जिम्मेवारी से कैसे बच सकते हैं?

~ मानवेन्द्रनाथ पंकज (हिफी)

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