राजधानी के पीछे पड़े कोरोना व धुंध

राजधानी के पीछे पड़े कोरोना व धुंध

नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली का कोरोना और धुंध पीछा ही नहीं छोड़ रहे हैं। कोरोना से बचने के लिए लाॅकडाउन लगाया गया था। इससे दोहरा लाभ मिला। पहला यह कि लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाया गया। दूसरा लाभ यह मिला कि लोगों के बाहर न निकलने की वजह से प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आयी थी। अब फिर से चिंताजनक खबरें मिल रही हैं। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन का कहना है कि गत 3 नवम्बर को 6725 मामले कोरोना पाॅजिटिव के सामने आये हैं। इस प्रकार दिल्ली में कोरोना तीसरा आक्रमण है। दूसरी तरफ दिल्ली में वायु गुणवत्ता बेहद खराब होती जा रही है। दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 362 पर पहुंच गया है जिसे बेहद खराब माना जाता है।

कोरोना के प्रति हमारी लापरवाही का नतीजा सामने आने लगा है। दिल्ली में कोरोना की तीसरी वेव आयी है। स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन का कहना है कि हमने अब एग्रेसिव तरीके से कोरोना की जांच शुरू कर दी है। इसके बाद आंकड़े बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। वे कहते हैं कि पहले कोरोना कंजेस्टेड (घनी आबादी) क्षेत्र में फैला था लेकिन अब यह अपर क्लास में भी आ गया है। अपर क्लास के लोग प्राइवेट अस्पताल ज्यादा चुन रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि कन्टेनमेंट जोन बढ़ाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जहां पर तीन-चार मामले भी सामने आए हैं तो वहां कन्टेनमेंट जोन बनाया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने दिल्ली में कोरोना का सबसे खतरनाक दौर आने की आशंका जतायी है।

उधर, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता धीरे-धीरे बेहद खराब होती जा रही है। इससे लोगों का स्वच्छ हवा में सांस लेना दूभर हो गया है। प्रदूषण का आलम यह है कि कई स्थानों पर विजिबिलिटी काफी कम हो गई है। 3 नवम्बर को सुबह-सुबह धुंध छाने की वजह से आनंद विहार सहित कई स्थानों पर साफ-साफ दिखाई देना मुश्किल हो गया। वायुमंडल में प्रदूषकों के बढ़ने की वजह से दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। आनंद विहार में भी बेहद गंभीर श्रेणी में हवा की गुणवत्ता पहुंच गई। इससे आसमान में धुंध छा गई। दरअसल, 0 और 50 के बीच एक्यूआई को अच्छा, 51 और 100 के बीच संतोषजनक, 101 और 200 के बीच मध्यम, 201 और 300 के बीच खराब, 301 और 400 के बीच बेहद खराब और 401 से 500 के बीच बेहद गंभीर माना जाता है।

वायुमंडल में प्रदूषकों के बढ़ने की वजह से दिल्ली में औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 362 पर पहुंच गया है।

वहीं, सोनिया विहार, बवाना में 345, पटपड़गंज में 326 और जहांगीरपुरी में एक्यूआई 373 रिकॉर्ड किया गया था। यह बेहद गंभीर श्रेणी में है। इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। खासकर कोरोना मरीजों के साथ यह समस्या ज्यादा बढ़ गई है।

देश में पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। दिल्ली-एनसीआर सहित अन्य राज्यों के कई शहरों में हवा की गुणवत्ता बहुत खराब श्रेणी में पहुंच गई है, जबकि कई जगहों पर हालात गंभीर हैं। इससे इन शहरों में सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए केंद्र सरकार सहित राज्य सरकारें तमाम हथकंडे अपना रही हैं साथ ही फंड भी जारी कर रही हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पांचवे वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए राज्यों के लिए 2200 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की है। इस राशि से फंड पाने वालों में 15 राज्यों के 42 शहरों को शामिल किया गया है। इसे शहरों की स्थानीय निकाय वायु प्रदूषण घटाने के कामों में खर्च कर सकेंगी। हालांकि इस राशि को मंजूरी मिलने के बाद पर्यावरण विशेषज्ञ इस पर तमाम सवाल उठा रहे हैं। पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि सरकार पिछले कई सालों से प्रदूषण से संबंधित एजेंसियों को फंड जारी कर रही है। इसके बावजूद पर्यावरण पर फंड बढ़ने के साथ ही प्रदूषण का स्तर भी लगातार बढ़ता जा रहा है। हवा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। पर्यावरण पर खर्च किया जाने वाले फंड के बढ़ने के बावजूद हालात ठीक होने के बजाय खराब होते जा रहे हैं। पर्यावरणविद् कहते हैं कि सरकारें फंड जारी कर देती हैं लेकिन ये जिन एजेंसियों के लिए फंड जारी करती हैं वे एजेंसियां सिर्फ प्रदूषण की निगरानी करती हैं। ये प्रदूषण को खत्म करने पर काम नहीं करतीं। राष्ट्रीय के अलावा सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को देखें तो हवा की गुणवत्ता को मापने, नियंत्रण के लिए सिफारिशें व योजनाएं बनाने और निगरानी के काम करने के अलावा ऐसे काम बहुत कम हैं कि ये प्रदूषण को पैदा होने से रोकने को लेकर काम करें। सरकार की ओर से अभी 2200 करोड़ नहीं बल्कि हर साल पैसा दिया जा रहा है।

केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के तहत पिछले चार सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2017-18 में सबसे ज्यादा तकरीबन 45 करोड़, 77 लाख रुपये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिए गए थे। इसके बाद 2018-19 में भी 12,93,43,168 रुपये एसपीसीबी को दिए गए। बता दें कि साल 2014-15, 2015-16 और 2016-17 में भी करीब छह-छह करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था। मध्य प्रदेश सहित मिजोरम, चंडीगढ़, पुडुचेरी, महाराष्ट्र और नगालैंड को पिछले तीन सालों से लगातार फंड दिया जा रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2013 में यूपी को तीन करोड़ रूपये से ज्यादा का फंड दिया गया था। राज्यों के अलावा आईआईटी कानपुर भी पर्यावरण के लिए फंड पाने वालों में शामिल है। इसके बाद भी प्रदूषण कम नहीं हो रहा है। (हिफी)

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