उमाशंकर पांडे को देश का पहला "सर्वश्रेष्ठ जलयोद्धा" पुरस्कार

उमाशंकर पांडे को देश का पहला सर्वश्रेष्ठ जलयोद्धा पुरस्कार

झांसी। जलशक्ति मंत्रालय ने जल संरक्षण के क्षेत्र में बिना किसी सरकारी मदद के सामुदायिक प्रयास से अभूतपूर्व कार्य करने वाले सर्वोदयी कार्यकर्ता बुंदेलखंड के उमाशंकर पांडे को राष्ट्रीय जल पुरस्कार-2019 के तहत देश के पहले " सर्वश्रेष्ठ जलयोद्धा " पुरस्कार से बुधवार को सम्मानित किया।


देश के दूसरे राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2019 का आयोजन आज राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में वेबीनार के माध्यम से किया गया जिसमें उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू की अध्यक्षता में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उमाशंकर पांडे को देश के पहले जलयोद्धा के रूप में सम्मान पत्र और डेढ़ लाख की सम्मान राशि प्रदान की। वर्ष 2018 में शुरू किये गये राष्ट्रीय पुरस्कारों में 2019 में पहली बार " सर्वश्रेष्ठ जलयोद्धा " श्रेणी का पुरस्कार जोड़ा गया और बुंदेलखंड की सूखी धरती पर अपने अथक प्रयासों से पानी को जगाने वाले उमाशंकर पांडे को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उमाशंकर पांडे ने यूनीवार्ता से फोन पर खास बातचीत में इस पुरस्कार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जल शक्ति मंत्री और जल मंत्रालय का आभार व्यक्त किया । उन्होंने कहा कि यह सम्मान हर उस व्यक्ति का सम्मान है जिसने अपने क्षेत्र की सूखे की समस्या दूर करने में मेरे प्रयासों में अपना योगदान दिया। हर किसान, श्रमिक का भी आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंनें मेरे कहने से अपने खेतों से अपने श्रम से मेड़बंदी की और मेरा काम पर विश्वास कर मेरे विचारों को आत्मसात किया। मुझे खुशी है कि मेडबंदी विधि जखनी के नाम से पूरे देश में जानी जाती है। मैंने पुरखों की विधि को आमत्मसात किया था जिसकी वजह से मेरे काम को सम्पूर्ण देश में आज पहचान मिली । राज्य समाज और सरकार ने दिल खोलकर मुझे सम्मान दिया है यह सम्मान उन पुरखों को समर्पित है जिन्होंने जलसंरक्षण की यह विधि विकसित की।


उमाशंकर पांडे ने बुंदेलखंड के बांदा जिले में सूखे और बदहाल अपने पैतृक गांव जखनी में पानी को जगाने का काम 15 साल पहले शुरू किया था। ग्रामीणों को जलसंरक्षण की आवश्यकता को समझाकर उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के किसानों और श्रमिकों के साथ मिलकर " मेड़बंदी" का काम शुरू किया। उन्होंने " हर खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ " का नारा दिया। अपने पुरखों की जलसंरक्षण की इस विधि ने लंबे समय के प्रयास के बाद कुछ ऐसे फल दिये कि जो गांव सूखाग्रस्त था वह आज जलग्राम के रूप में जाना जाता है और जहां बासमती की खेती से किसानों ने सम्पन्नता का नयी इबारत लिखी। इस तरह पहले गांव फिर आसपास के इलाके और इसके बाद पूरे जिले और सूखे बुंदेलखंड में बासमती की खेती शुरू की गयी।

जल संरक्षण और भूजल स्तर को बढ़ाने में बेहद कारगर जखनी की मेड़बंदी को केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने परीक्षण के उपरांत लागू किया। श्री पांडे के प्रयासों से न केवल जखनी जलग्राम बना और नीति आयोग ने जखनी को देश के पहले जलग्राम के रूप में मान्यता दी। जलशक्ति मंत्रालय ने देशभर में 1050 जलग्राम बनाये इतना ही नहीं केंद्र सरकार की अटल भूजल परियोजना भी जखनी मॉडल पर ही तैयार की गयी।

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