रक्तबीज की तरह वायरस का विनाश करेंगी काली

मथुरा। उत्तर प्रदेश में कान्हानगरी मथुरा के काली मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर परंपरागत पूजा के साथ कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए विशेष सामूहिक आराधना भी की जा रही है।
ग्रामीण अंचल तक में कोरोना की समाप्ति के लिए देवी गीतों का भी गायन हो रहा है तथा कोरोना वायरस के समाप्ति की प्रार्थना की जा रही है। कोरोना वायरस की समाप्ति के लिए एक नया गीत चल पडा है 'देवी मइया को जुरो है दरबार कोरोना हवा में अब तो उड़ जाबेगो।'
मथुरा कैन्ट स्टेशन के सामने स्थित काली मन्दिर के महन्त दिनेश चतुर्वेदी ने बड़े भरोसे के साथ कहा कि मां काली ने जिस प्रकार से राक्षस रक्तबीज का संहार किया था उसी प्रकार वे कोरोनावायरस के संक्रमण को भी रोकेंगी और इसका असर दुर्गापूजा के समापन पर दिख सकता है।
उन्होंने बताया मथुरा का यह काली मन्दिर अपने प्रारंम्भिक काल के झंझावातों को इसलिए झेल गया कि मन्दिर के तत्काल महन्त मुकुन्द चैबे नौघरवालों के परिश्रम और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर मां ने मन्दिर पर आ रही परेशानियों को अपने उसी प्रकार दूर किया जिस प्रकार उन्होंने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था।
मां काली द्वारा रक्तबीज के संहार के बारे में उन्होंने बताया कि राक्षस रक्तबीज को यह वरदान था कि उसके शरीर के खून की एक बूंद जैसे ही जमीन पर गिरेगी एक और रक्तबीज तैयार हो जाएगा।इस वरदान के कारण देवता भी उससे जीत नही पा रहे थे और बड़े दुःखी थे। देवताओं के अनुरोध पर मां काली ने रक्तबीज का संहार उसके शरीर से निकलनेवाली खून की एक एक बूंद को पीकर किया था। वे उस पर प्रहार करती थीं तथा उसके शरीर से निकलनेवाले खून को पी जाती थी।
रक्तबीज को मारने के बाद रक्तपान के लिए वे शवों पर नृत्य करने लगीं और यह भूल गईं कि उन्होंने रक्तबीज का वध कर दिया है तो देवताओं ने इसे रोकने के लिए शिव से प्रार्थना की। उनके पास जाकर शिव जी ने उन्हें रोकना चाहा तो अचानक पैर फिसलने से वे गिर गए और देवी काली उनकी छाती पर पैर रखकर जैसे ही खड़ी हुई तो उन्हे अपनी भूल का अहसास हुआ और अचानक उनकी जुबान बाहर आ गई। उनका कहना था कि कोरोनावायरस के संक्रमण को इसी प्रकार मां रोकेंगी इसका उन्हें भरोसा है।
महन्त ने बताया कि मां के उक्त रौद्ररूप के आगे कोई टिक नही पाता। उन्होंने बताया कि जब दक्ष प्रजापति ने एक बार महायज्ञ किया लेकिन शिव को अपमानित करने के लिए उन्हें उसमें इसलिए नही आमंत्रित किया कि उनकी पुत्री सती जी (शक्ति)ने उनकी मर्जी के बिना शिवजी से विवाह कर लिया था। नारद जी से यज्ञ के बारे में पता चलने पर सती यज्ञ में जाने को तैयार हुईं तो शिवजी ने उन्हें साधारण महिला समझकर रोक दिया। इस पर क्रोधित होकर शक्ति ने अपना स्वरूप दिखाया तो शिवजी भागने लगे। उन्हें रोकने के लिए शक्ति ने दसो दिशाओं में अपने स्वरूपों काली, तारा, त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मतंगी, कमला को प्रकट कर दिया तथा जिधर शिव जाते उनके स्वरूप को पाते। शिव जी को इसके बाद ही मां की शक्ति का पता चल सका।
उन्होंने बताया कि जिस प्रकार केन्द्र और राज्य सरकार के विरोध के बावजूद मां काली की कृपा से इसके प्रथम महन्त मुकुन्द चैबे मन्दिर को बचा सके उसी प्रकार वर्तमान में मन्दिर चल रही देवी की सामूहिक आराधना भारत को कोरोनावायरस के संक्रमण से जल्दी ही मुक्ति दिलाएगी ऐसा उन्हें भरोसा है।