जन प्रतिनिधि की दादागिरी

जन प्रतिनिधि की दादागिरी

भोपाल। मध्यप्रदेश में इंजीनियर ओमहरि शर्मा ने एक नेता को नोटिस भेजा था। नोटिस की कॉपी सोशल मीडिया में वायरल होते ही हड़कंप मच गया। एडीएम किशोर कन्याल ने बताया कि पीडब्ल्यूडी के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर द्वारा वर्तमान में जो मंत्री हैं, उनको आवास खाली करने का नोटिस दे दिया है जो गलत है। नोटिस गलती से दिया गया है क्योंकि अभी इमरती देवी मंत्री है और किसी मंत्री को ऐसा नोटिस जारी नहीं करना चाहिए था। इसके बाद शाम को आदेश आया कि पीडब्ल्यूडी के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ओमहरि शर्मा का ट्रांसफर ग्वालियर से भोपाल कर दिया गया है। बता दें कि इमरती देवी ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थकों में से एक हैं। इमरती देवी उन 22 विधायकों में शामिल थीं जिन्होंने मार्च 2020 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली थी और जिस वजह से कमलनाथ सरकार गिर गई थी। इसके बाद शिवराज सरकार में इमरती देवी को महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया लेकिन हाल ही में हुए उपचुनाव में डबरा सीट से इमरती देवी चुनाव हार गईं ।मध्य प्रदेश में सियासी हलचल फिर बढ़ गई है। इमरती देवी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा सीएम शिवराज सिंह चौहान को सौंपा है। इमरती देवी ने कहा कि सीएम को इस्तीफा दे दिया है वो स्वीकार करें या ना करें ये उनका अधिकार है। यह बात इंजीनियर की समझ में नहीं आयी।

बता दें कि शिवराज सरकार में मंत्री और बीजेपी उम्मीदवार इमरती देवी अपने ही रिश्तेदार सुरेश राजे से उप चुनाव हार गई थीं। इमरती देवी डबरा विधानसभा सीट से उप चुनाव लड़ रही थी और यह मध्य प्रदेश की सबसे चर्चित सीट रही। इमरती को हराने वाले उनके ही समधी कांग्रेस के सुरेश राजे थे। इमरती देवी, उन पूर्व विधायकों में से एक नेता हैं जिन्होंने कुछ महीने पहले कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया था। इमरती देवी को ज्योतिरादित्य सिंधिया का कट्टर समर्थक माना जाता है। ये वही इमरती देवी हैं, जिन्होंने इसी साल मार्च महीने में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति अपनी वफादारी को जाहिर करते हुए कहा था कि सिंधिया कुएं में गिरे तो हम भी साथ गिरेंगे। गत 26 जनवरी 2019 को गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान इमरती देवी बतौर मंत्री अपना भाषण नहीं पढ़ पाने को लेकर भी काफी चर्चा में रही थीं। हालांकि बाद में उन्होंने पास खड़े जिला कलेक्टर को बुलाया और उनसे अपना भाषण पढ़वाया।, सोशल मीडिया पर वीडियो सामने आने के बाद मंत्री ने सफाई दी थी। मंत्री ने कहा- बीते दो दिनों से बीमार थी, आप डॉक्टर से पूछ सकते हैं। लेकिन ये ठीक है। कलेक्टर ने अच्छे से (भाषण) पढ़ा।

दरअसल, इमरती देवी हाल ही में डबरा विधानसभा सीट से उपचुनाव हार गईं थीं। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री को इस्तीफा भी भेज दिया लेकिन अभी तक वो मंजूर नहीं हुआ। इस बीच पीडब्ल्यूडी ने इमरती देवी को ग्वालियर के झांसी रोड पर मिले सरकारी बंगले को खाली करने का नोटिस भेज दिया। नोटिस में लिखा था कि अब इमरती देवी के पास कोई पद नहीं है इसलिए बंगला खाली कर उसे पीडब्ल्यूडी को सौंपा जाए।

मध्य प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में शिवराज कैबिनेट के तीन मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा है। इन तीन मंत्रियों में से महज एक मंत्री एदलसिंह कंसाना ने स्वप्रेरणा से इस्तीफा दिया है जबकि इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया ने अभी तक मंत्री पद नहीं छोड़ा है। इतना ही नहीं इमरती देवी की ओर से तो यह भी साफ नहीं किया जा रहा है कि वे इस्तीफा कब देंगी? इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया खुद से इस्तीफा नहीं देते हैं तो नियम के मुताबिक जनवरी में इन्हें मंत्रिपद से हटना ही पड़ेगा। संविधान के अनुसार कोई भी गैर विधायक व्यक्ति अधिकतम 6 महीने तक पद पर रह सकता है। ऐसे में अगर वह निर्वाचित नहीं होता है, तो उसका पद स्वतः समाप्त हो जाता है। 2 जुलाई को इमरती देवी और गिर्राज ने मंत्री पद की शपथ ली थी, इस हिसाब से यदि दोनों लोग इस्तीफा नहीं देते हैं तो भी 2 जनवरी तक ही पद पर रह सकते हैं। इसके बाद उन्हें मंत्री पद छोड़ना होगा।

दरअसल, यह माना जा रहा है कि कांग्रेस से बगावत और कमलनाथ की सरकार से मंत्री पद छोड़कर चुनाव में उतरी इमरती देवी को हार के बाद भी शिवराज सरकार में ऊंचा ओहदा मिलने की संभावना है।शिवराज सरकार में महिला एवं बाल विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग की इमरती देवी मंत्री हैं और वो हार के बाद बयान दे चुकी हैं कि वह हारी नहीं हैं। सरकार हमारी है। जो जीत गए हैं, वह एक हैंडपंप भी नहीं लगवा पाएंगे। इसलिये किसी इंजिनियर की इतनी हिम्मत कैसे हो गयी कि उसने इमरती देवी को बंग्ला खाली करने का नोटिस भेज दिया।

गनीमत यही कि इंजिनियर का सिर्फ तबादला किया गया है , उसकी नौकरी बची हुई है।

...और बैटबाज विधायक

माननीय जनप्रतिनिधियों के अनुकरणीय कारनामों की बहुत बड़ी फेहरिस्त है। फिलहाल मध्य प्रदेश के इंदौर में जर्जर मकान गिराने गई इंदौर नगर निगम की टीम के साथ हुए विवाद के दौरान शहरी निकाय के एक अधिकारी को क्रिकेट बल्ले से पीटने वाले विधायक की चर्चा के साथ इस आलेख का समापन कर रहा हूं। इस मामले में गिरफ्तार बीजेपी विधायक आकाश विजयवर्गीय को पहली बार जमानत देने से स्थानीय अदालत ने इनकार कर दिया था। कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज करने के बाद भाजपा विधायक को इसी साल 11 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था। बाद में उन्हे जमानत मिली। इंदौर की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) रुचिवर्धन मिश्रा ने बताया था कि आकाश विजयवर्गीय और 10 अन्य लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (लोक सेवक को भयभीत कर उसे उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिये उस पर हमला), 294 (गाली-गलौज), 323 (मारपीट), 506 (धमकाना), 147 (बलवा) और 148 (घातक हथियारों से लैस होकर बलवा) के तहत एफआईआर दर्ज की गईहै। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (जेएमएफसी) गौरव गर्ग ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विजयवर्गीय की जमानत याचिका खारिज कर दी। याचिका पर सुनवाई के दौरान जिला अदालत परिसर में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। परिसर में बड़ी तादाद में भाजपा विधायक के समर्थक भी मौजूद थे ।

जिला लोक अभियोजन अधिकारी अकरम शेख ने बताया कि अदालत ने जमानत याचिका खारिज करने के बाद भाजपा विधायक को 11 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। शेख ने बताया कि अभियोजन पक्ष ने इस याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि नगर निगम के एक भवन निरीक्षक से सरेआम मारपीट कर शासकीय कार्य में बाधा डालने वाले आरोपी को जमानत का लाभ कतई नहीं दिया जाना चाहिए। उधर, बचाव पक्ष के वकीलों में शामिल पुष्यमित्र भार्गव ने कहा था हमने अदालत के सामने दलील रखी कि नगर निगम के अधिकारियों ने मकान खाली कराने की कोशिश के दौरान महिलाओं से बदसलूकी की। इन परिस्थितियों में विधायक का आवाज उठाना जनता के हित में है। आकाश भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं और नवंबर 2018 का विधानसभा चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने। (हिफी)

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