MP में वाचालों को सबक
भोपाल। राजनेता जनता को अगर बेवकूफ समझते हैं तो यह उनकी भूल है। मजबूरीवश कभी-कभी जनता राजनेताओं के जाल में फंस जाती है लेकिन जैसे ही मौका मिलता है उनको सबक भी देती है। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए थे। ये उप चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे क्योंकि शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरीके से कांग्रेस से सत्ता छीनी थी, उसी तरह से कांग्रेस सत्ता वापस ले सकती थी। जनता ने कांग्रेस को अन्तर्कलह के लिए सजा दी और शिवराज सिंह चौहान को 126 विधायकों का बहुमत दे दिया। इसके साथ ही वाचाल नेताओं को सबक सिखाया। डबरा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को सजा मिली लेकिन इमरती देवी भी अपनी जुबान पर संयम नहीं रख पायी थीं। उन्होंने कमलनाथ को कुत्ता-कमीना कहा था। इस प्रकार मर्यादा इमरती देवी ने भी तोड़ी और जनता ने उनको चुनाव में पराजित कर दिया।
मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 126 विधायक हो गये हैं जबकि कांग्रेस के पास 96, बसपा, सपा और निर्दलीय के 7 विधायक हैं। एक सीट खाली है। सरकार बनाने के लिए 115 विधायकों की जरूरत है। इस प्रकार शिवराज सिंह चौहान के पास पूरी तरह से बहुमत है। सांवेर में भाजपा के तुलसीराम सिलावेट और कांग्रेस के प्रेमचन्द्र गुड्डू में मुकाबला था। भाजपा के तुलसीराम ने यहां से जीत हासिल की है। सबसे ज्यादा मामला डबरा सीट का चर्चित हुआ था। यहां से भाजपा ने इमरती देवी को प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस ने इमरती देवी के ही रिश्तेदार सुरेश राजे को टिकट दिया था। यह सीट चर्चा में तब आयी जब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक जनसभा में इमरती देवी को आइटम कह दिया। कमलनाथ के इस बयान की काफी आलोचना हुई। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ के बयान को आपत्तिजनक बताया। इसके बाद कमलनाथ ने माफी मांग ली थी। इसके बावजूद इमरती देवी ने कमलनाथ के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया। जनता ने इमरती देवी को भी सजा दी है। इसी तरह जनता ने चौहान के एक राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया को भी सजा दी है। दंडोतिया ने मुरैना के टिमनी में एक जनसभा में कहा था कि डबरा की जगह दिमनी होता तो कमलनाथ की यहां से लाश उठकर जाती। इतना ही नहीं दंडोतिया ने कांग्रेस के एक नेता के व्यक्तिगत जीवन पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 75 साल का बुड्ढा 45 साल की महिला से शादी करके घर ले आया। घर में बहू लाने की उम्र में सास ले आया। दंडोतिया को दिमनी में पराजय का सामना करना पड़ा।
मध्य प्रदेश में एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई है। दो साल के सियासी उतार-चढ़ाव के बाद हुए उपचुनाव में 28 में से 19 सीटें जीतकर भाजपा 107 से 126 सीटों पर पहुंच गई जो बहुमत के आंकड़े 115 से 11 सीटें ज्यादा है। कांग्रेस को नौ सीटों पर जीत मिली है। उपचुनाव के स्पष्ट जनादेश से साफ है कि जनता ने शिवराज सिंह पर भरोसा दिखाया है। कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के उन्नीस में से 13 लोगों ने जीत दर्ज की। जबकि मंत्री इमरती देवी व गिर्राज दंडोतिया के साथ जसमंत जाटव, रणवीर जाटव, रघुराज कंसाना और मुन्नालाल गोयल हार गए। एक अन्य मंत्री एंदल सिंह कंसाना भी चुनाव हार गए हैं। खास बात यह भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी का असर चंबल-ग्वालियर में ही दिखाई दिया। यहां की 16 सीटों में से सात पर कांग्रेस को जीत मिली। बाकी जगहों पर मुख्यमंत्री शिवराज-सिंधिया की जोड़ी चली। ग्वालियर-चंबल के बाहर की नौ सीटों पर 20 हजार से अधिक वोटों की हार-जीत हुई।
सिंधिया ने जब पार्टी बदली, 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी। इनमें 19 सिंधिया समर्थक थे। तीन को भाजपा ने तोड़ा था। ये तीन थे- एदल सिंह कंसाना, बिसाहू लाल और हरदीप डंग। सिंधिया गुट के 19 में से 6 हारे और जीते तेरह। शिवराज गुट के 9 में से तीन हारे, सात में से एक निर्दलीय और बसपा के दो विधायक भाजपा के पक्ष में हैं। बाकी भी विरोधी तो नहीं ही हैं। फिर भी सरकार सिंधिया गुट के बिना कम्फर्ट में नहीं रहेगी। यही वजह है कि सिंधिया का कद भाजपा में बढ़ गया है। अब अगले विस्तार में सिंधिया को केंद्र में मंत्री पद मिलने की संभावना भी बढ़ गई है। भाजपा सिंधिया के चेहरे का इस्तेमाल अन्य राज्यों में कर सकती है, क्योंकि मध्य प्रदेश में सरकार बनाकर चुनाव जीतने वाला फाॅर्मूला कामयाब हो गया है। इसका पहला असर राजस्थान में हो सकता है।
कांग्रेस में भी बदलाव होंगे। कमलनाथ को प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पद में से कोई एक छोड़ना होगा। नेता प्रतिपक्ष पद के लिए वे भोपाल में समय खपाएँगे, ऐसी संभावना कम है। वे अध्यक्ष पद पर रह सकते हैं, यह कहकर कि वे नया नेतृत्व विकसित करेंगे। हालांकि पार्टी नया नेतृत्व तलाश सकती है। बहरहाल, नाथ और दिग्विजय दोनों ही अपने बेटों को तैयार करने में समय लगाएंगे क्योंकि कमलनाथ अभी 74 और दिग्विजय 73 के हैं। अगले चुनाव तक वे 76-77 के हो जाएंगे।
उपचुनावों में सबसे ज्यादा चर्चित विधानसभा डबरा रही है। यहां कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई इमरती देवी भाजपा प्रत्याशी थीं और वह अपने समधी कांग्रेस के सुरेश राजे से 7633 वोट से हार गई हैं। अब इस हार के बाद उनके लिए राजनीतिक संकट बढ़ गया है। कांग्रेस के लोग उनके साथ रहें नहीं और भाजपा से कोरोना काल के चलते वो घुल मिल नहीं पाई। इससे अब उनके हारने के बाद कोई उनको ज्यादा तबज्जो नहीं देगा। इमरती देवी के हारने के प्रमुख कारणों में उनका पिछले 3 चुनाव से डबरा का विधायक बनना रहा। उनके चेहरे को क्षेत्र में पसंद नहीं किया गया। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के आइटम वाले बयान के बाद भी वो सहानुभूति नहीं बटोरे पाई। जबकि पूरे प्रदेश में भाजपा ने इसका फायदा उठाया है। यही कारण है कि इमरती अपने घर वाले एरिया से भी वोट नहीं जुटा पाई।
जिले की सबसे बड़ी और चर्चित सीट में शुमार ग्वालियर पूर्व में भाजपा ने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए पूर्व विधायक मुन्ना को उम्मीदवार बनाया पर भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में गए सतीश सिकरवार ने उन्हें 8555 से मात दी। मुन्ना न विधायक बन पाए न ही भाजपा कार्यकर्ताओं का चुनाव में उन्हें साथ मिला। ऐसे में इस हार से उनका राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आ रहा है।
ग्वालियर पूर्व में भाजपा प्रत्याशी मुन्नालाल के हारने का प्रमुख कारण उनका दलबदल ही रहा। 2018 में थाटीपुर, कुम्हारपुरा और मुरौर का वो क्षेत्र जो अनुसूचित जाति बाहुल्य इलाका है, उससे ही उनको रिकॉर्ड वोट मिले थे पर भाजपा से ये वर्ग काफी नाराज है। मुन्ना के दल बदलते ही ये वोट उन्हें नहीं मिले। इस बार कांग्रेस के सतीश ने यहां से बढ़त बनाई। इजके अलावा व्यापारी वर्ग का मुन्नालाल से नाराज होना भी भारी पड़ा है।
जिले की अन्य महत्वपूर्ण सीट ग्वालियर में कांग्रेस छोड़कर आए मंत्री प्रधुम्न सिंह ने कांग्रेस के सुनील को 33123 वोट से मात दी। उनके साथ भी भाजपा कार्यकर्ता कम उनके समर्थक ज्यादा दिखाई देते थे। इस जीत से वो मंत्री भी बने रहेंगे और भाजपा में अपनी जगह भी बना सकेंगे। (हिफी)