कुलपति और कुलाधिपति में टकराव
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने 21अगस्त को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति को अपराधी बताते हुए उन पर तीखा हमला बोला
लखनऊ। शिक्षा विभाग में एक ही कुटुंब के दो मुखिया अगर राजनीति के चलते शिक्षकों की नियुक्ति में टाँग अड़ाएं तो इसका खामियाजा युवा पीढी को और अंततः पूरे राज्य और राष्ट्र को भुगतना पड़ता है। देश में सबसे पहले शिक्षित राज्य का दर्जा हासिल करने वाले केरल में इन दिनों ऐसे ही हालात हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने गत 21अगस्त को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी) को अपराधी बताते हुए उन पर तीखा हमला बोला। राज्यपाल ने कुलपति गोपीनाथ रवींद्रन पर देश में संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के आंदोलन के बीच विश्वविद्यालय में आमंत्रित किए जाने के दौरान उन पर हमला करने की कथित साजिश का हिस्सा होने का आरोप लगाया। खान ने राष्ट्रीय राजधानी में संवाददाताओं से कहा, वह मुझे शारीरिक रूप से चोट पहुंचाने की साजिश में शामिल थे। वह एक अपराधी हैं। वह राजनीतिक कारणों से कुलपति बने बैठे हैं। कुलाधिपति कहते हैं कि मुझे कुलपति ने वहां आमंत्रित किया था। जब मुझ पर हमला किया गया तो उनका कर्तव्य क्या था? क्या उन्हें इस बारे में पुलिस को सूचना नहीं देनी चाहिए थी? लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने दावा किया कि राजभवन ने कुलपति को मंच पर जो कुछ हुआ उससे अवगत कराया था और कहा था कि इसकी रिपोर्ट पुलिस को भेजें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके तीन दिन पहले ही एक एसोसिएट प्रोफेसर की तैनाती को लेकर कुलाधिपति अर्थात राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान अपने अधिकारों का प्रयोग कर विवाद पैदा कर चुके थे । कन्नूर विश्वविद्यालय ने मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के निजी सचिव केके राजेश की पत्नी प्रिया वर्गीज को मलयालम विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया था। इससे विवाद हो गया। मामले में राजनीति है क्योंकि कन्नूर विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर की विवादित नियुक्ति रोकने पर कांग्रेस ने समर्थन किया है। आरोप है कि मुख्यमंत्री ने अपने निजी सचिव केके राजेश की पत्नी प्रिया वर्गीज की नियुक्ति का आदेश दिया था। इस तरह के विवाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी देखने को मिलते हैं क्योंकि इन राज्यों में केंद्र से इतर दलों की सरकार है।
केरल के राज्यपाल ने कहा, ''आमतौर पर मेरे पास किसी कुलपति के खिलाफ कुछ भी कहने का कोई कारण नहीं है। अगर मुझे कार्रवाई करनी होती, तो मैं कर सकता था। मेरे पास अधिकार हैं। मुझे सार्वजनिक रूप से क्यों बोलना चाहिए?''खान ने आरोप लगाया, ''लेकिन, मुझे सार्वजनिक रूप से बोलने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि कुलपति अकादमिक अनुशासन की शालीनता की सभी सीमाओं को पार कर गए हैं। उन्होंने कन्नूर विश्वविद्यालय को 'बर्बाद' कर दिया है। एक कुलपति से ज्यादा, वह एक राजनीतिक 'कैडर' हैं। कन्नूर विश्वविद्यालय में मुझ पर हमला करने की साजिश के पीछे वही अर्थात कुलपति ही थे। राज्यपाल ने कहा कि उन्हें बाद में ''बहुत उच्च पदस्थ सूत्रों'' से रिपोर्ट मिली थी कि लोगों को पता था कि साजिश दिल्ली में रची गई थी। उन्होंने फिर दावा किया, ''वह (कुलपति) इसका हिस्सा थे। राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने हमेशा आलोचना का स्वागत किया है क्योंकि यह 'मुझे सावधान, स्पष्ट और कानून का पालन करने वाला बनाती है'।
राज्यपाल के आरोपों पर कुलपति की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। खान की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब राज्यपाल और सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के बीच तनातनी और बढ़ गई है क्योंकि खान ने कुलाधिपति के रूप में अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए पूर्व राज्यसभा सदस्य के. के. रागेश की पत्नी प्रिया वर्गीस को कन्नूर विश्वविद्यालय में मलयालम एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त करने के कदम पर रोक लगा दी है। केरल में विपक्षी कांग्रेस ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की ओर से कन्नूर विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर की विवादित नियुक्ति रोकने का जब समर्थन किया और कहा कि राज्यपाल ने कुलाधिपति के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार कानूनी रूप से कार्य किया है तब इस पर राजनीति होना स्वाभाविक था। यही हुआ भी। सत्तारूढ़ माकपा ने आरोप लगाया कि केंद्र अपने राजनीतिक उद्देश्य साधने के लिए राज्यपाल का इस्तेमाल कर रहा है। कन्नूर विश्वविद्यालय ने मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के निजी सचिव केके राजेश की पत्नी प्रिया वर्गीज को मलयालम विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया था। इससे विवाद हो गया, क्योंकि वर्गीज के अनुसंधान में सबसे कम अंक थे जबकि साक्षात्कार में उन्हें सबसे ज्यादा अंक मिले और उन्हें चयन प्रक्रिया में प्रथम घोषित किया गया। इसी को आधार बनाकर राज्यपाल ने इस नियुक्ति को रोक दिया। प्रस्तावित नियुक्ति को रोकने के राज्यपाल की कार्रवाई को जायज बताते हुए विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने कहा कि खान ने वास्तव में अपनी शक्ति का इस्तेमाल कन्नूर विश्वविद्यालय में अवैध नियुक्ति के प्रयास को रोकने के लिए किया। उन्होंने मांग की कि राज्यभर के अन्य विश्वविद्यालयों में पिछले छह बरसों में सत्तारूढ़ दल के नेताओं के करीबी रिश्तेदारों की इसी तरह की कथित नियुक्तियों की व्यापक जांच की जानी चाहिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने अपना आरोप दोहराया कि राज्य के विश्वविद्यालयों में संकाय पद माकपा नेताओं के रिश्तेदारों के लिए आरक्षित हैं। उन्होंने कहा, "योग्य व्यक्तियों (नौकरी के इच्छुक) को खुले तौर पर न्याय से वंचित किया गया है। पिछले छह साल में भी ऐसा ही हुआ है। राज्यपाल को ऐसी सभी नियुक्तियों की जांच के लिए कदम उठाने चाहिए और उन्हें रद्द करना चाहिए। सतीशन कन्नूर जिला कांग्रेस कमेटी (डीसीसी) कार्यालय में पार्टी के एक कार्यक्रम से इतर पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने विजयन सरकार से आग्रह किया कि वह विश्वविद्यालयों में नियुक्ति की जिम्मेदारी लोक सेवा आयोग को सौंप दें ताकि इसमें पारदर्शिता सुनिश्चित रहे।
इस बीच, माकपा के राज्य सचिव के बालाकृष्णन ने पार्टी के मुखपत्र 'देशाभिमानी' में लिखे अपने लेख में राज्यपाल पर जोरदार हमला बोला और आरोप लगाया कि केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार खान का इस्तेमाल कर वाम सरकार को दुविधा में डाल रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि संशोधनों पर हस्ताक्षर नहीं करने के लिए राज्यपाल का अडिग रुख इस एजेंडे का हिस्सा है। हालांकि उन्होंने वर्गीज की नियुक्ति पर रोक लगाने का जिक्र नहीं किया है। एक विस्तृत लेख में, बालकृष्णन ने आरोप लगाया कि राज्यपाल नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के एक उपकरण के रूप में काम कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति के अधिकार को लेकर खींचतान के बीच शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने पिछले महीने जुलाई में कहा था कि राज्यपाल जगदीप धनखड़ द्वारा रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के लिए एक कुलपति की एकतरफा ढंग से नियुक्ति किया जाना राज्य सरकार के फैसले के विपरीत है। धनखड़ ने रवींद्र भारती विश्वविद्यालय (आरबीयू) के नए कुलपति की नियुक्ति की थी, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया था। बसु ने कहा कि बंगाल विधानसभा द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन को लेकर पारित एक विधेयक के मद्देनजर नियुक्ति प्रक्रिया की फिर से जांच करने संबंधी राज्य सरकार के फैसले से राज्यपाल को पिछले महीने अवगत कराया गया। ये आरोप आंशिक रूप में भी सच हैं तो हमें शिक्षा व्यवस्था को इस राजनीतिक झगड़े से बचाने का प्रयास करना होगा। (हिफी) (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)