बोले मंत्री सूर्य प्रताप- छात्र नौकरी देने वाले बनें न कि तलाशने वाले

उपलब्ध संसाधनों को बेहतर तरीके से उपयोग करते हुए नवीन शिक्षा नीति-2020 के उद्देश्यों के अनुरूप कार्यक्रम तैयार करें

Update: 2023-09-06 16:51 GMT

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने भारत सरकार द्वारा प्राख्याति नवीन शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों का वर्तमान परिदृष्य एवं भावी रणनीति विषय पर आयोजित उच्च स्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों द्वारा ऐसे सुझाव प्रस्तुत किये जाएं कि संस्थाओं में उपलब्ध संसाधनों को बेहतर तरीके से उपयोग करते हुए नवीन शिक्षा नीति-2020 के उद्देश्यों के अनुरूप कार्यक्रम तैयार किया जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में स्थिति भारत सरकार के विश्वविद्यालय व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की संस्थाओं को भी कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा बेहतर परिणाम हेतु अपने कार्यक्रमों नेटवर्किंग में शामिल किया जाए। विश्वविद्यालय के छात्रों को विदेशी संस्थाओं में भेजने तथा विदेशी छात्रों को प्रदेश के विश्वविद्यालयों में दाखिले को बढ़ावा देने हेतु संस्थानों में वैश्विक स्तर की सुविधाएं विकसित किये जाने के क्रम में विश्वविद्यालयों द्वारा कार्यक्रम तैयार किया जाए। प्रदेश के समस्त कृषि विश्वविद्यालय आपस में मिलकर कृषि शिक्षा से संबंधित ऐसे कार्यक्रम तैयार करें कि क्षमता विकास से संबंधित कोर्स को बढ़ावा मिले जिससे छात्र नौकरी तलाशने वाले न बनकर नौकरी देने वाले बन सके। उन्होंने यह भी कहा कि हर 3 माह में इस प्रकार की बैठक कर विश्वविद्यालयों, उपकार एवं उ.प्र. शासन द्वारा इस दिशा में प्रभावी रणनीति बनाई जाए कि निर्धारित समय सीमा में नवीन शिक्षा नीति-2020 को पूर्णता के साथ प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में लागू किया जा सके। इस दौरान कृषि प्रबंधन संस्थान रहमानखेड़ा के पोर्टल का शुभारम्भ भी किया गया।

कृषि राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख द्वारा भी बैठक में अपने विचार व्यक्त करते हुए कृषि विश्वविद्यालयो में नवीन शिक्षा नीति-2020 के महत्व पर प्रकाश डाला।

अपर मुख्य सचिव, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, उ.प्र. शासन डा. देवेश चतुर्वेदी ने बैठक में अवगत कराया कि वर्ष 2030 तक प्रदेश के समस्त कृषि विश्वविद्यालयों में नवीन शिक्षा नीति-2020 को लागू किया जाना है। इसलिए विभिन्न पहलुओं पर सभी विश्वविद्यालयों नवीन शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप टाइमलाइन तैयार कर लें जिससे समय से इसे प्रदेश के कृषि शिक्षा के हित में पूर्णता के साथ लागू किया जा सके तथा उन्होनें आवह्न किया कि समस्त कृषि विश्वविद्यालयों के उपस्थिति कुलपतिगण, विशेषज्ञ, अधिकारीगण इस क्रम में तथ्यगत सुझाव प्रस्तुत करें।

सचिव, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान उ.प्र. शासन डा. राज शेखर ने नवीन शिक्षा नीति-2020 के मुख्य-मुख्य बिन्दुओं का उल्लेख करते हुए समस्त कृषि विश्वविद्यालयों कि इनको उत्तर प्रदेश के कृषि शिक्षा के क्षेत्र में पूर्णता के साथ लागू किया जाना आवश्यक है। इसलिए समस्त कृषि विश्वविद्यालय इस संबंध में गहन तैयारी तैयार कर लें।

कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग, उ.प्र. शासन तथा उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ द्वारा किसान मण्डी भवन लखनऊ में आयोजित बैठक में उपकार के महानिदेशक डा. संजय सिंह द्वारा प्रदेश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ बैठक कर नवीन शिक्षा नीति-2020 को प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में अपनाये जाने के क्रम में मुख्य-मुख्य बिन्दुओं पर संस्तुतियाँ प्रस्तुत की गयीं ।

बैठक में कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति डा. ए.के. सिंह, कृषि विश्वविद्यालय, अयोध्या के कुलपति, डा. बिजेन्द्र सिंह, कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति डा. के.के. सिंह तथा कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा के कुलपति डा. एन.पी. सिंह ने नवीन शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में संबंधित विश्वविद्यालयों में अपनाये गये क्रियाकलापों को विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया। केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी के निदेशक शोध डा. एस.के. चतुर्वेदी, शुआट्स, कृषि विश्वद्यिालय, प्रयागराज के अधिष्ठाता, डा. विश्वरूप मेहरा तथा पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय, मथुरा के कुलसचिव, डा. ए. के. मदान ने भी अपने विश्वविद्यालय में नवीन शिक्षा नीति-2020 के सन्दर्भ में अपनाये गये क्रियाकलापों का प्रस्तुतीकरण किया।

प्रस्तुतीकरण के दौरान यह संज्ञान में लाया गया कि नवीन शिक्षा नीति-2020 के प्राविधानों के अनुरूप प्रत्येक कृषि विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत बढ़ाते हुए वर्ष 2030 तक 3000 करना है। इसी प्रकार विश्वविद्यालयों को बहुआयामी संस्था के रूप में विकसित किये जाने के रूप में विभिन्न प्रमाण-पत्र कोर्स, डिप्लोमा एवं अन्य प्रकार के क्षमता विकास कोर्स प्रारम्भ किया जाना होगा साथ ही क्षेत्र विशेष में स्थिति विश्वविद्यालयों के छात्रों को लोक नृत्य, लोक गायन तथा डिजिटल वर्किंग के कोर्स को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।

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