शख्सियत-भाजपा संगठन के लिए समर्पित है हरेन्द्र पाल
वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी के पिछडा मोर्चा के अध्यक्ष हरेन्द्र पाल का जीवन कडे संघर्षो से कम नही रहा।
मुज़फ्फरनगर। राजनीती शब्द सुनते मन मे ये ख्याल आने लगता है कि राजनीति सिर्फ बडे लोगो के लिए ही बनी है। मुजफ्फरनगर जनपद का एक युवा चहरा जो राजनीति मे अपने अदम्य साहस के बलबूते पर बडे बडे राजनैतिक धुरधंरो के साथ कंधे से कंधे मिलाकर खडा है और उन्होने राजनीति मे प्रचलित कहावत की राजनीति सिर्फ बडे लोगो के लिए बनी है को गलत साबित कर दिया।
वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी के पिछडा मोर्चा के अध्यक्ष हरेन्द्र पाल का जीवन कडे संघर्षो से कम नही रहा। हरेन्द्र का जन्म 1 मई 1982 को मुजफ्फरनगर जनपद के गांव खामपुर मे हुआ। जब वो मात्र डेढ वर्ष के थे, और उन्हे मां के प्यार और दुलार की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तभी ईश्वर ने उनसे माॅं का साया छिन लिया ।घर मे चार बहनो मे सबसे छाटे हरेन्द्र बचपन से ही सामाजिक कार्यो मे बढ चढकर हिस्सा लेते रहे। स्कूल टाइम से ही से संघ के कार्यकर्मो मे लगातार उपस्थिति दर्ज कराकर हरेन्द्र ने राष्ट्र प्रेम के प्रति अपने प्रेम को और अधिक गहराई से जागृत किया ।
सामाजिक जीवन की महानता का परिचय उनके गाॅव की एक घटना से लगाया जा सकता है,उन्होने खुद को मिलने वाली सरकारी लाभ को ठुकराते हुए अन्य व्यक्ति को उसका लाभ दे दिया था। दरअसल हरेन्द्र का घर कच्ची मिटटी से बना था जो अधिक बरसात होने के कारण ढह गया था। ग्राम प्रधान द्वारा सरकारी योजना के तहत मकान बनवाने के लिए का प्रस्ताव दिया गया जिसको सरकार द्वारा भी स्वीेकृ्ति मिल गयी हालाकि हरेन्द्र को इस बात का जरा भी अहसास नही था । मकान की पात्रता को जांचने के लिए सदर एस डी एम और तहसीलद्वार ने गांव मे एक मीटिंग का आयोजन कराया जिसमे हरेन्द्र को ये जानकारी दी गयी कि आपका घर सरकारी योजना से बनाया जा रहा हैै। सभी गाॅव वालो द्वारा भी उनको पात्र बताया मगर हरेन्द्र ने भरी सभा मे ये कहते हुए मना कर दिया की वह अपनी कमाई से अपना घर बनाना चाहते है जिसके लिए वह सक्षम भी है ,गाॅव मे उनसे भी ज्यादा पात्र व्यक्ति है उनको इस योजना का लाभ मिलना चाहिए। गाॅव के ही एक व्यक्ति जो आर्थिक,शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर था उसका मकान उस सरकारी योजना से बनवाया गया। इस तरह सरकारी योजना का योजना का लाभ ने लेकर हरेन्द्र ने जता दिया कि वो अपने दम पर सब कुछ हासिल कर सकते है।
इनके राजनैतिक जीवन की शुरूआत वर्ष 2002 मे हुई जब उनके राजनीतिक गुरू रामपाल सिंह टेलर को भारतीय जनता पार्टी द्वारा चरथावल विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया और उनके द्वारा हरेन्द्र पाल को भाजपा की सदस्यता दिलायी गयी। उस चुनाव मे भाजपा को तो सफलता नही मिली मगर हरेन्द्र को राजनीति मे कदम रखने के लिए संजीवनी मिल गयी थी,उन्होने इस चुनाव मे हर वो गुण अपने अन्दर समाने का प्रयास किया जिस गुण की जरूरत राजनीति मे जरूरत होती है। अपने प्रथम राजनीतिक चुनाव मे हरेन्द्र ने जिस तरह मेहनत की थी उसी रास्ते पर चलकर वो आज भी भारतीय जनता पार्टी को सुशोभित कर रहे है। राजैेतिक जीवन की शुरूआत मे ही पिता मांगेराम का निधन होना भी उनके जीवन की बहुत बडी क्षति थी। पिता के निधन से राजनीति के साथ साथ आर्थिक जीवन को भी धक्का लगा, मगर उनके दृृढ संकल्प के आगे सब कुछ नतमस्तक हो गया ।
वर्ष 2004 मे कैराना लोकसभा के चुनाव मे भाजपा के उम्मीदवार अमरकांत राणा ने लडा। अमरकांत राणा भी चुनाव हार गये मगर उस चुनाव मे हरेन्द्र ने जो मेहनत भारतीय जनता पार्टी के लिये की उसने हरेन्द्र को एक नई पहचान दी। भारतीय जनता पार्टी ने उनकी मेहनत को देखते हुए उन्हे भाजपा मंडल महामंत्री की जिम्मेदारी दी।लम्बे समय तक पार्टी में काम करने के कारण हरेन्द्र को जिला महामंत्री युवा मोर्चा की जिम्मेदारी दी गयी और पार्टी ने वर्ष 2015 के जिला पंचायत चुनाव में उनको वार्ड नम्बर 10 के चुनाव में अपना समर्थन दिया। चुनाव कडा हुआ एक तरफ थे, भाजपा समर्थित प्रत्याशी हरेन्द्र पाल, वहीं दूसरी और बसपा पार्टी से समर्थन प्राप्त हरेन्द्र शर्मा। कड़ी चुनावी सभाओं के बाद मतदान हुआ और एक दिन वो भी आया जब चुनाव परिणाम सामने आने थे। हरेन्द्र पाल का आरोप है कि प्रथम बार गिनती होने के बाद वह 198 वोटों से चुनाव जीत गये मगर सपा शासन के दबाव के कारण दोबारा गिनती कराई गयी जिसमें उन्हे 70 वोटो से हरा दिया गया। उसके बाद शासन प्रशासन से लाख विनती की गयी कि एक बार और गिनती की जाये मगर प्रशासन ने एक न सुनी और हरेन्द्र शर्मा को विजयी घोषित कर दिया। हरेन्द्र पाल के समर्थको ने लगभग 4 से 5 दिनों तक जिलाधिकारी कार्यालय पर दोबारा गिनती कराने के लिये रात दिन धरना दिया उस धरने में लगभग 7 से 8 हजार लोग रात दिन जिलाधिकारी के कार्यालय के बाहर डटे हुए थे। तत्कालीन जिलाधिकारी निखिल चन्द्र शुक्ला ने सभी को यह आश्वासन दिया कि एक और बार गिनती कराई जायेगी और धरना समाप्त करा दिया, पर वह दिन कभी लौट कर नही आया जब गिनती कराई जाये। इस जीती हुई हार को भी हरेन्द्र ने चुनौती मानते हुए स्वीकार किया और राजनीति में जीवनचर्या को जारी रखा। आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने भी उनके राजनीतिक जीवन को देखते हुए भाजपा पिछडा मोर्चा का जिलाध्यक्ष मनोनित किया।
राजनीति में नरेन्द्र मोदी को अपना आदर्श मानने वाले हरेन्द्र पाल ने बताया कि उनका राजनीति में सिर्फ एक ही लक्ष्य है। गरीब ओर वचिंत समाज को उसका हक दिलाना पिछडे, समाज की लडाई को आगे बढाना। प्रत्येक गरीब व्यक्ति जो सरकारी योजनाओं के लिये पात्र है, उनको सरकारी योजनाओं का ज्यादा से ज्यादा लाभ मिले। जिसके लिये वह प्रयासरत रहते है। चुनाव लडने के कारण का जवाब देते हुए हरेन्द्र ने बताया कि अक्सर लोग चुनाव के वक्त ही लोगो को याद करते हे और चुनाव जितने के बाद सारे वादे छूमंतर हो जाते है, मगर उनकी न तो कोई ऐसी मंशा है, और न ही वह ऐसा करना चाहते है क्योकि अगर राजनीति करनी है तो ऐसी करो तो दुनिया तुम्हारे काम के लिये तुम्हे याद करे।
वास्तव में जीवन में इतने कडे संघर्षो के बीच राजनीति मे टिके रहना हर किसी के बसकी बात नही है,अगर सफल होना है तो जीवन मे आने वाली कठिनाईयो का सामना करना ही होगा । संघर्ष और पराजय से न केवल अनुभव मिलता बल्कि और भी तेजी से आगे बढने का हौसला हमारे पास होता है। हरेन्द्र पाल का जीवन वाकई मे प्रेरणा लेने लायक है।