ज्ञानवापी प्रकरण: जिला अदालत पहले यह तय करेगी कि वाद पर सुनवाई हो या नहीं
परिसर में मौजूद श्रंगार गौरी की पूजा अर्चना का अधिकार दिये जाने संबंधी वाद पर न्यायालय में सुनवाई हो सकती है या नहीं
वाराणसी। उत्तर प्रदेश में वाराणसी स्थित जिला एवं सत्र न्यायालय, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर प्रकरण पर सबसे पहले इस बात पर सुनवाई करेगी कि परिसर में मौजूद श्रंगार गौरी की पूजा अर्चना का अधिकार दिये जाने संबंधी वाद पर न्यायालय में सुनवाई हो सकती है या नहीं। इसके लिये गुरुवार 26 मई की तिथि तय की गयी है।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा अजय कृष्ण विश्वेश ने ज्ञानवापी मामले की सुनवाई करते पर मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में इस न्यायालय के लिये आवश्यक है कि वह प्राथमिकता के आधार पर प्रतिवादी पक्ष के इस आवेदन पर विचार करे कि श्रंगार गौरी संबंधी वाद पर अदालत में सुनवाई हो सकती है या नहीं। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 20 मई को यह वाद सुनवाई के लिये सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत से जिला जज की अदालत को हस्तांतरित कर दिया था। साथ ही न्यायालय ने इसके पहले 17 मई के अपने अंतरिम आदेश को बरकरार रखा था।
जिला न्यायाधीश ने मस्जिद प्रबंधक कमेटी की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 07 नियम 11 संबंधी प्रार्थनापत्र पर सुनवाई के लिये 26 मई की तारीख तय की है। इसके साथ ही अदालत ने वीडियोग्राफी सर्वे रिपोर्ट पर विभिन्न पक्षों की आपत्तियों को दर्ज कराने के लिये 07 दिन का समय दिया है।
अदालत में मस्जिद प्रबंधन कमेटी की ओर से यह दलील दी गयी थी कि वर्ष 1991 के धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून के परिप्रेक्ष्य में इस वाद पर अदालत में सुनवाई नहीं हो सकती है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 07 नियम 11 के तहत इस संबंध में आवेदन दिया गया था। संबंधित कानून में धार्मिक स्थलों का स्वरूप 15 अगस्त 1947 जैसा बनाये रखने का प्रावधान है।
जिला न्यायाधीश के फैसले के अनुसार उच्चतम न्यायालय के 17 मई के अंतरिम आदेश के परिप्रेक्ष्य में सविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर द्वारा सर्वे रिपोर्ट पर आपत्तियां आमंत्रित करने का आदेश वर्तमान में प्रभावी है। न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि वाद की सुनवाई हाे या न हो, इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने प्राथमिकता के आधार पर अावेदन के निस्तारण का निर्देश दिया है। इसके बाद अन्य प्रार्थना पत्रों का निस्तारण किया जा सकता है।
जिला जज के फैसले में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत की इस मामले में की गयी कार्यवाही तथा बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में हुयी सुनवाई का ब्यौरा दिया गया है। जिला जज ने अपने फैसले में कहा कि प्रतिवादी की दलील है कि, "सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने 16 मई को वादी पक्ष के औपचारिक प्रार्थना पत्र पर एकपक्षीय रूप से आदेश पारित करते हुए कथित रूप से शिवलिंग मिलने की महज धारणा के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर स्थित पानी के हौज व फव्वारे को सील करने का आदेश बिना क्षेत्राधिकार के और बिना कमीशन की रिपोर्ट आये पारित कर दिया।"
इस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी। उच्चतम न्यायालय ने 20 मई को आदेश पारित करते हुए उक्त मुकदमे को सीनियर जज सिविल डिवीजन के न्यायालय से जिला जज न्यायालय को हस्तांतरित कर दिया। साथ ही प्रतिवादी पक्ष के आदेश 07 नियम 11 के तहत दिये गये आवेदन पत्र पर सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर पहले करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने वाद की पोषणीयता पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई किये जाने के साथ ही यह भी कहा है कि उसका गत 17 मई का अंतरिम आदेश बरकरार है।
उल्लेखनीय है कि इस आदेश में उच्चतम न्यायालय ने स्थानीय अदालत की ओर से इंगित शिवलिंग स्थल की सुरक्षा का जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया था। जिला न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि वाद की पोषणीयता के बारे में उच्चतम न्यायालय का आदेश आवेदन के निस्तारण के पश्चात भी आठ सप्ताह तक प्रभावी रहेगा।
वार्ता