डीएसपी चमन सिंह चावडा-जब चरवाहा बनकर डकैतों से बचाया एक जीवन
चमन सिंह चावडा को इसी साहसिक कार्य के लिए 15 अगस्त को 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर डीजीपी की ओर से प्रशंसा चिन्ह रजत प्रदान कर सम्मानित किया गया।
मुजफ्फरनगर। क्रिमीनल को उनका दिगाम पढ़कर मात देना और कम से कम नुकसान पर किसी भी वारदात के बाद रिकवरी, यही पुलिस की रणनीति का हिस्सा होता है। यूं तो सभी पुलिस अफसर इस रणनीति को लेकर अपना-अपना दायित्व निभाते हैं, लेकिन पुलिस अफसर अपनी रणनीतिक कौशल और चतुराई से ऐसी चुनौतीपूर्ण वारदातों में अप्रत्याशित सफलता अर्जित करते हुए सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं, जो काबिले तारीफ बन जाता है। यूपी पुलिस के ऐसे ही एक अफसर हैं डीएसपी चमन सिंह चावडा। क्राईम पर उनकी पकड़ ऐसी है कि इस साल 2020 में 74वें स्वतंत्रता दिवस पर उनकी कार्यशैली की सराहना यूपी पुलिस के मुखिया भी करने से पीछे नहीं हटे और जब तिरंगा आकाश में शान से लहरा रहा था तो डीएसपी चमन सिंह चावडा की वर्दी डीजीपी के प्रशंसा चिन्ह से चमक रही थी।
वर्तमान में आगरा में डीएसपी के पद पर कार्यरत चमन सिंह चावडा ने पुलिस फोर्स में अपनी कुशाग्र बुद्धि, रणनीतिक कार्यशैली और अपराध उन्मूलन के लिए साहसिक निर्णय लेने की क्षमता के बल पर आज अलग मुकाम बनाया है। उनको पुलिस फोर्स में आज जो मुकाम हासिल है, वह सहरानीय सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनकी सर्विस लाइफ में कई बड़े बदमाशों के एनकाउंटर शामिल हैं, तो उनके नाम अनेक ऐसी वारदातों से पर्दा उठाने की कहानी भी दर्ज है, जो पुलिस के लिए किसी बिग चैलेंज से कम नहीं थी। ऐसी ही एक वारदात आगरा में घटित हुई। इसमें राजस्थान के डकैतों के एक कुख्यात गिरोह ने 03 फरवरी 2020 को फिरोजाबाद के अधिवक्ता अकरम अंसारी का आगरा के सिकन्दरा से फिरोती के लिए अपहरण कर लिया था। इस अपहरण कांड से यूपी में हलचल मच गई थी। सरकार ने अधिवक्ता की सकुशल बरामदगी पर जोर दिया तो आगरा जोन के एडीजी अजय आनन्द, आईजी ए. सतीश गणेश और एसएसपी बबलू कुमार ने पूरी रणनीति के साथ इसके लिए टीम चुनी। इसमें आठ एसएचओ और 12 कॉन्स्टेबल शामिल रहे।
इस टीम के लीडर के रूप में डीएसपी कोतवाली चमन सिंह चावडा को चुना गया और एक बेहद खतरनाक टास्क देकर राजस्थान के बीहड़ में उतार दिया गया। इस अपहरण कांड के 14 दिन बाद 17 फरवरी 2020 को अधिवक्ता अकरम अंसारी सकुशल परिजनों के बीच पहुंचे और इस वारदात को अंजाम देने वाले डकैत उग्रसैन व उसके पांच साथी पुलिस की गिरफ्त में थे। इन 14 दिनों में अधिवक्ता अकरम की बरामदगी के लिए डीएसपी चमन सिंह चावडा ने जिस 'इंटेलिजेंस पुलिसिंग' का प्रदर्शन किया, उसकी प्रशंसा करने में आगरा जोन के साथ ही यूपी के पुलिस अफसर भी पीछे नहीं रहे। एसएसपी बबलू कुमार ने तो यहां तक कहा था कि वह खुद को लकी मानते हैं कि उनके पास जिले में चमन सिंह चावडा जैसे अफसरों की टीम है।
अधिवक्ता अकरम को बदमाशों के चंगुल से छुड़ाने के लिए पुलिस ने संयम और धैर्य के साथ बेहतरीन टीम वर्क भी किया। डीएसपी चमन सिंह चावडा के नेतृत्व में 40 घंटे तक बिना थके और सोए 10 टीमें लगातार बीहड़ की खाक छानती रहीं। बदमाशों के बीच उन्हीं के वेश में रहकर पूरी इंटेलीजेंस जुटाई और फिर अटैक कर 'पकड़' को छुड़ाते हुए सरकार का भी इकबाल बुलन्द किया। इस टास्क को पूरा करने के लिए डीएसपी चमन सिंह अपनी टीम के साथ राजस्थान के बीहड में किसान बने, तो कुछ पुलिसकर्मी वहां चरवाहा का वेश धरकर ग्रामीणों में घुल मिल गये थे।
चमन सिंह चावडा को इसी साहसिक कार्य के लिए 15 अगस्त को 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर डीजीपी की ओर से प्रशंसा चिन्ह रजत प्रदान कर सम्मानित किया गया। यह पदक ध्वजारोहण के बाद एसएसपी ने चमन सिंह चावडा की वर्दी पर टैग किया और उनको प्रमाण पत्र भी सौंपा। चमन सिंह चावडा इस चैलेंजिंग टास्क को लेकर बताते हैं, ''अधिवक्ता अकरम की बरामदगी पूरी तरह से एक ब्लाइंड केस था, इसके लिए एसएसपी ने आॅपरेशन अकरम मुक्त अभियान चलाया। पांच फरवरी को बदमाशों ने अधिवक्ता के भाई असलम को फोन 55 लाख की फिरौती मांगी थी। कई बार में यह फिरौती की रकम डन की गयी, असलम को हमने अपने साथ रखा। डकैतों को फिरौती की रकम 12 लाख रुपये दी गई। 17 फरवरी को अकरम की बरामदगी के साथ ही हमने इस फिरौती की रकम में से 10 लाख रुपये बरामद कर लिये थे।''
बड़े भाई का जीवन बना करियर की प्रेरणा
चमन सिंह चावडा के पुलिस फोर्स में आने की प्रेरणा उनके बड़े भाई बने। वह यूपी पुलिस में डीएसपी के पद से रिटायर हो चुके हैं। मूल रूप से वेस्ट यूपी के जिला बबूपुर निवासी चमन सिंह चावडा ने साल 2001 में उप निरीक्षक के रूप में यूपी पुलिस को ज्वाइन किया। पुलिस फोर्स में आने के साथ ही वह अपनी कार्यशैली के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रूप में वह पहचान बनाने में सफल रहे। 2004 में उनको सराहनीय कार्य करने के चलते आउट आॅफ टर्न प्रमोशन दिया और वह इंस्पेक्टर बन गये। इंस्पेक्टर के रूप में चमन सिंह चावडा सहारनपुर, बिजनौर, कानपुर और मुजफ्फरनगर में तैनात रहे। वह शहर कोतवाली मुजफ्फरनगर, देवबन्द और गंगोह थानों में प्रभारी रहे। चमन सिंह कहते हैं, ''उनके जीवन में बड़े भाई की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उन्होंने हमेशा ही मार्गदर्शन किया। वह अपने भाई पर गर्व महसूस करते हैं। परिवार को सफलता की कुंजी मानने वाले चमन सिंह का कहना है कि खाकी सम्मान से जीने का तरीका सिखाने के साथ ही आम आदमी को न्याय दिलाने के अवसर भी हमें उपलब्ध कराती है। चमन सिंह ने लाॅक डाउन के दौरान अपने क्षेत्र में कई गरीब परिवारों और जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंचाने का काम किया, वह कहते हैं, ''हमें अपनी सेवा और सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए जरूरतमंद की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।''
दो सिपाहियों के हत्यारे कुख्यात कग्गा को किया ढेर
देबवन्द में प्रभारी निरीक्षक रहते हुए चमन सिंह चावडा ने जीन्द की एक लड़की द्वारा रेप केस दर्ज कराने के बाद मसूद मदनी को गिरफ्तार कर जेल भेजा था, मसूद देवबन्द की मदनी फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। उनकी गिरफ्तारी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी। मुजफ्फरनगर में बुढ़ाना कोतवाली के प्रभारी रहते हुए चमन सिंह ने जहां 22 लाख रुपये की बड़ी लूट की वारदात को 17 लाख रुपये बरामदगी के साथ खोला तो वहीं उन्होंने एक लाख के ईनामी बदमाश फुरकान को ढेर किया था। गंगोह सहारनपुर में थाना प्रभारी के रूप में उन्होंने आतंक और दहशत का पर्याय बने कुख्यात एक लाख के ईनामी कग्गा उर्फ मुस्तफा को मुठभेड़ में मार गिराया था। कग्गा का झिंझाना और गंगोह क्षेत्र में बड़ा आतंक था, पुलिस चैकिंग के दौरान कग्गा दो पुलिस कर्मियों की हत्या कर फरार हुआ था। इस साहसिक कार्य के लिए चमन सिंह को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बुढ़ाना कोतवाली में प्रभारी निरीक्षक रहते हुए उनका प्रमोशन डीएसपी के पद पर हुआ और इसके बाद यहां से उनका स्थानांतरण आगरा कर दिया गया था, वह वहीं पर तैनात हैं।