शाही की सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई के आसार
योगी सरकार के वरिष्ठ मंत्री सूर्य प्रतापशाही के सम्मुख इस चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष की तस्वीर बनती दिख रही है।
देवरिया। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की अतिविशिष्ट सीट में शुमार पथरदेवा विधानसभा सीट पर योगी सरकार के वरिष्ठ मंत्री सूर्य प्रतापशाही के सम्मुख इस चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष की तस्वीर बनती दिख रही है।
भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में शाही को समाजवादी पार्टी से पूर्व मंत्री ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी और बहुजन समाज पार्टी के परवेज आलम से चुनौती मिल रही है। चुनावी विश्लेषकों के अनुसार शाही और त्रिपाठी, इससे पहले भी कुशीनगर जिले की कसया विधान सभा सीट पर चुनावी अखाड़े में दो-दो हाथ कर चुके हैं। कई साल बाद, सियासत के दोनों दिग्गज एक बार फिर आमने सामने हैं।
पथरदेवा की चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का काम बसपा के परवेज आलम ने किया। परवेज आलम, यहां से पूर्व विधायक और सपा सरकार में मंत्री रहे स्वर्गीय शाकिर अली के बेटे हैं। वह हाल ही में सपा छोड़ कर बसपा में शामिल हुए हैं।
शाही और त्रिपाठी वर्ष 1985 से एक दूसरे को चुनावी चुनौती देते आये हैं। कसया सीट पर 1985 में शाही ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे त्रिपाठी को 559 वोटों से पराजित किया था। त्रिपाठी ने 1989 में इस हार का बदला जनता दल उम्मीदवार के रूप में भाजपा के शाही को हराकर चुकाया और पहली बार विधायक बने।
इस बीच राजनीतिक समीकरण बदले और 1991 में मध्यावधि चुनाव हुआ। राम लहर के उफान के बीच भाजपा से सूर्य प्रताप शाही ने त्रिपाठी को पराजित कर दिया। इसके बाद 1993 में त्रिपाठी ने शाही को फिर पराजित कर दिया।
1996 के चुनाव में त्रिपाठी ने जनता दल को अलविदा कह कर सपा का दामन थाम लिया। उन्होंने 2002 एवं 2007 में शाही को हराया। साल 2009 के परिसीमन में कसया विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म हो गया। परिसीमन के बाद 2012 में हुए पहले चुनाव में त्रिपाठी कुशीनगर विधानसभा क्षेत्र और शाही नवसृजित पथरदेवा सीट से चुनावी समर में आए। इस चुनाव में सपा के शाकिर अली ने शाही को हरा दिया। शाही ने 2017 में शाकिर अली को पराजित किया था।
अली के इंतकाल के बाद अब 2022 में उनके बेटे परवेज आलम सपा के बजाय बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। गौरतलब है कि मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता वाली पथरदेवा विधानसभा सीट पर कुल 3,35,755 मतदाता है।
परवेज आलम को विश्वास है कि उन्हें बसपा के परम्परागत वोट के साथ मुसलमानों का समर्थन मिलने से नैया पार हो जायेगी। उनके इस भरोसे ने ही पथरदेवा की चुनावी जंग को त्रिकोणीय बना दिया है।