बसपा और आसपा ने मीरापुर सीट पर कमजोर प्रत्याशियों पर क्यों लगाया दांव!
मीरापुर विधानसभा सीट के उप चुनाव में बसपा ने शाहनजर और आजाद समाज पार्टी ने जाहिद हसन जैसे कमजोर प्रत्याशी उतारे हैं।
मुज़फ्फर नगर। अभी तक उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के लिए घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने प्रभारी तो आजाद समाज पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। झोझा बिरादरी से आने वाले दोनों प्रत्याशियों की कोई सामाजिक, राजनीतिक पहचान मीरापुर इलाके में नहीं है फिर बसपा और आजाद समाज पार्टी ने किस आधार पर इन नाम पर मोहर लगाई है जबकि बसपा और आजाद समाज पार्टी के पास बड़े-बड़े चेहरे दावेदार थे लेकिन आखिरकार कमजोर प्रत्याशी उतारने के पीछे प्रदेश में लगातार कमजोर पड़ती जा रही बसपा और अपने उभरते समय में आजाद समाज पार्टी ने क्या सोचकर इन पर दांव लगाया है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट से चंदन चौहान सांसद बने तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अब मीरापुर सीट पर हर राजनीतिक दल चुनाव लड़कर जीतना चाहता है। सबसे पहले हम बात करेंगे बहुजन समाज पार्टी की। 2022 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा केवल एक सीट जीत पाई थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में तो बसपा पूरी तरह ध्वस्त गई। इसके बाद पहली बार बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया। मायावती के इस फैसले के बाद राजनैतिक हल्कों में माना जा रहा था कि बसपा इन 10 विधानसभा सीटों पर अपने मजबूत प्रत्याशी उतार कर कहीं ना कहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति में वापसी करेगी लेकिन मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट पर जिस शाहनजर को बसपा ने प्रभारी बनाया है, बसपा में प्रभारी का मतलब ही प्रत्याशी माना जाता है, कि कोई सामाजिक, राजनीतिक पहचान नहीं है । शाह नजर की पहचान केवल कमहेडा गांव के प्रधान शाहनवाज के भाई के रूप में होती है।
झोझा बिरादरी से आने वाले शाह नजर को जब बसपा का प्रभारी घोषित किया गया और वह जब बसपा प्रमुख मायावती के पास पहुंचे तो एक तस्वीर वहां खींची गई जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई। उस तस्वीर में ककरौली के रहने वाले जिला पंचायत सदस्य शाहनवाज के भाई और 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के प्रत्याशी रहे मौलाना सालिम के साथ शाह नजर भी दिखाई पड़ रहे थे। अब राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि शाहनवाज के खिलाफ एक मामले में पुलिस कार्रवाई के बाद शाहनवाज भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गया था और तब से शाहनवाज की भाजपा नेताओं के साथ नजदीकियां है। हालांकि मौलाना सालिम बसपा में ही है।
राजनीतिक समीकरण जानने वालों का कहना है कि कहीं ना कहीं शाह नजर के बहाने भारतीय जनता पार्टी गठबंधन अपनी गोटे फिट करने में लगा है ताकि मुस्लिम मतों का बंटवारा कैसे हो। राजनीतिक और सामाजिक पहचान नहीं होना शाह नजर के लिए उनकी कमजोर कड़ी नजर आती है। जबकि अगर बसपा के दावेदारों में हम बात करें तो सबसे पहले 2012 में जब मीरापुर सीट अपने वजूद में आई थी तब मौलाना जमील को बसपा ने टिकट दिया था। मौलाना जमील की चूंकि धार्मिक तौर पर पूरे मीरापुर इलाके में अपनी एक पहचान थी और उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव जीत भी लिया था। इसके साथ ही कई बड़े अखबारों में काम कर चुके पुराने पत्रकार रणवीर सैनी भी बसपा से टिकट मांग रहे थे। इसके साथ ही जाट नेता के तौर पर बसपा के पुराने नेता मनोज मांडी भी जाट, दलित और अति पिछड़ों के समीकरण पर टिकट मांग रहे थे। पूर्व सांसद सईदुज्जमा के बेटे सलमान सईद और श्रीपाल पाल भी दावेदारों में शामिल थे लेकिन बसपा ने मजबूत उम्मीदवारों को दरकिनार कर शाहनजर जैसे अनजाने चेहरे पर दांव लगाकर कहीं ना कहीं उपचुनाव में मीरापुर विधानसभा सीट पर खुद का बड़ा नुकसान करने की तैयारी कर ली है।
इसके साथ ही आजाद समाज पार्टी काशीराम के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर के नगीना से सांसद बनने के बाद आजाद समाज पार्टी का चढ़ता उरूज दिखाई पड़ने लगा था। आजाद समाज पार्टी ने रूडकली गांव के निवासी नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी चलाने वाले जाहिद को अपना टिकट थमा दिया है। जाहिद भी झोझा बिरादरी से आते हैं लेकिन उनकी सामाजिक - राजनीतिक पहचान मीरापुर विधानसभा में नहीं है जबकि उसके उलट आजाद समाज पार्टी से पूर्व विधायक शाहनवाज राणा भी टिकट मांग रहे थे। शाहनवाज राणा 2014 में बिजनौर लोकसभा सीट से जब चुनाव लड़े थे तब मीरापुर विधानसभा सीट पर उन्हें अच्छी खासी वोट भी मिली थी और शाहनवाज राणा ने मीरापुर विधानसभा पर अपनी तैयारी भी शुरू कर दी थी लेकिन शाहनवाज राणा का आजाद समाज पार्टी ने पत्ता काट दिया है।
इसके साथ ही सरदार अमरजीत भी खादर इलाके के अपने सिख समुदाय के वोटो के आधार पर मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे थे लेकिन आजाद समाज पार्टी ने भी अनजाने चेहरे जाहिद पर ही भरोसा जाता दिया। कुल मिलाकर प्रदेश में राजनीतिक रूप से लगातार पिछड़ती जा रही बसपा ने शाहनजर और अपने राजनीतिक कैरियर में बढ़ रही आजाद समाज पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में जाहिद जैसे कमजोर प्रत्याशी पर दांव लगाकर कहीं ना कहीं मीरापुर विधानसभा सीट पर अपनी करारी हार तय कर ली है। हालांकि विधानसभा चुनाव में अभी समय बाकी है। टिकट की अदला-बदली होगी या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन मीरापुर विधानसभा सीट पर बसपा और आजाद समाज पार्टी दोनों के प्रत्याशियों को कमजोर कैंडिडेट के रूप में जाना जा रहा है। जब से दोनो के टिकट की घोषणा हुई है तब से मीरापुर विधानसभा के लोग इसी बात को जानने में लगे हैं कि जाहिद और शाहनजर कौन है।