स्वामी प्रसाद मौर्य की इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष
जातीय समीकरणों के अनुसार सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या अल्पसंख्यक समाज की है
कुशीनगर। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) छोड़ कर समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थामने वाले पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को कुशीनगर की फाजिलनगर सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।
फाजिलनगर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरणों के अनुसार सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या अल्पसंख्यक समाज की है, उसके बाद ब्राह्मण और फिर कुर्मी मतदाता हैं। इस सीट पर चौथे नम्बर पर कुशवाहा, पांचवे नम्बर पर दलित समाज तो छठवें नम्बर पर यादव व वैश्य समाज के मतदाता हैं।
सपा के प्रत्याशी स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने भाजपा ने इस सीट से लगातार दो बार विधायक रहे गंगा सिंह कुशवाहा के पुत्र सुरेंद्र कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है जबकि बसपा ने सपा के कद्दावर नेता रहे इलियास अंसारी को अपने साथ जोड़ कर चुनाव मैदान में उतारा है।
राजनीतिक जानकार बताते है कि फाजिलनगर का चुनाव भाजपा की नाक का सवाल है। स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा सरकार में मंत्री थे और दर्जन भर नेताओं के साथ भाजपा पर गम्भीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ सपा का दामन थामते हुए प्रदेश में सपा की सरकार बनाने के लिए धुंआंधार चुनाव प्रचार में लगे थे। यहां उनके पुत्र अशोक मौर्य उनके लिए चुनावी जंग की पिच तैयार की है। अब स्वामी प्रसाद मौर्य खुद क्षेत्र में पहुंच कमान संभाल चुके है जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ने स्वामी प्रसाद मौर्य को घेरने के लिए चक्रव्यूह रचना शुरू कर दिया है। इसके लिए पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों को यहां भेजना शुरू कर दिया है।
बसपा प्रत्याशी दलित समाज के साथ अल्पसंख्यक समाज को अपने साथ जोड़ बड़ा धमाल करने की रणनीति बना रहे है। बसपा प्रत्याशी इलियास अंसारी का सर्वसमाज में अच्छी पकड़ बताई जा रही है। ऐसे में बसपा प्रत्याशी भाजपा और सपा दोनों ही दलों के मतदाताओं को साधते दिख रहे है।
राजनीतिक जानकार यह भी बता रहे है कि फाजिलनगर के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अल्पसंख्यक, ब्राह्मण एवं कुर्मी मतदाताओं की हो सकती है। वर्तमान स्थिति में अल्पसंख्यक सपा और बसपा दोनों के पाले में दिख रहा, लेकिन चुनाव के समय उसकी स्थिति क्या होगी यह समय बताएगा जबकि ब्राह्मण के अधिकांश मतदाता भाजपा के पाले में जाता दिख रहा हालांकि कुछ ब्राह्मण सपा व बसपा के पक्ष में दिख रहे हैं। वहीं चनाउ, अवधिया और कुर्मी मतदाता भाजपा और सपा दोनों तरफ झुकता दिख रहा। कुशवाहा समाज भाजपा व सपा दोनों ओर जा रहा है जबकि यादव सपा और वैश्य भाजपा के साथ दिख रहा है।
सब मिलाकर जो पार्टी ब्राह्मण एवं चनाउ, कुर्मी और अवधिया मतदाताओं को अपने ओर आकर्षित कर लेगा उसे चुनाव में बड़ा लाभ मिल सकता है।
राजनीतिक जानकार यह बता रहें कि चुनाव में छोटी तदात में सैनी, मुसहर, गौंड़, भर, शर्मा (लोहार, बढ़ई), साहनी, रावत, भेड़िहार, चौहान व अन्य दर्जनभर समाज के मतदाताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकता है। वे बताते है कि इस समाज के लोगों को समाज में कम देखा जाता है, इनका भी आरोप रहता है कि हमें कोई नहीं पूछता। ऐसे में इनको जो दल या प्रत्याशी साध लेगा, परिणाम अचानक बदल जायेगा।
राजनीतिक जानकार अपनी गणित के अनुसार जो तस्वीर दिखा रहे है, उसके अनुसार यहां की लड़ाई त्रिकोणीय दिख रही है। अगर बसपा ने ठीक से चुनाव लड़ा तो परिणाम आश्चर्य चकित करने वाला हो सकते हैं।
वार्ता