विकसित भारत के विचारणीय बिंदु

दुर्भाग्य से राजनीतिक क्षेत्र की इस बुराई ने देश की हर संस्थाओं में पोषित कर दिया है।

Update: 2022-08-17 04:34 GMT

लखनऊ। भाई-भतीजावाद का जब मैं जिक्र करता हूं तो लोगों को लगता है कि मैं सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र की बात करता हूं। जी नहीं। दुर्भाग्य से राजनीतिक क्षेत्र की इस बुराई ने देश की हर संस्थाओं में पोषित कर दिया है। इसके कारण मेरे देश के टैलेंट को नुकसान होता है। मेरे देश के सामर्थ्य को नुकसान होता है। हमें हर संस्था में इसके प्रति एक नफरत पैदा करनी होगी। संस्थाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए काफी जरूरी है। राजनीति में भी परिवारवादी राजनीति ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। परिवारवादी राजनीति परिवार के लिए होती है, उसे देश से कोई लेना देना नहीं होता है। आइए हिंदुस्तान की राजनीति के शुद्धिकरण, हिंदुस्तान की सभी संस्थाओं के शुद्धिकरण के लिए योग्यता के आधार पर देश को बढ़ना होगा।

कुरीतियों पर समय रहते समाधान नहीं किया तो विकराल रूप ले सकता है। पहला- भ्रष्टाचार, दूसरा है भाई भतीजावाद, परिवारवाद। भारत जैसे लोकतंत्र में जहां लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। एक तरफ वे लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है, एक तरफ वो लोग हैं जिनको चोरी का माल रखने की जगह नहीं है। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना है।

जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान। लाल बहादुर शास्त्री के नारे जय जवान और जय किसान आज भी प्रासंगिक है। देश की ये जरूरत है। हमारे युवा ऐसा कर सकते हैं। हम अनुसंधान में आगे बढ़ेंगे।

प्रधानमंत्री मंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से विकसित भारत का मंसूबा व्यक्त किया। यह उनका तत्कालिक संकल्प मात्र नहीं था। बल्कि उनकी सरकार विगत आठ वर्षों से इसी संकल्प को सिद्ध करने में लगी है। लेकिन परिवारवाद और भ्रष्टाचार भारत को विकसित बनाने में बाधक है। नरेन्द्र मोदी ने इस पर प्रहार किया है। भारत में प्रजातंत्र है। सरकार के अपने संवैधानिक दायित्व होते है। मोदी सरकार इस जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही है। लेकिन भारत को विकसित बनाने के अभियान में जनता का योगदान भी अपरिहार्य होता है।वह राजनीति में परिवारवाद को हतोत्साहित कर सकती है। ऐसी पार्टियों की पहली चिंता अपने कुनबे को लेकर होती है। उस पार्टी में चाहे जितने वरिष्ठ और ईमानदार नेता हों,लेकिन नेतृत्व तय करने का अंदाज राजतंत्र जैसा होता है। पार्टी सुप्रीमों के पुत्र या पुत्री को ही पूरी पार्टी उत्तराधिकार में मिलती है। विपक्ष की मुख्य पार्टी कांग्रेस का उदाहरण दिलचस्प है। कुछ वर्ष पहले सोनिया गांधी ने अस्वस्थता के कारण पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का निर्णय लिया था। परिवारवाद के कारण उनकी नजर में राहुल गांधी ही इस पद के लिए सर्वाधिक उपयुक्त थे। कांग्रेस को उनके हवाले कर दिया गया। अध्यक्ष का ताज उनको पहनाया गया। इसके बाद कांग्रेस को कई चुनावों में पराजय का सामना करना पड़ा। राहुल को लगा कि यह पद उन्हें जवाबदेह बना रहा है। इसलिए उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। अस्वस्थता के कारण अध्यक्ष पद छोड़ने वाली सोनिया गांधी पर फिर से जिम्मेदारी आ गई। वह अंतरिम अध्यक्ष बन गई। वह दिन और आज का दिन। राहुल दुबारा अध्यक्ष पद का जोखिम उठाना नहीं चाहते। सोनिया गांधी की नजर में दूसरा कोई भी इस सिंहासन के लायक नहीं है। उनकी पुत्री प्रियंका भी नहीं।

जाहिर है कि राजनीति के परिवारवाद पर मतदाताओं को ही निर्णय करना है। नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से किसी पार्टी का नाम नहीं लिया। लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल का उदाहरण सामने है। पश्चिम बंगाल में परिवारवादी पार्टी का शासन है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमों ममता बनर्जी के भतीजे युवराज के रूप में है। ऐसी पार्टियों में सभी बड़े कार्यों पर मुखिया की नजर रहती है। ममता बनर्जी के विश्वासपात्र की बड़े घोटाले में संलिप्तता का मामला उजागर हुआ है। बड़ी मात्रा मे अवैध संपत्ति ईडी को मिली है। लेकिन ममता बनर्जी की सरकार को विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। बिहार में नीतीश कुमार ने जिस पार्टी पर घोटालों के आरोप लगाए थे,जिसके संस्थापक की वर्तमान स्थिति सबके सामने है, उसी पार्टी के साथ नीतीश ने सरकार बना ली है। तेजस्वी यादव उनके साथ उपमुख्यमंत्री है। इतिहास ने अपने को दोहराया है। नितीश और तेजस्वी की यह जोड़ी दूसरी बार सरकार में है। पहली बार राजद परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण ही नितीश उनसे अलग हुए थे। वह भाजपा के साथ आ गए थे। फिर लौट कर वहीँ पहुँच गए। उनकी वर्तमान सरकार संख्याबल के हिसाब से पहले के मुकाबले मजबूत है। लेकिन गंभीर आरोपियों का इसमें वर्चस्व रहेगा। ऐसी स्थिति से मतदाता ही राजनीति को बचा सकते हैं।

इसीलिए नरेन्द्र मोदी ने जनता के सहयोग का आह्वान किया है। ऐसा करके वह अपवाद छोड़ कर अन्य सभी पार्टियों के निशाने पर आ गए है। क्योंकि भाजपा और वामपंथियों को छोड़ कर सभी पार्टियां परिवारवाद पर आधारित है। कम्युनिस्ट पार्टी केरल तक सिमट चुकी है। वहाँ भी वामपंथ का नया संस्करण आ गया है। मुख्यमन्त्री के दामाद का जलवा सरकार और पार्टी में बढ़ रहा है। देश के हर संस्थान में परिवारवाद को पोषित किया गया है।

मोदी ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में देश के खिलाड़ियों को पहले से अधिक पदक मिले हैं। यह प्रतिभाएं पहले भी भारत में थीं, लेकिन भाई-भतीजावाद के कारण वह नहीं उभर पायीं। भारत को विकसित बनाने के मार्ग में दूसरी सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है। इसमें भी परिवारवादी पार्टियों पर सर्वाधिक आरोप लगते हैं। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है।उससे देश को लड़ना ही होगा। सरकार का प्रयास है कि जिन्होंने देश को लूटा है।उनको लूट का धन लौटाना पड़े। मोदी सरकार ने व्यवस्था में व्यापक सुधार किया है। चालीस करोड़ जनधन खाते खोले गए। विगत आठ वर्षों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के द्वारा आधार, मोबाइल जैसी आधुनिक व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए देश के दो लाख करोड़ रुपये को गलत लोगों के हाथों तक जाने से रोक दिया गया। आत्मनिर्भर अभियान भी भारत को विकसित बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। इसमें निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पीएलआई योजनाओं के माध्यम से, हम दुनिया के विनिर्माण बिजलीघर बन रहे हैं। लोग मेक इन इंडिया के लिए भारत आ रहे हैं। बच्चे ने विदेशी खिलौनों का बहिष्कार कर रहे हैं।

नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत के लिए पांच प्रण का महत्त्व रेखांकित किया। हमको भारतीय विरासत पर गर्व करना चाहिए। वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन के माध्यम से सम्भव है। भारत लोकतंत्र की जननी है। इसका भी देश को गर्व होना चाहिए। दासता के किसी भी निशान को हटाना, विरासत पर गर्व, एकता और अपने कर्तव्यों को पूरा करना सभी का दायित्व है।इससे भारत को विकसित बनाया जा सकता है। पंच प्रण पर अपनी शक्ति,संकल्पों और सामर्थ्य को केंद्रित करना आवश्यक है। (हिफी)

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचासर फीचर सेवा)

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