विश्लेषण बुढ़ाना - उमेश ने पहली बार खिलाया था कमल - अब भी दी कड़ी टक्कर
भाकियू का गढ़ समझे जाने वाली बुढ़ाना विधानसभा सीट पर 2017 में उमेश मलिक ने जीत दर्ज कर भाजपा का इस सीट पर खाता खोल दिया था
मुज़फ्फरनगर। भाकियू का गढ़ समझे जाने वाली पहले कांधला एंव खतौली विधानसभा सीट का हिस्सा काटकर बनाई गई बुढ़ाना विधानसभा सीट पर 2017 में उमेश मलिक ने जीत दर्ज कर भाजपा का इस विधानसभा सीट पर खाता खोल दिया था। बुढ़ाना से पहले कांधला एवं खतौली विधानसभा सीट का हिस्सा रहे, इस इलाके में कांधला सीट पर 1993 में एक बार रतनपाल पवार तथा खतौली विधानसभा सीट पर 1991 एवं 1993 में सुधीर बालियान ही भाजपा को जीत दिला पाए थे, नहीं तो 1967 में वजूद में आई इन दोनों विधानसभा सीटों पर कभी भाजपा का कमल नहीं खिला था। इन दोनों सीटों का हिस्सा काटकर बनाई गई बुढ़ाना विधानसभा सीट पर भी 2012 में समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी। 2017 में उमेश मलिक ने इस विधानसभा सीट पर कमल खिलाने का काम किया था। इस बार भी उमेश मलिक ने दमदार चुनाव लड़ा और उन्हें 1 लाख से ज्यादा वोट मिली ।
1967 में वजूद में आई मुजफ्फरनगर जनपद की कांधला विधानसभा सीट से 1967 में कांग्रेस के टिकट पर वीरेंद्र वर्मा, 1969 में बीकेडी के टिकट पर अजब सिंह, 1974 में बीकेडी के टिकट पर ही मूलचंद, 1977 में अजब सिंह चुनाव जीते थे। 1980 में वीरेंद्र सिंह गुर्जर ने लोकदल के टिकट पर जीत हासिल करने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह 1985, 1989 और 1991 में लगातार चौधरी अजीत सिंह के चेहरे पर चुनाव जीतते रहे। 1993 में इस सीट पर भाजपा का पहली और आखिरी बार रतन लाल पंवार जीते थे। इसके बाद 1996 एंव 2002 में लोकदल के सिंबल पर वीरेंद्र सिंह गुर्जर तथा 2007 में बसपा के टिकट पर बलबीर सिंह ने जीत हासिल की थी। उसके बाद 2012 में कांधला सहित एक बड़ा हिस्सा नई बनी शामली विधानसभा सीट के हिस्से में चला गया था। इधर खतौली विधानसभा का शाहपुर क्षेत्र और भाकियू के गढ़ सिसौली क्षेत्र का इलाका नवनिर्मित बुढ़ाना विधानसभा सीट के हिस्से में आ गया था।
खतौली विधान सभा सीट पर भी भाकियू का गढ़ माने जाने वाला हिस्सा भी शामिल था। इस सीट पर भी भाजपा केवल 1991 एवं 1993 में ही चुनाव जीत पाई थी। तब सुधीर बालियान भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे, नहीं तो इस सीट पर 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर सरदार सिंह, 1969 में बीकेडी के टिकट पर वीरेंद्र वर्मा, 1974 से 77 तक जनता पार्टी के टिकट पर लक्ष्मण सिंह ,1980 में कांग्रेस के टिकट पर धर्मवीर बालियान, 1985 में लोकदल के टिकट पर हरेंद्र मलिक , 1989 में फिर जनता दल के टिकट पर धर्मवीर बालियान एंव 1991 में 1993 में सुधीर बालियान भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। भाजपा का इस सीट पर पहली बार खाता खुला था। उसके बाद भाजपा इस सीट 2012 तक वजूद में नही आ पाई थी।
1996 में भारतीय किसान कामगार पार्टी के टिकट पर राजपाल बालियान, 2002 में लोकदल के टिकट पर फिर से राजपाल बालियान, 2007 में बसपा के टिकट पर योगराज सिंह खतौली विधानसभा सीट पर विधायक चुने गए थे। कांधला और खतौली विधानसभा सीट के हिस्से को काटकर 2012 में बुढ़ाना विधानसभा सीट का गठन हुआ था। 2012 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के नवाजिश आलम चुनाव जीते थे।
2017 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार बुढ़ाना विधानसभा सीट पर मजबूती से चुनाव लड़ा और भाजपा के टिकट पर क्षेत्र में हिंदुत्व चेहरे के रूप में जाने जाने वाले उमेश मलिक ने समाजवादी पार्टी के प्रमोद त्यागी को हराकर चुनाव जीत लिया था । इस विधानसभा चुनाव में उमेश मलिक को रिकॉर्ड तोड़ लगभग 97000 वोट मिली थी। पूरे 5 साल उमेश मलिक ने बुढ़ाना विधानसभा में सक्रिय रूप से काम किया। पिछले दिनों किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह से भारतीय किसान यूनियन केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार पर हमलावर रही। उसको लेकर माना जा रहा था कि इस बार बुढ़ाना विधानसभा सीट पर भाजपा अपनी रफ्तार पकड़ नहीं पाएगी । भारतीय जनता पार्टी ने अपने विधायक उमेश मलिक पर फिर से भरोसा जताते हुए विधानसभा का टिकट दिया तो उमेश मलिक ने अपनी टीम के साथ भाकियू के गढ़ में मजबूती से चुनाव लड़ा। डेढ़ लाख मुस्लिम वोटो और भाकियू के प्रभाव वाली सीट माने जाने वाली बुढाना पर उमेश मलिक ने पहले से बेहतर चुनाव लड़ा। हालांकि वह चुनाव हार गए लेकिन पिछली बार से इस बार उन्हें 6000 वोट अधिक मिली तथा पहली बार भाजपा को इस सीट पर 1 लाख से अधिक वोट मिली है।