सीएए को लेकर बिफरीं ममता

मतदाता सूची में संशोधन का काम चल रहा है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का मामला अभी कानून का रूप नहीं ले सका है

Update: 2022-11-28 04:45 GMT

लखनऊ। पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची में संशोधन का काम चल रहा है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का मामला अभी कानून का रूप नहीं ले सका है लेकिन इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा रहा है। राज्य में भाजपा के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने पिछले दिनों सीएए का मामला उछाला था। मजूमदार ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू किया जाएगा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगर इसका विरोध करती हैं तो यह देश की सम्प्रभुता को चुनौती देने जैसा होगा। यह भी ध्यान देने की बात है कि गुजरात में जहां विधानसभा के चुनाव दिसम्बर में होने हैं, वहां के सीमावर्ती क्षेत्र में 1955 के नागरिकता कानून के आधार पर सिखों, बौद्धों, पारसियों को भारतीय नागरिकता दी गयी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसीलिए राज्य की जनता से कहा कि वोटर लिस्ट में अपडेट और करेक्शन का काम चल रहा है, यदि आपका इस मतदाता सूची में नाम नहीं है तो आपको एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) का नाम लेकर डिटेंशन कैम्प में भेज दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह पश्चिम बंगाल में सीएए को कभी लागू नहीं होने देंगी। ध्यान रहे कि भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में शरण लेने आये गैर मुस्लिम प्रवासी के 6 समुदाय-हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत का नागरिक बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया गया है। नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) संसद के दोनों सदनों में पारित भी कराया जा चुका है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गत 23 नवम्बर को कहा कि लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज हो, अन्यथा उन्हें राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के नाम पर डिटेंशन कैंप (हिरासत शिविरों) में भेज दिया जाएगा। बनर्जी ने कहा, वोटर लिस्ट में अपडेट और करेक्शन का काम चल रहा है। यह प्रक्रिया 5 दिसंबर तक चलेगी। मैं सभी लोगों से आग्रह करती हूं कि वोटर लिस्ट में आपका नाम हो, वरना आपको एनआरसी का नाम लेकर डिटेंशन कैंप में भेज दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, कभी-कभी उन्हें (आम लोगों को) कहा जाता है कि वे भारतीय नागरिक नहीं हैं, लेकिन अगर वे नहीं हैं, तो उन्होंने वोट कैसे दिया? आप हमारे वोटों के कारण पीएम बने और आज आप कह रहे हैं कि आप हमें नागरिकता अधिकार प्रदान करेंगे इसका क्या मतलब है? क्या आप हमारा अपमान नहीं कर रहे हैं? इस महीने की शुरुआत में, पश्चिम बंगाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा था कि राज्य में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू किया जाएगा और अगर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसका विरोध करती हैं, तो यह देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसा होगा।

मजूमदार ने कहा था, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, संसद के दोनों सदनों में पहले ही पारित हो चुका है। अब यह केंद्र सरकार के पास है। इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। सीएए बंगाल में लागू होगा। अगर वह (ममता) सीएए नहीं चाहती हैं तो इसका मतलब है कि वह शरणार्थियों को नागरिक नहीं बनाना चाहती हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जोर देकर कहा था कि वह पश्चिम बंगाल में सीएए को कभी लागू नहीं होने देंगी। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों पर नजर रखते हुए सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर बयानबाजी कर रही है।

सीएए 2019 अधिनियम ने नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया, जो अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाता है यदि वे (ए) हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों से संबंधित हैं, और (बी) अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हैं। यह केवल 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासियों पर लागू होता है। संशोधन के अनुसार, पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों को प्रावधान से छूट दी गई है। देश में घुसपैठियों का मामला काफी समय से चर्चा का विषय है। घुसपैठियों को देश से बाहर करने की दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ। लेकिन एनआरसी को लेकर यह विवाद हुआ कि बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को भी नागरिकता की लिस्ट से बाहर रखा गया जो देश के असल निवासी हैं। ऐसे लोगों के समाधान के लिए सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 बनाया है।

नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है।नागरिकता कानून, 1955 के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है। इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हों या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हों लेकिन उसमें उल्लिखित अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक जाएं।विपक्ष का सबसे बड़ा विरोध यह है कि इसमें खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है। अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। ममता ने सीएए के नाम पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया। कोलकाता के नेताजी इनडोर स्टेडियम में राज्य सरकार द्वारा शरणार्थियों के बीच भूमि के पट्टे वितरण कार्यक्रम में ममता ने कहा कि इतने लोग बांग्लादेश से अपना सब कुछ गंवाकर यहां आए हैं। मार्च 1971 तक आए वे लोग कानूनी रूप से भारत के नागरिक हैं। नागरिक होने के बाद भी उनसे कहा जा रहा कि भारतीय नागरिक का दर्जा दिया जाएगा। (हिफी)

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