पंचायत चुनाव को लेकर राजनितिक दलों में बढ़ी सरगर्मी

राज्य के विपक्षी दल जनता को कुछ दे नहीं सकते लेकिन किसान आंदोलन जैसे मामले उठा रहे हैं

Update: 2021-02-09 20:00 GMT

लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के 6 लाख से ज्यादा लोगों को पीएम आवास योजना ग्रामीण के अंतर्गत पक्का मकान दिया है। राज्य के विपक्षी दल जनता को कुछ दे नहीं सकते लेकिन किसान आंदोलन जैसे मामले उठा रहे हैं। मुख्य विपक्षी दल सपा के नेता बरेली में रणनीति तैयार कर रहे हैं तो बसपा प्रमुख मायावती भी अपने संगठन को सशक्त करने का प्रयास कर रही हैं। कांग्रेस में प्रियंका गांधी भी लगातार कोई न कोई मामला उठाकर कांग्रेसजनों को सक्रिय किये हैं। इन सभी राजनीतिक दलों का लक्ष्य राज्य में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हैं। पंचायत चुनावों को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए शक्ति परीक्षण माना जा रहा है। पंचायत चुनाव की घोषणा से पहले योगी आदित्यनाथ की सरकार भी कई योजनाएं सामने लाना चाहती है।

उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (2021) की तारीखों के ऐलान से पहले राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव में खर्च को लेकर नई गाइडलाइन जारी कर दी है। इस बार निर्वाचन आयोग ने कई बंदिशें लगा दी हैं, जिसकी वजह से दावेदारों के सामने चुनाव प्रचार को लेकर चुनौती खड़ी हो गई है। इस बार चुनावी खर्च की सीमा बहुत कम कर दी गई है। इस बार प्रधान पद के लिए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी सिर्फ 30 हजार रुपये खर्च कर सकेंगे। वहीं, बीडीसी सदस्य 25 हजार, वार्ड मेंम्बर पांच हजार, जिला पंचायत सदस्य 75 हजार, ब्लॉक प्रमुख 75 हजार, जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने वाले को 2 लाख खर्च करने की अनुमति दी गई है।

निर्वाचन आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक, चाहे प्रधान पद प्रत्याशी हों या फिर वार्ड मेंम्बर, बीडीसी सदस्य, ब्लॉक प्रमुख सहित कोई भी पद हो, सभी को चम्मच से लेकर कुर्सी और दरी तक का हिसाब देना पड़ेगा। निर्वाचन आयोग के अनुसार, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में चुनावी खर्च की सीमा लागू कर दी गई है। कोई भी प्रत्याशी सीमा से ज्यादा खर्च नहीं कर सकेगा। अगर ज्यादा खर्च करते हैं तो लिखित जवाब के साथ खर्च का हिसाब देना होगा। नामांकन के दौरान रिटर्निंग अफसर प्रत्याशी को इस बाबत जानकारी देंगे।

दरअसल, पंचायत चुनाव गांव की सरकार चुनने के लिए है, मगर इसमें बेतहाशा खर्च किया जाता है। प्रधानी के चुनाव में वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए भोज से लेकर जाम तक छलकाए जाते हैं। मगर 30 हजार रुपए की राशि में इस बार यह सब कैसे होगा इसकी चिंता अभी से प्रत्याशियों को सताने लगी है। लिहाजा प्रत्याशी भी इसकी काट खोजने में जुट गए हैं।

उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनावों को लेकर तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है। ऐसे में यूपी के 75 जिलों में परिसीमन के बाद साल 2015 की तुलना में पांच सालों में पंचायतों का दायरा सिमट गया है। जिसके चलते जिला पंचायतों के 3120 वार्ड अब घटकर 3051 रह गए हैं। ऐसे में जहां एक तरफ सभी जिलों में ग्राम प्रधानों की संख्या कम हो जाएगी, वहीं यूपी के गोंडा, संभल, मुरादाबाद और गाजीपुर में ग्राम प्रधानों की संख्या बढ़ जाएगी। जानकारी के मुताबिक गोंडा में पिछली बार 1054 प्रधान चुने गए थे वहीं इस बार ये संख्या 1214 हो जाएगी। ऐसे ही मुरादाबाद में 588 से 643, संभल में 556 से बढ़कर 670 और गाजीपुर में 1237 से बढ़कर 1238 ग्राम प्रधान हो जाएंगे।

वहीं, इसी बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव में खर्च के लिए गाइडलाइन जारी कर दी है। इस गाइडलाइन ने पंचायत चुनाव में पहली बार उतरने का मन बना रहे लोगों को बड़ी राहत दी है। कारण ये है कि आयोग ने इस बार चुनावी खर्च बेहद कम कर दिया है। पिछले पंचायत चुनाव (2015) में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने के लिए खर्च की जो अधिकतम सीमा 75 हजार रुपये थी, वह अब घटाकर महज 30 हजार रुपये कर दी गई है।

यही नहीं जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी को पिछले चुनाव में डेढ़ लाख रुपये खर्च की सीमा निर्धारित थी, वो अब आधी यानी 75 हजार रुपये हो गई है। इसी तरह बीडीसी सदस्य के चुनाव के लिए 25 हजार रुपये, ब्लॉक प्रमुख के लिए 75 हजार रुपये, वार्ड मेंबर के लिए 5 हजार रुपये और जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए दो लाख रुपये की खर्च सीमा निर्धारित की गई है। निर्वाचन आयोग की गाइडलाइन में साफ कर दिया गया है कि चुनावी खर्च सीमा से ज्यादा अगर कोई भी प्रत्याशी खर्च करेगा तो उसका उसे लिखित जवाब खर्च के हिसाब के साथ देना होगा। चाहे वह प्रधान पद प्रत्याशी हों या फिर वार्ड मेंम्बर, बीडीसी सदस्य, ब्लॉक प्रमुख सहित कोई भी पद हो, सभी को चम्मच से लेकर कुर्सी और दरी तक का हिसाब देना पड़ेगा।

बहरहाल, उत्तर प्रदेश में मार्च-अप्रैल में संभावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। 2022 के विधानसभा चुनाव से इसे सत्ता का सेमीफइनल माना जा रहा है। ऐसे में बीजेपी ने अपनी तैयारियों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। पार्टी ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने और सपा-बसपा के वर्चस्व को खत्म करने में जुटी है। यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने यूपी के ग्रामीण इलाकों से आने वाले 6 लाख लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत करोड़ों रुपए की सौगात दी। इसे पंचायत चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के 6.1 लाख लाभार्थियों को पीएम आवास योजना ग्रामीण के अंतर्गत 2 हजार 691 करोड़ रुपए की सहायता राशि जारी कर दी। इतना ही नहीं उन्होंने यूपी के पांच जिलों में एक-एक लाभार्थियों से भी बात की। इस सहायता में 5.30 लाख ऐसे लाभार्थी हैं, जिन्हें आर्थिक सहायता की पहली किस्त मिली, जबकि 80 हजार लाभार्थी ऐसे रहे, जिन्हें दूसरी किस्त मिली।

ऐसा माना जा रहा है कि पंचायत चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले प्रधानमंत्री के जरिए यूपी सरकार ने बड़ा दांव खेला है। क्योंकि बीजेपी इस बार अपनी पहुंच पंचायत तक करवाना चाहती है। लिहाजा प्रधानमंत्री का चेहरा बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है। यही वजह है कि पंचायत चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पीएम आवास देना एक बड़ी सौगात माना जा रहा। यह कदम सूबे में होने वाले पंचायत चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है। दरअसल, इस बार के पंचायत चुनाव में बीजेपी अपने अधिकृत प्रत्याशियों के साथ लड़ने जा रही है। इसके लिए बीजेपी ने अपने नेताओं को जिम्मेदारी भी सौंप दी है। जिम्मेदार नेता इस काम में जुट गए हैं। बीजेपी पहले ही कह चुकी है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पार्टी नेताओं के परिवार की जगह, जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को तरजीह देगी। भाजपा के साथ अन्य दलों के नेता भी पंचायत चुनावों में ही अपनी ताकत परखेंगे।

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