खडगे को कांग्रेस की कमान
किसी क्रांतिकारी बदलाव की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए क्योंकि नया नेतृत्व भी पुराने नेतृत्व का ही आशीर्वाद मात्र है।
नई दिल्ली। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को 24 वर्षों के बाद नेहरू-गांधी परिवार से हटकर अध्यक्ष मिला है। अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था। इसे बाकायदा चुनाव नहीं कह सकते क्योंकि अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार शशि थरूर ने स्वयं यह आरोप लगाया था। वह कहते हैं कि उन पर कई तरह से दबाव डाला गया। कांग्रेस इसे पूरी तरह से लोकतांत्रिक चुनाव भी नहीं कह सकती क्योंकि कई वर्षों से यही नाटक हो रहा था कि राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बन जाएं। राहुल गांधी तैयार नहीं हुए, तब चुनाव कराने की घोषणा की गयी। सभी राजनीतिक दलों में यह औपचारिकता होती है लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व कार्यकारी अध्यक्ष के रूप मंे संभाल रहीं सोनिया गांधी ने जिस तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाने का प्रयास किया, उससे चुनाव से ज्यादा मनोनयन का संकेत मिला। अशोक गहलोत ने अपने समर्थकों के माध्यम से जिस तरह राजस्थान पर कब्जा बनाये रखने की रणनीति बनायी, उससे कांग्रेस की पूरी तरह से छीछालेदर हो गयी थी। इसके बाद भी अध्यक्ष पद के लिए वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खडगे का नामांकन जिस तरह से कराया गया, उसके पीछे भी सोनिया और राहुल की टीम खड़ी दिखाई पड़ी। मुकाबले मंे पूर्व राजनयिक और जाने-माने लेखक शशि थरूर खड़े जरूर हो गये थे लेकिन उनको सोनिया-राहुल खेमे का विरोधी ही समझा गया। इसी का नतीजा है कि जहां मल्लिकार्जुन खडगे को 7897 वोट मिले हैं, वहीं शशि थरूर को सिर्फ 1072 वोट मिल पाये। इससे कई संदेश निकले हैं। पहला यही कि पार्टी मंे अब भी नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव है और दूसरा यह कि कांग्रेस मंे किसी क्रांतिकारी बदलाव की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए क्योंकि नया नेतृत्व भी पुराने नेतृत्व का ही आशीर्वाद मात्र है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार शशि थरूर ने अपनी हार स्वीकार कर ली और अपने प्रतिद्वंद्वी मल्लिकार्जुन खड़गे को बधाई दी। साथ ही कहा कि 1,000 साथियों का साथ मिलना भी सम्मान की बात है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को मतदान हुआ था। चुनाव के नतीजों के अनुसार मल्लिकार्जुन खड़गे को 7,897, जबकि शशि थरूर को 1,072 वोट मिले हैं। थरूर ने एक बयान में कहा, ''अंतिम फैसला खड़गे के पक्ष में रहा, कांग्रेस चुनाव में उनकी जीत के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देना चाहता हूं। उन्होंने कहा, ''कांग्रेस का अध्यक्ष बनना बड़े सम्मान, बड़ी जिम्मेदारी की बात है, मैं मल्लिकार्जुन खड़गे को इस चुनाव में उनकी सफलता के लिए बधाई देता हूं कांग्रेस के करीब 9900 डेलीगेट पार्टी प्रमुख चुनने के लिए मतदान करने के पात्र थे। कांग्रेस मुख्यालय समेत लगभग 68 मतदान केंद्रों पर मतदान हुआ था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य वरिष्ठ नेताओं समेत करीब 9500 डेलीगेट (निर्वाचक मंडल के सदस्यों) ने पार्टी के नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदान किया था। मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि अजेय योद्धा की रही है। वर्ष 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद उन्होंने गुलबर्गासीट से 74 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। वे दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें गुलबर्गा सीट से बीजेपी के उमेश जाधव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। करीब पांच दशक में यह खड़गे की पहली चुनावी हार थी।
खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद वे कर्नाटक राज्य से यह पद संभालने वाले दूसरे नेता होंगे। उनसे पहले कर्नाटक से एस. निजलिंगप्पा यह पद संभाल चुके हैं। चुने जाने पर खड़गे, जगजीवन राम के बाद यह पद संभालने वाले दूसरे दलित नेता हैं। लगभग 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे पांच दशक से अधिक समय से राजनीति में सक्रिय हैं। वे लगातार नौ बार विधायक रहे चुके हैं। गांधी परिवार के वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में वे श्रम और रोजगार के अलावा रेलवे, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रहे हैं। जून 2020 में वे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए थे और इस समय उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
खड़गे की छवि सौम्य और विनम्र नेता के तौर पर है। बीदर जिले के एक गरीब परिवार में जन्मे खड़गे ने गुलबर्गा से बीए के बाद लॉ की डिग्री हासिल की। राजनीति में उतरने के पहले वे कुछ समय वकालत भी कर चुके हैं। मल्लिकार्जन खड़गे का एक बेटा प्रियांक इस समय विधायक है। मल्लिकार्जुन खड़गे के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अब पार्टी में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की भूमिका कैसे और क्या तय की जाए।
पिछले कुछ सालों में कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं, सो, मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए एक चुनौती यह भी होगी कि अब दामन छोड़ने वाले रुक जाएं। कुछ साल पहले कांग्रेस नेतृत्व से नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले गुट के अधिकतर नेता अब भी पार्टी में हैं, सो, क्या अब मल्लिकार्जुन खड़गे उन्हें संतुष्ट कर पाएंगे। केंद्र में सत्तासीन सरकार के सबसे प्रमुख दोनों नेता नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह बेहद ऊर्जावान नेता माने जाते हैं। सो, मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए एक चुनौती यह भी होगी कि वह अब कांग्रेस को उनसे मुकाबला करने के लिए कैसे तैयार कर पाएंगे।
भारतीय जनता पार्टी और मोदी-शाह की जोड़ी से मुकाबला करने के लिए देशभर में विपक्षी पार्टियों के बीच काफी सुगबुगाहट है, और एकजुटता की कोशिशें आम नजर आती हैं, लेकिन आम चुनाव 2024 के लिए विपक्षी एकता सुनिश्चित करने, और विपक्षी गठबंधन में पार्टी की अहमियत कैसे बनाए रखना भी मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए खासी बड़ी चुनौती साबित होगा। कांग्रेस पार्टी के 137 साल के इतिहास में छठी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है। पार्टी अध्यक्ष पद के लिए अब तक 1939, 1950, 1977, 1997 और 2000 में चुनाव हुए हैं। इस बार पूरे 22 वर्षों के बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है।
मतगणना के दौरान शशि थरूर की टीम ने पार्टी के मुख्य निर्वाचन प्राधिकारी को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान "अत्यंत गंभीर अनियमितताओं" का मुद्दा उठाया और मांग की कि राज्य में डाले गए सभी मतों को अमान्य किया जाए। थरूर की प्रचार टीम ने पंजाब और तेलंगाना में भी चुनाव के संचालन में "गंभीर मुद्दे" उठाए थे। इस प्रकार कांग्रेस के अंदर के असंतोष को खत्म करना खडगे की सबसे पहली चुनौती होगी। (हिफी)