घोटालों का प्रदेश बना बिहार?
सुशासन कुमार का राज्य बिहार घोटालों का प्रदेश बन गया है।
पटना। सुशासन कुमार का राज्य बिहार घोटालों का प्रदेश बन गया है। यहां का सबसे ज्यादा चर्चित चारा घोटाला रहा है जिसके जुर्म की सजा कयी नौकरशाह और नेता भुगत रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी उसी घोटाले में रांची की जेल में सजा काट रहे हैं। इसके अलावा भी कई घोटाले चर्चा में रहे हैं।
अभी हाल ही (19फरवरी 2021) को बिहार विधानसभा में नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट आते ही बिहार में एक बार फिर घोटाले की धमक सुनाई दी है। इस बार वर्दी या भर्ती घोटाला नहीं, बल्कि सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी से पता चला है कि प्रदेश में बॉडीगार्ड घोटाला भी हुआ है। आरटीआई के जरिये कैग की रिपोर्ट से जो बात पता चली है, वह कहती है कि सिस्टम की मिलीभगत से बॉडीगार्ड घोटाला कर राज्य सरकार को 100 करोड़ से ज्यादा के राजस्व का चूना लगाया गया है। हाईकोर्ट का साफ आदेश है कि ऐसे लोगों पर ही बॉडीगार्ड के मद में सरकार पैसे खर्च कर सकती है जो सामाजिक सरोकार से जुड़े हों या उनकी जान पर किसी प्रकार का खतरा हो लेकिन रिपोर्ट में सामने आया है कि नीतीश कुमार की सरकार ने कई आपराधिक प्रवृत्ति और माफिया किस्म के लोगों को भी बॉडीगार्ड मुहैया कराए। इसके बदले में भुगतान राशि भी नहीं ली गयी। लोग पूछ रहे हैं कि ये कैसा सुशासन है?
बिहार में पिछले साल, जब विधानसभा चुनाव होने वाले थे, तब एक ओर निर्वाचन आयोग बिहार में समय पर चुनाव कराने की बात कर रहा था तो दूसरी ओर कोरोना महामारी अपने पैर पसार रही थी और सत्ताधारी गठबंधन सहित सभी राजनीतिक दल महामारी की चिंता छोड़ चुनाव की चिंता और सत्ता पाने के तिकड़म में फंसे थे। भारत का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रांत बिहार अपने इतिहास में कई ऐसे घटनाक्रमों का गवाह भी रहा है जिसने देशव्यापी प्रभाव डाला है। कुछ उपलब्धियों व घटनाओं ने वैश्विक स्तर पर इस राज्य को प्रतिष्ठा दिलाई तो कुछ ने मान-मर्दन भी किया। दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में कालांतर में यह प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी में शामिल हो गया वहीं राजनेता-अधिकारी गठजोड़ ने स्थिति को बदतर बना दिया। इसी गठजोड़ ने राज्य में कई ऐसे घोटालों को जन्म दिया जिसकी कल्पना भी नहीं थी।
हालांकि ऐसा नहीं है इन्हें अंजाम देने वाले कानून की गिरफ्त से बाहर रहे। कई नेताओं-अफसरों को सजा मिली और कई अन्य पर कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई चल रही है। विधानसभा चुनाव सिर पर थे तो प्रदेश की सियासत में ये घोटाले एक बार फिर उछाले जाने लगे थे। कोविड-19 के कारण इस बार के चुनाव में वर्चुअल रैलियों का दौर जारी था। साथ ही सोशल मीडिया के टूल्स यथा वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टा्रग्राम व ट्विटर आदि की प्रमुख भूमिका चल रही थी। सोशल मीडिया में इन कथित दिव्यास्त्रों का उपयोग घोटालों की चर्चा में किया गया। बिहार की भाजपा नीत गठबंधन वाली एनडीए सरकार के घटक दलों के नेता ने राज्य की प्रमुख व मुखर विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर निशाना साधा।
इनके टारगेट पर राजद के युवा नेता, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव व उनका परिवार था। हर वार में उन्हें उनके पिता लालू प्रसाद व माता राबड़ी देवी के शासन काल के दौरान हुए घोटाले व अन्य अनियमितताओं की याद दिलाई जाती थी तो उसी अंदाज में तेजस्वी यादव भी सत्ता पक्ष को जवाब देते नजर आते थे। तेजस्वी ने बाढ़ के दौरान सरकार की नाकामी की चर्चा भर क्या की, प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट में उनको सीधा जवाब दिया और कहा, जिनके माता-पिता के राज में करोड़ों का बाढ़ राहत घोटाला हुआ, वे कुछ बाढ़ पीड़ितों को एक शाम का भोजन कराते हुए फोटो खिंचवा कर पाप धोने की कोशिश कर रहे हैं। उनका आरोप था कि 1996-99 के बीच उस वक्त की लालू-राबड़ी सरकार ने चारा घोटाला की तर्ज पर बाढ़ राहत घोटाला किया था। हालांकि तेजस्वी यादव ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया था। उन्होंने भी नीतीश शासन के पंद्रह साल के दरम्यान 55 घोटाले किए जाने का आरोप लगा दिया। इतना ही नहीं, तेजस्वी ने कहा अगर नीतीश जी में हिम्मत है तो वे कहें कि लाखों करोड़ के ये 55 घोटाले उनके संरक्षण में नहीं हुए। तेजस्वी ने इन पचपन घोटालों में सृजन घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला, धान घोटाला व दवा घोटाले का जिक्र किया था। सच है कि ये घोटाले अपने-अपने समय पर सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बने रहे थे।
बिहार में चारा घोटाला, बाढ़ राहत घोटाला, अलकतरा घोटाला, मेधा घोटाला, गर्भाशय घोटाला, सृजन घोटाला, शौचालय घोटाला, सोलर प्लेट घोटाला, धान घोटाला, मिट्टी घोटाला, जमीन घोटाला जैसे घोटालों की लंबी फेहरिश्त समय-समय पर प्रदेशवासियों के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती रही है। राजनीतिक पार्टियां इसके लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती रहती है। खासकर चुनावों के समय में इन घोटालों की अहमियत बढ़ जाती है। महादलित विकास मिशन घोटाले में बिहार के निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (विजिलेंस) द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी एसएम राजू एवं तीन रिटायर्ड आईएएस अफसरों समेत छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराए जाने की घटना ने इन घोटालों की याद ताजा कर दी है। प्रकारांतर में होने वाले इन घोटालों ने प्रदेश के आर्थिक-सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला है।
अब ताजा मामला बाडीगार्ड घोटाले का है।आरटीआई एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय ने बड़ी संख्या में लोगों को बॉडीगार्ड मुहैया कराने के मामले में सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी थी। सीएजी से मांगी गई इस जानकारी में प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा जिलों में वित्तीय गड़बड़ियां सामने आई हैं। कैग ने खुलासा किया है कि सरकार ने अरवल जिले में सबसे ज्यादा 1.24 करोड़ रुपये बॉडीगार्ड पर खर्च किए. वहीं अररिया में भी 1 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी की गई। इसके अलावा समस्तीपुर में 1 करोड़, पटना में 87 लाख, गया में 73 लाख और बक्सर में 44 लाख रुपये के साथ ही कई अन्य जिलों में भी निजी लोगों के बॉडीगार्ड पर पैसे खर्च हुए। इससे सरकार को अरबों रुपये का नुकसान हुआ।
आरटीआई एक्टिविस्ट ने नियमों का हवाला देते हुए बताया कि हाईकोर्ट का साफ आदेश है कि वैसे लोगों पर ही बॉडीगार्ड के मद में सरकार पैसे खर्च कर सकती है जो सामाजिक सरोकार से जुड़े हों या उनकी जान पर किसी प्रकार का खतरा हो लेकिन रिपोर्ट में सामने आया है कि कई आपराधिक प्रवृत्ति और माफिया किस्म के लोगों को भी बॉडीगार्ड मुहैया कराए गए। इसके बदले में राशि नहीं वसूली गई। आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि अगर पैसे की रिकवरी नहीं होती है, तो वह सरकार के खिलाफ कोर्ट जाएंगे।बताया जाता है कि 2017 से लेकर 2021 तक बॉडीगार्ड आवंटन में यह घोटाला किया गया है। कैग की रिपोर्ट से बिहार पुलिस मुख्यालय भी अवगत है और कई जिलों के डीएम-एसपी पर भी जांच की आंच आ सकती है। इन अधिकारियों पर आरोप है कि निजी स्वार्थ में इन्होंने सरकार को राजस्व का नुकसान कराया।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने गत 17 फरवरी को एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला है। तेजस्वी ने ट्वीट कर लिखा है कि आदरणीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी, अब तो बता दोजिए बिहार में कागजों पर हुए 2 करोड़ से अधिक कोरोना टेस्ट में कितने फीसदी फर्जी टेस्ट थे? 70-80 फीसद या उससे भी अधिक? बिहार में सरकार द्वारा सत्यापित अब तक हुए 63 घोटालों में आपकी कोई भूमिका ही नहीं है। है ना? सब घोटाले भूतों ने किए? तेजस्वी के इन आरोपों का जवाब तो नीतीश सरकार के पास होगा लेकिन जनता के सवालों का जवाब सुशासन कुमार के पास शायद नहीं है।
हिफी