सड़क पर संघर्ष करने फिर लौट आये अखिलेश यादव
पूरे प्रदेश में सपाईयों में गजब का जोश नजर आया और हर जिले में सपाईयों ने जोरदार प्रदर्शन किया
लखनऊ। केन्द्र सरकार के खिलाफ कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आक्रोश चरम पर है। किसान आंदोलन ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष को फिर से एक बड़ा अवसर देने का काम किया है। उत्तर प्रदेश में इस किसान आंदोलन का हर आंदोलन की भांति ही व्यापक प्रभाव नजर आया है। यहां मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने किसान आंदोलन का समर्थन करने के साथ ही अपने नेता अखिलेश यादव के नेतृत्व में किसान यात्रा अभियान छेड़ दिया है। किसान यात्रा को शुरू कराने के लिए कन्नौज जाने के लिए निकले अखिलेश यादव को यूपी सरकार की 'पाबंदी' के बाद पुलिस ने घर के बाहर ही रोक दिया। इससे पूरे प्रदेश में सपाईयों में गजब का जोश नजर आया और हर जिले में सपाईयों ने जोरदार प्रदर्शन किया। आखिरकार फिर से एक यात्रा के सहारे सपाईयों को अखिलेश यादव के रूप में सड़क पर सत्ता के खिलाफ एक जोशीला कमांडर खड़ा नजर आया है।
बात राजनीति की हो या सामाजिक, शैक्षिक और अन्य किसी भी क्षेत्र की संघर्ष ही वह पारस है, जो पत्थरीला होने के बावजूद भी खुद को छूकर चलने वालों का व्यक्तित्व स्वर्णिम बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ता। शर्त यही है कि संघर्ष रूपी पारस पर हमारी परिश्रम का रगड़ा कुछ तगड़ा होना चाहिए। हम बात भारतीय राजनीति की करें तो जेपी आंदोलन ने संघर्ष से शिखर तक पहुंचने का फार्मूला अभावग्रस्त और संसाधनविहीन व्यवस्था के बीच युवाओं को दिखाया था। इसी आंदोलन ने देश की राजनीतिक दिशा व दशा को बदला और देश को भविष्य के अनेक राजनेता मिले। आज हम बिहार से बंगाल तक और देहरादून से दिल्ली तक कुछेक नेताओं को युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के रोल माॅडल के रूप में देखते हैं, उनके व्यक्तित्व के निखार की बूटी की जड़ जेपी आंदोलन का संघर्ष ही रहा है। उत्तर प्रदेश में ऐसे ही युवा संघर्ष सत्ता को पलटने में सफल रहे है। आज समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व संभाल रहे अखिलेश यादव भी ऐसे ही युवा संघर्षशील नेता हैं।
अखिलेश यादव ने आज से करीब 9 साल पहले 12 सितम्बर 2011 में उत्तर प्रदेश में सत्तासीन बसपा के खिलाफ बड़ी मुहिम चलाई थी। उस समय वह सपा के युवा नेता और उत्तर प्रदेश संगठन के अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे थे। बसपा सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार और समाजवादी पार्टी के सुनहरे इतिहास की कहानी को लेकर युवा अखिलेश यादव 'क्रांति रथ यात्रा' लेकर प्रदेश में जनता के बीच निकले थे। उनकी इस यात्रा का पहला चरण 12 सितम्बर से शुरू हुआ, जिसमें लखनऊ से चला अखिलेश यादव का क्रांति रथ उन्नाव होते हुए कानपुर पहुंचा और इसके बाद हरदोई और उन्नाव की सीमा पर लगे बांगरमऊ और फिर मोहान होते हुए लखनऊ वापस लौटा। इस चरण में अखिलेश यादव के प्रति युवाओं का जो जोश जगह जगह दिखाई दिया, उसने सपा को एक नई शक्ति प्रदान की थी। युवा अखिलेश का संवाद सुनने के लिए रथ के सामने हजारों युवाओ की भीड़ जुटती थी। कार्यकर्ताओं में भी अपने जोशीले कमांडर की लोकप्रियता से जोश पैदा हुआ। अखिलेश युवा होने के साथ ही सुदर्शन भी हैं। आम राजनेताओं से भिन्न, उनके चेहरे से मासूमियत झलकती है। वे पढे-लिखे, प्रगतिशील एवं आस्ट्रेलिया से शिक्षित होने के कारण लीक से हटकर चलने वाले तथा नरमपंथी राजनेता माने जाते हैं। यही कारण है कि 2011 में जब वह इस यात्रा में खास तौर से नौजवानों को फोकस करने निकले तो उन्होंने सबसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती पर भ्रष्ट शासन चलाने के आरोप लगाते हुए लोगों को जागरूरक करने का काम किया था।
प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते अखिलेश यादव ने पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में पार्टी नेताओं से साफ कर दिया था कि अब वह बसपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर लें। इस रणनीति में पार्टी की क्रान्ति रथ यात्रा को उन्होंने महत्वपूर्ण बताया था। यह पहला अवसर था जबकि सपा की किसी रथयात्रा का नेतृत्व मुलायम सिंह नहीं कर रहे थे। जब अखिलेश बसपा के शासन के खिलाफ जनजागरण करने के लिए अपना क्रांतिरथ लेकर निकले तो उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने हरी झंडी दिखाई थी और चाचा शिवपाल सिंह यादव ने पैसों की थैली शगुन के तौर पर भेंट की थी। अखिलेश के इस क्रांति रथ को लेकर खुद सपा में भी विरोधाभास था, लेकिन जब 2012 में राज्य विधानसभा का परिणाम आया तो सपा पूर्ण बहुमत के साथ चुनकर सत्ता में आई थी। इसके बाद सपा की सत्ता के लिए अखिलेश यादव के क्रांति रथ यात्रा के संघर्ष को दिया गया और कुछ दिन की ऊहापोह के बाद एक बड़ा त्याग करते हुए मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव का एक युवराज की भांति राजतिलक कर दिया। अखिलेश यादव को भले ही सत्ता मिलने पर एक ट्रेनी मुख्यमंत्री बताया गया हो, लेकिन पांच साल सरकार चलाकर उन्होंने यह साबित करके दिखाया कि वह एक निपुण महारथी हैं। अपने लगभग पांच वर्ष के कार्यकाल में अखिलेश यादव कभी भी आपा खोते नहीं दिखे। चाहे मुजफ्फरनगर के दंगे हों या जवाहरबाग का गोली कांड, बुलन्दशहर में बहुचर्चित हाईवे रेप की घटना हो या कुंभ एवं बनारस के जयगुरूदेव के कार्यक्रम की भगदड़, ऐसे तमाम मौकों पर अखिलेश मीड़िया की बड़ी आलोचनाओं को सहकर भी निर्विकार भाव प्रदर्शित करते रहे। उन्होंने कभी भी इन घटनाओं का ठीकरा नौकरशाही पर नही फोड़ा, यद्यपि कि ऐसा करके वे बहुत कुछ अपनी साख बचा सकते थे, आलोचनाओं से बच सकते थे।
2017 के चुनाव में सपा की हार हुई। सपा पिछले करीब चार साल से राज्य में मुख्य विपक्ष की भूमिका में है। योगीराज में कई मामलों को लेकर यूं तो अखिलेश यादव लगातार भाजपा पर हमलावर रहे हैं। कुछ एक मौकों पर उन्होंने सड़क पर आकर विरोध भी दर्ज कराया है, लेकिन अब किसान यात्रा को लेकर जिस प्रकार वह भाजपा सरकार से टकराने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ एक आक्रोश बनकर सड़क पर पुलिस प्रशासन पुलिस प्रशासन की बंदिशों से जूझते नजर आये, उसने उनके संघर्ष की जीवटता को प्रदर्शित किया है। अपने लीडर के मुखर स्वरूप को देखकर कार्यकर्ताओं में जोश का संचार हुआ और पूरे प्रदेश में किसान यात्रा पर निकलने वाले सपाईयों का जोशीला अंदाज देखने को मिला।
अखिलेश यादव को कन्नौज जाने से रोकने के लिए यूपी सरकार पूरे लाव लश्कर के साथ डटी नजर आयी। अफसरों ने उनके आवास के बाहर बेरिकेडिंग कर डाली। फोर्स ने उनको घेरकर रोक लिया, लेकिन अखिलेश यादव अपने कार्यकर्ताओं के बीच 9 साल पुराने उसी अंदाज में दिखे, जिसके लिए उनका क्रांति रथ आज भी गवाही देता है। उस दौर में भी मुख्यमंत्री मायावती के निर्देश पर लखनऊ एयरपोर्ट पर अखिलेश यादव को हिरासत में रोक लिया गया था और अब सीएम योगी की पाबंदी पर पुलिस ने उनको कन्नौज नहीं जाने दिया। भले ही अखिलेश लखनऊ में रूक गये, लेकिन उनका संदेश हर जिले में पहुंचा और योगीराज में पहली बार सपाईयों में यह कमांडर एक नया जोश भरने में सफल नजर आया।