विशेष - संघर्षशील व्यक्तित्व के दम पर विधायक बने है उमेश मलिक

चुनाव भी एक हिन्दुवादी नेता के तौर पर लड़ा। प्रतिदिन क्षेत्र में जनता के बीच मौजूद रहना उनकी लोकप्रिय का मुख्य कारण है

Update: 2020-05-23 09:27 GMT

मुज़फ्फरनगर। संघर्ष हमारे व्यक्तित्व का गहना है। कुछ ही ऐसे लोग हैं जो ''मुंह में चांदी की चम्मच'' लेकर पैदा होने के बाद भी संघर्ष और सेवा के मार्ग को चुनकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हो पाते हैं। ऐसे ही व्यक्तियों में शामिल होकर अपने रौबिले व्यक्तित्व के साथ सेवा और समर्पण के सहारे जनता और समाज के बीच जुदा अंदाज रखने वाले हैं भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्राण्ड नेता, मुखर वक्ता और उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक संवेदनशील जिलों में आने वाले मुजफ्फरनगर के विधानसभा क्षेत्र बुढ़ाना से विधायक उमेश मलिक...!

 भाजपा विधायक उमेश मलिक आज किसी भी पहचान के मोहताज नहीं है। आज उमेश मलिक जहां पर खड़े नजर आते हैं, यह मुकाम उन्होंने बड़े संघर्ष से हासिल किया है। समाजसेवा के रास्ते राजनीति में प्रवेश करते हुए भाजपा का बड़ा चेहरा बन जाने का उनका सफर कई बड़ी चुनौतियों से होकर गुजरा है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक वातावरण में भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्राण्ड नेताओं में शुमार विधायक उमेश मलिक जाट लैंड के कारण ''मिनी छपरौली'' कहे जाने वाले बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। उन्होंने छात्र जीवन से ही संघर्ष किया और चुनौतियों को हमेशा ही स्वीकारने में एक कदम आगे खड़े नजर आये। जिस दौर में भाजपा के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् को कोई पहचानता नहीं था, उस दौर में उन्होंने परिषद् से स्टूडेंट लीडरशिप करके दिखायी है। आज यूपी विधानसभा में जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 



विधायक निर्वाचित होने के बाद से उमेश मलिक ने अपने कार्यकाल का हर दिन जनता की सेवा को समर्पित किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के जनकल्याणकारी फैसलों के साथ साथ जनहितैषी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए उमेश मलिक सक्रिय रहे हैं। उमेश मलिक अपने जीवन में चुनाव तो कई लड़े हैं, लेकिन मेरठ काॅलेज का उनका वह पहला चुनाव आज भी संकट और चुनौतियों की बिसात पर उनका आत्मविश्वास बढ़ाता है, जिस चुनाव में गोलियों की बौछारों के बीच उन्होंने छात्र हित में खुद को मैदान में उतारकर उस दौर में छात्र राजनीति के अखाड़े में मंझे हुए खिलाड़ियों को चुनौती दे डाली थी। वह पहला चुनाव था, जबकि भारतीय जनता पार्टी की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का जोश भी दूना हुआ था। हालांकि चुनाव नहीं हो पाये, लेकिन इस संघर्ष ने उमेश मलिक को राजनीतिक सफर की ओर धकेलने का काम कर दिखाया था। जाटों की बड़ी गठवाला खाप से आने वाले उमेश मलिक का जीवन संघर्ष की कहानियों की पूरी पोथी रहा है। जन संघर्ष ने ही उनके व्यक्तित्व को निखारा और जनता ने उनको अपना प्रतिनिधि चुना।

उमेश मलिक का जन्म मुजफ्फरनगर जनपद में बुढ़ाना तहसील के गांव डूंगर में रामपाल सिंह नम्बरदार के परिवार में 5 अक्टूबर 1967 को हुआ था। उनकी माता जगवती एक धर्म पारायण महिला हैं। गांव डूंगर मुजफ्फरनगर जनपद में गठवाला खाप की बावनी का हिस्सा है। उनका विवाह इंद्र रेखा के साथ हुआ। उनके परिवार में एक पुत्र शुभम है। उमेश मलिक के राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र जीवन से ही हो गई थी। 1993 में वह मेरठ कॉलेज, मेरठ में छात्र नेता के रूप में सक्रिय रहे, छात्र संघ के इस चुनाव ने ही उनके भीतर एक राजनीतिक ललक पैदा की, तभी से वह समाजसेवा के सहारे आगे बढ़ते हुए राजनीति में सक्रिय हो गए थे। छात्र संघ चुनाव में कोई परिणाम नहीं आया, लेकिन वह मेरठ काॅलेज में सर्वमान्य छात्र नेता के रूप में काम करते रहे। 07 साल के बाद उनके जीवन ने नया मोड़ लिया और साल 2000 में जिला पंचायत सदस्य के पद पर उन्होंने चुनाव मैदान में उतरकर भाग्य आजमाया। साल 2012 तक इन 12 वर्षों में उमेश मलिक ने कई चुनाव लड़े, लेकिन जीत 2010 के बीडीसी चुनाव में ही मिली। 2012 में वह बुढ़ाना विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े मगर हार गए। इसके बाद 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने क्षेत्र में उनके प्रभाव और जातिगत समीकरण देखते हुए पुनः बुढ़ाना सीट से टिकट देकर मैदान में उतारा और इस चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की। उमेश मलिक ने 2017 में हुए इस चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रमोद त्यागी को 13,201 मतों से पराजित कर जीत दर्ज की। उमेश मलिक की इस जीत के बाद बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर ही बदल गयी है। आज बुढ़ाना क्षेत्र विकास के मामले में किसी भी अन्य क्षेत्र से काफी आगे खड़ा दिखाई देता है।



विधायक उमेश मलिक मुजफ्फरनगर शहर में निवास करते हैं, लेकिन प्रतिदिन वह सवेरे ही अपने क्षेत्र में निकल जाते हैं। क्षेत्र की जनता के सुख और दुख में उनकी बराबर की भागीदारी रहती है। उनकी राजनीति भले ही एक छात्र नेता के चुनाव के पड़ाव से शुरू हुई हो, लेकिन उन्होंने हमेशा ही राष्ट्रवाद की भावना को एक उद्देश्य के साथ लेकर काम किया है। वह सामाजिक जीवन में भी उतने ही संघर्षशील रहे, जितना कि राजनीतिक जीवन में उन्होंने जनसेवा के प्रति जोश और जज्बा दिखाया है। हिन्दुत्व के प्रति भाजपा की कार्यशैली से वो प्रभावित होकर ही इससे जुड़े और हिन्दुत्व के मुद्दे पर हमेशा ही मुखर कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। चुनाव भी एक हिन्दुवादी नेता के तौर पर लड़ा और पार्टी के फायर ब्राण्ड नेता की उपाधि हासिल करने में वह सफल रहे। उनका प्रतिदिन क्षेत्र में जनता के बीच मौजूद रहना ही उनकी लोकप्रिय का मुख्य कारण है। 

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