IPS अशोक कुमार- उत्तराखंड को DGP के रूप में खाकी में मिला इंसान
संतरी की पीड़ा को जानने वाले 'खाकी में इंसान' के रूप में संवेदनशील अफसर अशोक कुमार को अब उत्तराखंड पुलिस की कमान मिली है
देहरादून। संतरी चाहे पुलिस का हो या फौज का या फिर पैरामिलिट्री का, उसकी ड्यूटी बड़ी कठिन होती है। वर्दी पहने अपने दर्द और इच्छाओं को छिपाए ड्यूटी करते संतरी की पीड़ा को आईपीएस अशोक कुमार ने समझा और अपनी किताब 'खाकी में इंसान' में उस खामोश पीड़ा को शब्दों के सहारे जुबां देने का काम किया। संतरी की पीड़ा को जानने वाले 'खाकी में इंसान' के रूप में प्रसिद्ध एक संवेदनशील आईपीएस अफसर अशोक कुमार को अब उत्तराखंड पुलिस की कमान मिली है। उत्तराखंड के नए डीजीपी अशोक कुमार के चार्ज सँभालने के बाद खोजी न्यूज़ के उत्तराखंड ब्यूरो चीफ नफीस अहमद की स्पेशल स्टोरी
तीन दशक के अपने लम्बे पुलिस सेवाकाल में अविभाजित उत्तर प्रदेश से लेकर आज के उत्तराखंड में पुलिस, आईटीबीपी और बीएसएफ के महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहकर नये कीर्तिमान के साथ भारत के ब्यूरोक्रेट्स के बीच 'खाकी में इंसान' जैसी मानवीय पहचान रखने वाले वर्ष 1989 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी अशोक कुमार को अब उत्तराखंड राज्य में नये पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के लिए चुना गया। अशोक कुमार भारत क लिए सामरिक दृष्टि के महत्व वाले उत्तराखंड राज्य के 11वें पुलिस महानिदेशक बनाये गये हैं। 30 नवम्बर को विधिवत रूप से आईपीएस अशोक कुमार ने डीजीपी का पदभार संभाल लिया। इसके साथ ही देवभूमि की सुरक्षा की कमान अब 'खाकी में इंसान' को बेहतर ढंग से समाज से परिचित कराने वाले एक आईआईटीयन के हाथों में आ गई है।
देवों और ऋषियों की भूमि के रूप में पहचाने जाने वाले उत्तराखंड राज्य में पुलिस मुखिया बने आईपीएस अशोक कुमार अच्छी पुलिस व्यवस्था से सचमुच गरीब व असहाय लोगों की जिन्दगी में फर्क लाने की सोच को लेकर काम करते रहे हैं। वह जितने अच्छे पुलिस अफसर हैं, उतने ही काबिल लेखक हैं और उससे कहीं बेहतर एक खिलाड़ी भी हैं। बीते वर्षों में उन्होंने कई विषयों पर पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें उनकी 'खाकी में इंसान' बेहद प्रसिद्ध रही है। चैलेंजेस टू इंटरनल सिक्यूरिटी और 'खाकी में इंसान' पुस्तकें उनका प्रमुख लेखन रही हैं। 'खाकी में इंसान' का परिचय पूरे समाज से करवाने वाले, सहज स्वभाव व मिलनसार व्यक्तित्व के धनी, जनता के अनुकूल पुलिसिंग को महत्व देने वाले एवं अपराध और अपराधियों पर सख्ती से अंकुश लगाने में महारत हासिल रखने वाले 1989 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अशोक कुमार उत्तराखंड प्रदेश के नए पुलिस महानिदेशक बने हैं। उनको ब्यूरोक्रेट्स में एक संवेदनशील अधिकारी के रूप में पहचाना जाता है। पुलिस मुखिया बनने के साथ ही उन्होंने उत्तराखंड से अपराधियों की शरणस्थली के दाग से मुक्ति देने के लिए प्राथमिकता को प्रदर्शित करने का काम किया है। आईपीएस अशोक कुमार की पहली पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में बतौर एएसपी हुई थी। उच्च पद पर होने के बाद और अपने मानवीय पहलू को उजागर करने के लिए देश में कई उदाहरण हैं। इन्हीं में से एक आईपीएस अशोक कुमार का नाम भी है। विभाग के लिए उनके समर्पण भाव को हर कोई जानता है, लेकिन उनके मानवीय पहलू से हर वो पीड़ित वाकिफ है जो इनके दर पर अपनी पीड़ा को लेकर पहुंचा है। क्योंकि, आईपीएस अशोक कुमार ने हर पीड़ित की उसकी उम्मीद से बढ़कर मदद की है।
उत्तराखंड के डीजीपी होने के नाते आईपीएस अशोक कुमार ने राज्य से अपराध के सफाये और पुलिस आधुनिकीकरण को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में शामिल किया है। उनको नया डीजीपी बनाये जाने की घोषणा के बाद पुलिस मुख्यालय में अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने उत्तराखंड को पुलिस के लिए भय और जनता के लिए मित्र बनाने की रणनीति लेकर काम करने पर जोर देते हुए यह साफ कर दिया कि उत्तराखंड को अपराधियों की शरणस्थली होने के लगे दाग से मुक्त कराया जायेगा। इसके लिए राज्य स्तरीय अभियान चलाने की तैयारी वह कर चुके हैं। इसके साथ ही राज्य में महिला विरोधी क्राइम और साइबर क्राइम पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाते हुए पुलिस को एक अभियान में लगाया जायेगा। आईपीएस अशोक कुमार ने यह खुले मन से स्वीकार किया है कि पिछले कुछ समय से उत्तराखंड राज्य पर यह सोच एक दाग बनकर रह गयी है कि बाहरी राज्यों के अपराधियों के लिए उत्तराखंड एक बेहतर शरणस्थली बना है। दूसरे राज्यों से पुलिस के अभियान से भयभीत होकर अपराधी उत्तराखंड में ही पनाह ले रहे हैं। उन्होंने एक दृढ़ संकल्प के साथ यह विश्वास दिलाने का काम किया है कि बाहरी राज्यों के ऐसे अपराधियों को उत्तराखंड पुलिस अगले दिनों में यह बखूबी समझाते हुए नजर आयेगी कि उनको अपने राज्यों की पुलिस से खतरा हो या न हो, लेकिन उत्तराखंड पुलिस से जरूर उनको भयभीत होने की आवश्यकता है। ऐसे अपराधियों को राज्य से बाहर भेजने के लिए पुलिस बड़े पैमाने पर ऑपरेशन क्लीन की शुरूआत करेगी। वैसे बाहरी राज्यों के बदमाशों को लेकर पुलिस लगातार काम कर रही है। पिछले एक माह में ऊधमसिंह नगर पुलिस ने हरियाणा राज्य के निवासी 50-50 हजार रुपये के तीन ईनामी बदमाशों को गिरफ्तार किया तो उत्तराखंड पुलिस की प्रशंसा हरियाणा तक हुई थी। पटेलनगर में भी पुलिस ने हरियाणा के ही एक 10 हजार रुपये के इनामी बदमाश को गिरफ्तार किया।
डीजीपी अशोक कुमार कहते हैं, ''उत्तराखंड राज्य में महिला विरोधी अपराध दूसरे राज्यों की तुलना में काफी कम हैं। इस ग्राफ को और नीचे लाने के लिए कार्ययोजना बनाकर काम किया जायेगा। आज राज्य में यह व्यवस्था लागू की गयी है कि महिला संबंधी अपराधों को लेकर तत्काल रिपोर्ट दर्ज की जाती है। इसमें देरी करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही करने में देर नहीं की जाती है। साइबर क्राइम आज जनता को सुरक्षित और भयमुक्त वातावरण देने मे सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है, अभी राज्य में एक साइबर थाना काम कर रहा है, जल्द ही कुमांऊ में दूसरा साइबर थाना काम शुरू कर देगा। हर थाने में साइबर क्राइम रोकने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ के साथ साथ पुलिस कर्मियों को ट्रेनिंग देने की तैयारियां भी तेजी से चल रही हैं। आईपीएस अशोक कुमार ने स्पष्ट किया कि उनका प्रयास राज्य की पुलिस को जितना भी हो सके, उतना आधुनिक क्षेत्र में दक्ष बनाना है। इसके लिए नये बदलाव के लिए शासन को पुलिस मुख्यालय की ओर से जल्द ही कुछ प्रमुख प्रस्ताव भेजे जायेंगे। शहरों में पुलिस को भारी भरकम हथियारों के बोझ से निजात दिलाने के लिए छोटी अत्याधुनिक पिस्टल उपलब्ध कराने की योजना पर काम किया जा रहा है, अन्य अत्याधुनिक संसाधन जल्द पुलिस कर्मियों के लिए खरीदे जायेंगे
आईपीएस अशोक कुमार पुलिस सर्विस के अपने तीन दशकों में इलाहाबाद के बाद अलीगढ़, रुद्रपुर, चमोली, हरिद्वार, मैनपुरी, नैनीताल, रामपुर, मथुरा, शाहजहांपुर, पुलिस मुख्यालय देहरादून, गढ़वाल और कुमाऊं रेंज के विभिन्न पदों पर रहे हैं। वह सीआरपीएफ और बीएसएफ में भी प्रतिनियुक्ति पर रह चुके हैं। इन सभी जगहों पर उन्होंने अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी है। आईपीएस अशोक कुमार का जन्म 20 नवंबर 1964 को हरियाणा के पानीपत जिले के कुराना गांव में हुआ था। उनके पिता रामभज अग्रवाल पानीपत के कुराना गांव में रहकर काम करते थे। उनकी मां सावित्री अग्रवाल ने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा, लेकिन अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वह आईपीएस अशोक के साथ ही पूरे परिवार की प्रेरणा बनी हुई हैं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद आईआईटी दिल्ली से बीटेक और एमटेक की शिक्षा प्राप्त की थी। वर्ष 2001 में कोसोवो में उत्कृष्ट कार्य के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ मिशन पदक मिला था। वर्ष 2006 में दीर्घ एवं उत्कृष्ट सेवाअें के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुलिस पदक से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली और लेखन के माध्यम से पुलिस विभाग में यह सकारात्मक सोच विकसित करने का काम किया है कि पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इंसान बने रहना..इनता मुश्किल तो नहीं है। आईपीएस अशोक कुमार के नाम कई महत्वपूर्ण काम भी रहे हैं। उनमें से एक 90 के दशक में तराई का अपराध खत्म करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। शाहजहांपुर, रुद्रपुर, नैनीताल आदि जगहों पर रहते हुए उन्होंने कई बदमाशों के एनकाउंटर किए। इनसे अपराध पहले की अपेक्षा बेहद कम हो गया।
कुख्यात अपराधियों को जेल भेजने से लेकर उन्हें मार गिराने में अशोक कुमार के नेतृत्व को हर बार सराहा गया। साल 1994 में आईपीएस अशोक कुमार चमोली के एसपी थे। उस दौरान अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर था। लगभग सभी जगहों पर आंदोलनकारी शहीद हो रहे थे। लेकिन, उस वक्त चमोली ही एक ऐसी जगह थी जहां पर एक भी आंदोलनकारी शहीद नहीं हुआ था। चमोली में आंदोलन के दौरान आईपीएस अशोक कुमार ने जनता के बीच जाकर परस्पर संवाद की व्यवस्था को बढ़ावा दिया और उनके इस कार्यशैली का ही नतीजा था कि आंदोलन की गरमाहट के बीच भी चमोली में पुलिस-पब्लिक का गठजोड़ बना रहा, यहां आपसी सहयोग से वह अलग राज्य गठन आंदोलन की तपिश को थामने में सफल रहे। वर्ष 1995 में आईपीएस अशोक कुमार हरिद्वार में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात रहे। यहां उन्होंने अर्द्धकुम्भ सहित कई मेले शांतिपूर्वक संपन्न कराए। 1999 में उन्होंने एसएसपी नैनीताल के पद पर रहकर कार्य किया। इसके बाद उन्होंने आईजी गढ़वाल रहते हुए कई महत्वपूर्ण मेलों को शांतिपूर्वक पूरा कराया। अशोक कुमार हमेशा से अपने सरल स्वभाव के लिए जाने जाते रहे हैं। अब जबकि उत्तराखंड पुलिस को नये मुखिया के रूप में 'खाकी में इंसान' मिला है, तो ऐसे में यह पूरी संभावना बनी है कि अपराधियों के सामने एक दीवार की भांति डटे रहकर अपराध उन्मूलन के लिए बड़े जौहर दिखाने वाले आईपीएस अशोक कुमार जनता के बीच फ्रंेडली पुलिसिंग के अपने प्रयासों को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाते हुए उत्तराखंड पुलिस का चाल, चरित्र और चेहरे के साथ ही व्यक्तित्व निखारने का काम करेंगे।
आईपीएस अशोक कुमार ने डीजी कानून व्यवस्था के पद पर रहते हुए पुलिस के मानवीय पहलुओं को भी जनता तक पहुंचाने का काम किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म का सहारा लिया और उत्तराखंड पुलिस के फेसबुक पेज एवं ट्विटर अकाउंट को प्रमुखता से लागू किया और लाॅक डाउन के दौरान उत्तराखंड पुलिस ने जब सोशल पुलिसिंग की तो 'खाकी में इंसान' के परिचायक आईपीएस अशोक कुमार ने खाकी के इस मानवीय चेहरे को आम जनता तक पहुंचाने का काम किया।
आईपीएस अशोक कुमार साल 1994 में जब नैनीताल के एसपी देहात हुआ करते थे। उस वक्त रुद्रपुर को जिला मुख्यालय का दर्जा था। नैनीताल के तलहटी में एक गांव के पास गन्ने के खेत में कुछ बदमाश छुपे होने की सूचना मिली तो उन्होंने फोर्स के साथ मौके पर पहुंचकर बदमाशों के सामने मोर्चा संभाल लिया था। यहां आईपीएस अशोक कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने जब बदमाशों को ललकारा तो फायरिंग शुरू हो गई। इस एनकाउंटर में दोनों ओर से करीब 3000 हजार गोलियां चली थी। इस एनकाउंटर में दो कुख्यात बदमाशों को पुलिस ने ढेर कर दिया था। इस एनकाउंटर का बदमाशों में ऐसा भय बना था कि इस क्षेत्र में अपराध शून्य की ओर चला गया था।
बात 90 के दशक के शुरूआतों वर्षों की है। उस दौर में भारत में खालिस्तान आंदोलन के कारण गहरा तनाव चल रहा था। पंजाब में आतंकवाद के लिए पहचाने जाने वाले खालिस्तान आंदोलन से देवभूमि भी अछूती नहीं रही थी। जिस समय यहां पर अलग राज्य का आंदोलन अपने चरम पर था, उसी बीच राज्य में खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों की घुसपैठ ने नई चुनौतियां पैदा कर दी थी। आज उत्तराखंड में पुलिस और पब्लिक के बीच एक फ्रेंडली माहौल बनाने के साथ ही अपराध उन्मूलन में नये कीर्तिमान के साथ सफलता अर्जित कर रहे आईपीएस अशोक कुमार ने ही राज्य में आतंकवाद के पैर पसारने के दौरान ही ऐसा एनकाउंटर किया, जिसे आज भी याद किया जाता है। आईपीएस अशोक कुमार आज डीजीपी के रूप में उत्तराखंड पुलिस का मार्गदर्शन कर रहे हैं। उनकी यह नई पारी कुमांऊ क्षेत्र के ऊधमसिंह नगर और नैनीताल के लोगों के लिए खास है। यहां से आईपीएस अशोक कुमार का गहरा लगाव तो रहा ही है, यहां पर उनकी कार्यशैली एक कहानी की तरह लोगों के जहन में बसी हुई है। इन दो जिलों में पुलिस विभाग में किये गये प्रयोग और अपराध मुक्त अभियान के लिए की गयी कार्यवाही पुलिस विभाग में एक नजीर के रूप में पेश की जाती रही हैं। देवभूमि के तराई क्षेत्र से आतंकवाद की जड़ों को काटने में उनकी भूमिका अविस्मरणीय है। आज के ऊधमसिंह नगर की जो सुरक्षित तस्वीर हमें दिखाई देती है। उसकी जमीन आईपीएस अशोक कुमार ने ही तैयार की थी। साल 1994 में वह ऊधमसिंह नगर में एसपी के पद पर तैनात थे। उस दौर में ऊधमसिंह नगर जनपद आतंकवाद की बड़ी गंभीर समस्या से जूझ रहा था। खालिस्तान समर्थक भी यहां पर अपनी गहरी पैठ करते हुए जड़े जमाने में जुट गये थे। यहां पर उन दिनों हीरा सिंह और गिरोह के आतंकियों की बड़ी दहशत थी। 22 जनवरी 1994 को गैंग के अपराधियों के यहां होने की सूचना पर पुलिस एक्टिव हो गई। इनको घेरा तो मुठभेड़ हो गई। इस मुठभेड़ को आईपीएस अशोक कुमार ने खुद लीड किया। इस एनकाउंटर की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि पुलिस रिकार्ड में 3 हजार राउंड फायरिंग होने का उल्लेख किया गया है। इसी एनकाउंटर के बाद से ऊधमसिंह नगर जिला अपराधियों के भय के शोरगुल से शांति की ओर चल पड़ा था और आईपीएस अशोक कुमार के नेतृत्व में यहां पर चलाये गये अभियानों के कारण आतंकवाद का लगभग खात्मा ही हो गया।