आतंकवाद पर लगाम- अब पीएफआई पर कसा शिकंजा

संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का विचार तब किया था, जब नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसात्मक प्रदर्शन हुए थे।

Update: 2022-09-24 19:45 GMT

नई दिल्ली। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अब ठोस फैसला कर लिया है कि देश में आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंका जाएगा और किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जाएगी। कश्मीर में सीमा पार से आतंकवाद को रोकने के प्रयास हो ही रहे थे कि इसी बीच पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) की गतिविधियां अंदर ही अंदर विस्फोटक बन गयीं। इसीलिए गत 22 सितम्बर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के नेतृत्व में  कई एजेंसियों ने आतंकी कनेक्शन मेंअब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की है। पीएफआई पर शिकंजा कसने के लिए 16 राज्यों में एक साथ छापे मारे गये और 93 ठिकानों से 106 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। पीएफआई का गढ़ कहे जाने वाले केरल से सर्वाधिक 22 लोग गिरफ्तार किये गये हैं। इनमंे संगठन का मुखिया ओएमए सलाम भी शामिल है। महाराष्ट्र व कर्नाटक में 20-20 संदिग्धों को पकड़ा गया है। छापे मंे गैर कानूनी दस्तावेज, नकदी, धारदार हथियार और कई डिजिटल डिवाइस जब्त किये गये हैं। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालते ही आतंकवाद को देश के संसाधनों से कम करने के साथ ही वैश्विक मंच पर यह मुद्दा प्रभावशाली ढंग से उठाया था कि कोई भी देश आतंकवाद को प्रश्रय न दे। उनका इशारा विशेष रूप से पाकिस्तान की तरफ था और अमेरिका समेत कई राष्ट्रों ने भी कहा कि पाकिस्तान मंे आतंकवाद की नर्सरी तैयार हो रही है। इसी संदर्भ में बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों ने कहा था कि हम अपनी जमीन पर भारत विरोधी गतिविधियां नहीं होने देंगे। पीएम मोदी ने नोटबंदी जैसा कदम भी आतंकवाद की कमर तोड़ने के लिए ही उठाया था। बाद में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व धारा 35-ए को निष्प्रभावी करके और सेना व बीएसएफ को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की खुली छूट देकर कश्मीर घाटी से आतंकवादियों के पैर उखाड़ दिये। अब पीएफआई को जड़ जमाने से पहले ही नेस्तनाबूद किया जा रहा है। इसी साल अप्रैल मे केन्द्र सरकार ने विवादास्पद संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का विचार तब किया था, जब नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसात्मक प्रदर्शन हुए थे।

पॉपुलर फ्रट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत में तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों में यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएं भी हैं। इसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संगठन शामिल हैं। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव के वक्त एक दूसरे पर मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन पाने के लिए पीएफआई की मदद लेने का भी आरोप लगाती हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहे हैं।

भारत में इस्लामीकरण का एजेंडा चलाने वाली सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद पीएफआई के बैनर के तले कट्टर इस्लामी एजेंडा को आगे बढ़ाने का आरोप है। उत्तरप्रदेश में सीएए प्रोटेस्ट में पीएफआई की भूमिका बताई गई। हाथरस मामले में सिद्दीकी कप्पन भी पीएफआई से संबंधित और हुजी और आईएस से भी पीएफआई के संपर्क की बात सामने आई। यही नहीं, कर्नाटक में हिजाब प्रकरण में भी पीएफआई की भूमिका और सीएए प्रोटेस्ट के समय दिल्ली हिंसा में भी पीएफआई की सक्रियता की बात सामने आई। राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए ने केरल में पीएफआई के लोगों के आईएसआईएस संपर्क की रिपोर्ट दी थी। यही नहीं, श्रीलंका ब्लास्ट में भी पीएफआई का जिक्र आया था। राजनीतिक हत्याओं, धर्म परिवर्तन के मामलों में भी पीएफआई की भूमिका सामने नजर आती रही है। सन् 2017 में केरल पुलिस ने लव जिहाद के मामले सौंपे थे, जिसमें पीएफआई की भूमिका सामने आई थी। वहीं 2016 में कर्नाटक में आरएसएस नेता रूद्रेश की हत्या में पीएफआई का नाम आया था। देश के 23 राज्यों में पीएफआई नेटवर्क है।आतंकवादियों की कमर तोड़ने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने तमिलनाडु, केरल समेत 15 राज्यों में पीएफआई के ठिकानों पर छापेमारी की। जिन राज्यों में एनआईए ने छापेमारी की है उनमें केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, असम, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र शामिल हैं। पीएफआई और उससे जुड़े लोगों की ट्रेनिंग गतिविधियों, टेरर फंडिंग और लोगों को संगठन से जोड़ने के खिलाफ ये अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। केरल-39, तमिलनाडु-16, कर्नाटक-12, आंध्र प्रदेश-7, तेलंगाना-1, उत्तर प्रदेश-2, राजस्थान-4, दिल्ली-2, असम-1, मध्य प्रदेश-1, महाराष्ट्र-4, गोवा-1, पश्चिम बंगाल-1, बिहार-1 और मणिपुर में 1 स्थान पर छापा मारा गया।

इससे पूर्व कश्मीर में आतंकवादी अभियान चलाया गया। लोकसभा में ए गणेशमूर्ति के प्रश्न के लिखित उत्तर में नित्यानंद राय ने बताया था कि आतंकवादी हमलों की संख्या में काफी गिरावट आई है और यह साल 2018 की 417 घटनाओं से कम होकर साल 2021 में 229 हो गई है। सदस्य ने सवाल किया था कि ''क्या यह सच है कि आतंकवादी हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं और क्या घटनाओं में वृद्धि का कोई विश्लेषण किया गया है? इस पर गृह राज्य मंत्री राय ने कहा कि आतंकवाद से मुकाबला एक सतत प्रक्रिया है। भारत सरकार ने विधि ढांचे को सुदृढ़ बनाने, सूचना तंत्र को कारगर बनाने, आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच एवं अभियोजन के लिये पीएफआई की स्थापना करने, पुलिस बलों के आधुनिकीकरण एवं राज्य पुलिस बलों की क्षमता को बेहतर बनाने जैसे कदम उठाये हैं।''राय द्वारा निचले सदन में उपलब्ध कराये गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में जम्मू कश्मीर में 244 आतंकवादी घटनाएं घटीं जिनमें 62 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए तथा 106 घायल हो गए। इस अवधि में जम्मू कश्मीर में 37 नागरिकों की जान गयी और 112 अन्य घायल हुए। साल 2021 में जम्मू कश्मीर में 229 आतंकी घटनाएं घटीं जिनमें 42 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए तथा 117 घायल हो गए। इस अवधि में जम्मू कश्मीर में 41 नागरिकों की जान गयी और 75 अन्य घायल हो गए। गृह राज्य मंत्री ने बताया कि सरकार ने कश्मीर घाटी में स्थिति को सामान्य करने के लिये कई उपाय किये हैं जिसमें एक मजबूत खुफिया एवं सुरक्षा ग्रिड, आतंकवादियों के खिलाफ सक्रिय अभियान तथा रात में गहन गश्त आदि शामिल हैं। (हिफी)

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