विश्व की प्राचीन व समृद्ध भाषा है हिन्दी
हिन्दी विरोधी माने जाने वाले दक्षिण भारत के प्रदेशों की यात्रा में भी प्रधानमंत्री जनसभाओं को हिन्दी भाषा में ही सम्बोधित करते हैं।
नई दिल्ली। नरेन्द्र मोदी जब से देश के प्रधानमंत्री बने हैं, उसके बाद से हिन्दी का बोलबाला बढ़ा है। प्रधानमंत्री देश दुनियां में हर जगह हिन्दी भाषा में ही अपना भाषण देते हैं। उनके कारण अन्य मंत्रीगण व अधिकारी भी हिन्दी के प्रयोग को प्राथमिकता देने लगे हैं। हिन्दी विरोधी माने जाने वाले दक्षिण भारत के प्रदेशों की यात्रा में भी प्रधानमंत्री जनसभाओं को हिन्दी भाषा में ही सम्बोधित करते हैं।
हिन्दी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध भाषा होने के साथ ही हमारी राजभाषा भी है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद ही हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, और दिल्ली राज्यों की हिन्दी राजभाषा भी है। राजभाषा बनने के बाद हिन्दी ने विभिन्न राज्यों के कामकाज में आपसी लोगों से संपर्क स्थापित करनें का अभिनव कार्य किया है। लेकिन विश्व भाषा बनने के लिए हिन्दी को अब भी दुनिया के 129 देशों के समर्थन की आवश्यकता है। भारत सरकार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रही है। उससे यह उम्मीद की जा सकती हैं कि शीघ्र ही हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा में शामिल कर लिया जायेगा।
हिन्दी प्रेम, मिलन और सौहार्द की भाषा है। यह मुख्य रूप से आर्यों और पारसियों की देन है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में अनेक क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं। हिन्दी के विकास में अनेक लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं। हिन्दी भारत की सम्पर्क भाषा भी हैं। अतः हम कह सकते हंै कि हिन्दी एक समृद्ध भाषा हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में हिन्दी भाषा का बहुत बड़ा योगदान हैं।
भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मना रहे हैं। इस दिवस को मनाने का मूल उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलवाना है।
चीनी भाषा के बाद हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। भारत और अन्य देशों में 70 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते,पढ़ते और लिखते हैं। पाकिस्तान की तो अधिकांश आबादी हिंदी बोलती व समझती है। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी लाखों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। फिजी, सुरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देश तो हिंदी भाषियों द्वारा ही बसाए गये हैं। एक तरह से देखें तो पूरी दुनिया में हिंदी भाषियों की संख्या लगभग सौ करोड़ है।
हिन्दी के ज्यादातर शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिये गए हैं। इस कारण हिन्दी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। जहां अंग्रेजी में मात्र 10,000 मूल शब्द हैं, वहीं हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2 लाख 50 हजार से अधिक है। 10 जनवरी 1975 को नागपुर मे प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ था। इसीलिए प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। 1975 के बाद से ही विश्व मे हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई थी। हिन्दी आज विश्व भाषा बनने की दिशा में अग्रसर है।
नरेन्द्र मोदी जब से देश के प्रधानमंत्री बने हैं, उसके बाद से हिन्दी का बोलबाला बढ़ा है। प्रधानमंत्री देश दुनियां में हर जगह हिन्दी भाषा में ही अपना भाषण देते हैं। उनके कारण अन्य मंत्रीगण व अधिकारी भी हिन्दी के प्रयोग को प्राथमिकता देने लगे हैं। हिन्दी विरोधी माने जाने वाले दक्षिण भारत के प्रदेशों की यात्रा में भी प्रधानमंत्री जनसभाओं को हिन्दी भाषा में ही सम्बोधित करते हैं। हालांकि लोगों को समझाने के लिए अनुवादक उसका स्थानीय भाषा में अनुवाद करता रहता है। प्रधानमंत्री के प्रयासों से जिस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ ने योग दिवस को मान्यता प्रदान की, उसी तरह से आने वाले समय में हिन्दी को वैश्विक भाषा की मान्यता मिल जायेगी।
हिन्दी ने भाषा, व्याकरण, साहित्य, कला, संगीत के सभी माध्यमों में अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं वर्चस्व कायम किया है। हिन्दी की यह स्थिति हिन्दी भाषियों और हिन्दी समाज की देन है। लेकिन हिन्दी समाज का एक तबका हिन्दी की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है। अंग्रेजी बोलने वाला अधिक ज्ञानी और बुद्धिजीवी होता है। यह घारणा हिन्दी भाषियों में हीन भावना पैदा करती है। हिन्दी भाषियों को इस हीन भावना से उबरना होगा। क्योंकि मातृभाषा में ही मौलिक विचार आते हैं। शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा होनी चाहिए। शिक्षा विचार करना सिखाती है और मौलिक विचार उसी भाषा में हो सकता है जिस भाषा में आदमी जीता है। जिस भाषा में आदमी जीता नहीं उसमें मौलिक विचार नहीं आ सकते। हिन्दी किसी भाषा से कमजोर नहीं है । हमें जरूरत है तो बस अपना आत्मविश्वास मजबूत करने की।
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिन्दी का अन्तरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकडों छोटे-बड़े केन्द्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध के स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों से हिन्दी में दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। हिन्दी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर सुदृढ और समृद्ध है। इसके विकास की गति बहुत तेज है।
विडम्बना ही है कि जिस भाषा को कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे भारत में समझा, बोला जाता हो, उस भाषा के प्रति घोर उपेक्षा व अवज्ञा के भाव, हमारे राष्ट्रीय हितों में किस प्रकार सहायक होंगे। हिन्दी का हर दृष्टि से इतना महत्व होते हुए भी प्रत्येक स्तर पर इसकी इतनी उपेक्षा क्यों ? हिन्दी दिवस के अवसर पर आज हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिये कि हम पूरे मनोयोग से हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में अपना सतत सहयोग प्रदान कर हिन्दी भाषा के बल पर भारत को फिर से विश्व गुरु बनवाने की दिशा में सकारात्मक प्रयास करेंगे। (हिफी)