बच्चों के लिए जी का जंजाल बनी ऑनलाइन स्टडी

आज कोरोना लॉकडाउन में लगी बंदिशें तो खुल गई हैं लेकिन लगातार बढ़ते कोरोना के मामलों के बीच जीवन अभी भी रुका हुआ है

Update: 2020-08-26 13:54 GMT

नई दिल्ली। यूनेस्को की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है जबकि, अकेले भारत में यह आंकड़ा 32 करोड़ 7 लाख 13 हजार 810 है।  

24 मार्च को देश में लॉकडाउन के ऐलान के बाद जहां सारी चीजें थम गई थी वहीं देश के भविष्य कहे जाने देश के लगभग 32 करोड़ छात्र-छात्राओं के स्कूल-कॉलेज जाने पर भी रोक लग गई। जहां सरकार ने ऐलान किया था कि स्कूल-कॉलेज उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा का इंतजाम करें, वहीं ये कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों की ऑनलाइन क्लास केवल शहरों तक ही सीमित (महदूद) है, क्योंकि भारत के ग्रामीण इलाकों के बच्चों के लिए शिक्षा को ऑनलाइन कर पाना अपने आप में ही एक बड़ी चुनौती है। आज कोरोना लॉकडाउन में लगी बंदिशें तो खुल गई हैं लेकिन लगातार बढ़ते कोरोना के मामलों के बीच जीवन अभी भी रुका हुआ है, स्कूलों के खुलने पर रोक है। चार महीने बाद भी स्थिति वैसी ही है और समस्याएं अनेक और ऑनलाइन क्लास धीरे-धीरे बच्चों के लिए मुसीबत बन गये हैं।

उमंग हेल्पलाइन में मार्च से लेकर अब तक 4,965 फोन पहुंच चुके हैं। जिसमें छठवीं से लेकर 12 वीं तक के बच्चे कॉल करके अपनी समस्या बता रहे हैं। हेल्प लाइन की डायरेक्टर माया बोहरा ने बताया कि कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन के बाद ऑनलाइन क्लासेस से स्टूडेंट का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, जिससे उन्हें कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्टूडेंट सबसे ज्यादा परिजनों द्वारा की जा रही टोका-टाकी और हस्तक्षेप से परेशान हैं। इन क्लासेस की वजह से स्टूडेंट कई तरह के तनाव से गुजर रहे हैं। सातवीं क्लास के स्टूडेंट ने टीन एजर हेल्प लाइन उमंग में फोन करके बताया कि वह अपने घर में नहीं रहना चाहता। उसका मन घर से भागने को कर रहा है। जब काउंसलर ने उससे जानकारी ली तो पता चला ऑनलाइन क्लास के दौरान टीचर की डांट पर उसके मम्मी-पापा और छोटे भाई बहन उसे रोज ताना मारते हैं। काउंसलिंग की तो पता लगा कि बच्चा डिप्रेशन में चला गया है। इसके बाद परिजनों की भी काउंसलिंग की जा रही है। यह कोई अकेला केस नहीं है। इस तरह के केस पूरे देशभर में देखने को मिल रहे हैं।

ऑनलाइन क्लासेज से टीचर्स, बच्चे और पैरेंट्स कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं। यूनेस्को की रिपोर्ट बताती है कि कोरोनावायरस के कारण दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है। जबकि, अकेले भारत में यह आंकड़ा 32 करोड़ 7 लाख 13 हजार 810 है। ऑनलाइन क्लास शुरू होते ही मां-पिता या बड़ा भाई बहन आकर बैठ जाते हैं। टीचर के पढ़ाने के अंदाज को जज करते हुए कमेंट करते हैं। जब क्लास शुरू होती है तो घर में सभी लोग बातचीत करते हैं। मम्मी पापा के झगड़े भी उसी समय शुरू होते हैं। डर लगा रहता है कि टीचर न डांट दे जिससे घर में इज्जत उतर जाए। ऑनलाइन क्लास का कॉन्सेप्ट बच्चों के लिए नया है। ऐसे में बच्चे सहज नहीं रह पाते। ऑनलाइन क्लासेस के दौरान बच्चों को वैसा ही रहने दें, जैसे वे स्कूल में रहते हैं।

लगातार ऑनलाइन क्लास बच्चों के लिए कई और तरह की परेशानी की सबब (कारण) भी बन रही है ऑनलाइन क्लास के नाम पर बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल अधिक करने लगे हैं. इसकी वजह से बच्चों में चिड़चिड़ापन हो रहा है और पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहे हैं। इन बच्चों के स्कूल दोबारा कब से खुल पाएंगे, इस बारे में भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में घर से पढ़ाई करने का मतलब है कि बच्चे अब उन्हीं चीजों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे यूज करने से पैरंट्स पहले उन्हें मना करते थे। टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि। ऑनलाइन क्लासेज की वजह से बच्चे घंटों मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं जिसका उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है। बच्चों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के लगातार इस्तेमाल को लेकर कई पैरंट्स भी चिंतित हैं। लेकिन चूंकि इस वक्त कोविड-19 की वजह से बच्चों को पढ़ाने का एकमात्र रास्ता ऑनलाइन क्लासेज ही हैं इसलिए माता-पिता भी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। कोरोना काल से पहले जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो वहां वे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करते बल्कि साथ ही साथ वे नए दोस्त बनाते हैं, सामाजिक व्यवहार करना सीखते हैं, खेलते-कूदते हैं, शारीरिक गतिविधियां करते हैं, सामने वाले व्यक्ति की बॉडी लैंग्वेज को समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन घर से ऑनलाइन क्लासेज के जरिए हो रही पढ़ाई की वजह से बच्चे ये सारी चीजें नहीं कर पा रहे हैं और इसका भी उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।

कम्प्यूटर, लैपटॉप, आईपैड या मोबाइल फोन के सामने घंटों बैठे रहने की वजह से बच्चों के शरीर पर भी इसका कई तरह से नकारात्मक असर पड़ता नजर आ रहा है। बच्चों की मांसपेशियों और हड्डियों के जोड़ों में दर्द रहना। बहुत देर तक एक ही जगह पर एक ही पोजिशन में बैठे रहना। इलेक्ट्रॉनिक गैजट्स का देर तक इस्तेमाल करने से आंखों को होने वाला नुकसान। आंखों का लाल होना, आंखों से पानी आना, आंखों में खुजली या ड्राइनेस होना। थकान और सिर में दर्द, आंखें लाल होना और सिरदर्द की समस्या। ज्यादातर पैरंट्स का यही कहना है कि लंबे समय तक गैजट्स के इस्तेमाल की वजह से बच्चों की आंखें लाल हो रही हैं और उन्हें सिरदर्द की भी समस्या हो रही है। अगर समय रहते इन समस्याओं पर ध्यान न दिया जाए तो ये आगे चलकर बढ़ सकती हैं। टीवी, कम्प्यूटर या फोन की स्क्रीन को घंटों तक लगातार देखते रहने से बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है और उन्हें ज्यादा पावर का चश्मा लगाने की जरूरत पड़ने लगती है।

हाल के दिनों में हुए कई अध्ययनों से इस बात के संकेत मिले हैं कि जो लोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर अत्यधिक समय बिताते हैं उन्हें ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होती है और उन्हें इंटरनेट की लत भी लग जाती है जिससे उनका जीवन कई तरह से प्रभावित हो सकता है। यह पूरी परिस्थिति एक तरह से सामाजिक अलगाव को जन्म देती है जिससे शैक्षणिक उपलब्धि में कमी आती है और यहां तक कि डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी भी हो सकती है। अकेलापन या अलगाव महसूस होने की वजह से कई स्टूडेंट का कॉन्फिडेंस भी कम हो जाता है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वो ही बच्चों के खाने-पीने से लेकर सोने-उठने तक हर बात ध्यान रखें और बच्चों को केवल पौष्टिक आहार ही दें। बच्चों से बातें करें ताकि जान सकें कि आपका बच्चा किसी तरह की पेरशानी तो नहीं महसूस कर रहा है। बच्चों के साथ रहे उनके साथ खेलें और वक्त बिताएं जिससे वो अकेला महसूस न करें इससे आप भी अच्छा महसूस करेंगे। कोरोना काल में एक-दूसरे का सहारा बनें और खुश रहें।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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