ट्रम्प की वीजा नीति से भारतीय समुदाय बिफरा
एक प्रमाण वीजा नियमों में परिवर्तन है जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका में रहने वाला भारतीय समुदाय है।
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जहां एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोस्ती की पींगे बढ़ाते नजर आते है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले भारतीय समुदाय के लिए मुश्किलें खड़ी करने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। इसका एक प्रमाण वीजा नियमों में परिवर्तन है जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका में रहने वाला भारतीय समुदाय है। ज्ञात हो एच-1बी वीजा के नियमों में किए गए बदलावों के खिलाफ 174 भारतीयों के एक समूह ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया है। इस समूह में 7 नाबालिग भी शामिल हैं। इन नियमों के तहत 31 दिसंबर 2020 तक एच-1बी वीजा धारक ना तो अमेरिका में प्रवेश कर सकता है और ना ही उन्हें नया वीजा जारी किया जाएगा। स्मरण रहे एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा होता है, जो किसी विदेशी नागरिक या कामगार को अमेरिका में काम करने के लिए 6 साल के लिए जारी किया जाता है। जो कंपनियां अमेरिका में हैं, उन्हें ये वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है, जिनकी अमेरिका में कमी हो। इस वीजा को पाने की कुछ शर्तें भी होती हैं। जैसे- कर्मचारी को ग्रेजुएशन होने के साथ-साथ किसी एक क्षेत्र में स्पेशियलिटी भी होनी चाहिए। इसके अलावा इसे पाने वाले कर्मचारी की सालाना तनख्वाह 40 हजार डॉलर यानी 45 लाख रुपए से ज्यादा होनी चाहिए। टीसीएस, विप्रो, इन्फोसिस जैसी 50 से ज्यादा भारतीय आईटी कंपनियों के अलावा गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियां इस वीजा का इस्तेमाल करती हैं।
ध्यान रहे 6 जुलाई को अमेरिका ने नई वीजा नीति जारी की थी। इस नई वीजा नीति को लेकर गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट समेत 10 से ज्यादा टेक कंपनियों और 17 राज्यों ने ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ इसी सप्ताह केस दायर किया है। कंपनियों का कहना है कि यह नई वीजा नीति क्रूर, आकस्मिक और गैर-कानूनी है। कंपनियों ने नई वीजा नीति पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की है। नई वीजा नीति में कहा गया था कि जो विदेशी छात्र घर बैठकर ऑनलाइन पढ़ाई करेंगे, उन्हें अमेरिका छोड़ना होगा।
यह मुकदमा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ऑफ कोलंबिया में दर्ज कराया गया। जज केटांजी ब्राउन जैक्सन ने विदेश मंत्री माइक पोम्पियो, कार्यवाहक गृह मंत्री चेड वोल्फ के खिलाफ नोटिस जारी किया। इस मुकदमे में भारतीयों के समूह द्वारा कहा गया है कि एच-1बी /एच-4 वीजा बैन से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा। इसके अलावा यह प्रतिबंध परिवारों को अलग करते हैं। भारतीयों के समूह ने नए वीजा प्रतिबंधों को गैरकानूनी बताते हुए इन पर रोक लगाने की मांग की है। साथ ही एच-1बी और एच-4 वीजा के लिए पेंडिंग मामलों पर कार्यवाही होने के संबंध में निर्णय देने की मांग की है।
जानकारी हो 2 2 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1 बी वर्क वीजा जारी करने पर इस साल के अंत तक के लिए रोक लगा दी थी। इस निर्णय की घोषणा करते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तर्क दिया था कि मौजूदा आर्थिक संकट के कारण नौकरियां खोने वाले लाखों अमेरिकियों के लिए यह आवश्यक था। ये प्रतिबंध 24 जून से लागू हो गए हैं। इस घोषणा के मुताबिक, 31 दिसंबर तक किसी भी विदेशी कामगार को अमेरिका में नौकरी के लिए नया एच-1बी वीजा जारी नहीं होगा। उल्लेख्य है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने आप्रवासन को अपने को पुनः चुने जाने के अभियान का केंद्रीय मुद्दा बना दिया है और इस आदेश को देश की आर्थिक समस्याओं का उपचार बताया है। परन्तु उनके आलोचकों का कहना है कि इस कदम से आर्थिक बहाली नहीं होगी।
मार्च से भारत में फंसे 35-वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर हरप्रीत सिंह सवाल करते हैं, एच-1बी वीजा या हमारे जैसे मुट्ठी भर लोगों को निशाना बनाने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को क्या फायदा पहुंचेगा, जब हम कमा डॉलर में रहे हैं और खर्च रुपयों में कर रहे हैं? हरप्रीत के अनुसार, मेरी कंपनी विचार कर रही है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो कई कर्मचारियों को भारतीय पेरोल में डाल दिया जाएगा। इसके मायने यह हैं कि कुछ बहुराष्ट्रीय नौकरियां स्थानीय लोगों को देने की जगह समुद्र-पार स्थानांतरित कर दी जाएंगी।
अमेरिका की बड़ी तकनीकी कंपनियों ने चेतावनी दी है कि उच्च कौशल वाले कर्मचारियों को नौकरी पर रखने पर प्रतिबंधों की वजह से अर्थव्यवस्था का नुकसान होगा। भारत में जन्मे माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला से लेकर गूगल के सीईओ सुंदर पिच्चई तक, सिलिकॉन वैली लंबे समय से अपनी उन्नति के लिए विदेशी प्रतिभा पर निर्भर रही है।
कार्नेगी एंडॉवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस संस्था के दक्षिण एशिया कार्यक्रम के निदेशक मिलन वैष्णव बताते हैं कि यह कदम स्वयं को दिए गए घाव जैसा है। व्हाइट हाउस मानता है कि ये नीतियां उसके मतदाताओं को पसंद आएंगी। जबकि वास्तविकता यह है कि इसका अर्थव्यवस्था पर बहुत ही गहरा नकारात्मक असर पड़ेगा और उस से उन्हीं लोगों का नुकसान होगा जिनकी मदद करने का ट्रंप दावा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस से प्रतिभा का पलायन भी प्रारम्भ हो सकता है क्योंकि आप्रवासी दूसरी जगहों पर मौके तलाशने लगेंगे। देखना यह है कि आसन्न राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प की प्रवासन नीति उन्हें विजय हार पहनाती है या पराजय की ओर ले जाती है।
ट्रम्प की घटती लोकप्रियता अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प दौर की ओर बढ़ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति व रिपब्लिकन उम्मीदवार की लोकप्रियता में लगातार गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है। क्विनिपियाक विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में किए गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण में बताया गया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूर्व उप राष्ट्रपति जो बाइडेन से 15 अंकों से पिछड़ रहे हैं। इस सर्वेक्षण में राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प के लिए एक झटका यह भी बताया जा रहा है कि लोगों के अनुसार ट्रंप अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर फेल रहे हैं। जबकि ट्रंप ने चुनावों में बेहतर अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण मुद्दा बनाया हुआ है। इस सर्वेक्षण में पंजीकृत मतदाताओं में से 52 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि वे आम चुनाव में बिडेन का समर्थन करेंगे। जबकि केवल 37 फीसदी मतदाताओं ने ट्रंप को समर्थन देने की बात की।
ज्ञात हो एनबीसी/डब्लू एस जे के सर्वेक्षण में भी बिडेन, ट्रंप से बढ़त पाते हुए दिख रहे हैं। उन दोनों के बीच जीत का अंतर भी बढ़ रहा है. इस सर्वेक्षण में भी बिडेन को 51फीसद मतदाताओं का समर्थन, ट्रंप को केवल 40 फीसद मतदाताओं का समर्थन मिला। जबकि एनबीसी/ डब्लूएसजे के जून में हुए सर्वेक्षण में भी बिडेन 49 फीसद और ट्रंप को 42ः समर्थन मिला था। इन सर्वेक्षणों में पाया गया है कि अमेरिकी जनता अर्थव्यवस्था के मामले में ट्रंप के निराशाजनक प्रदर्शन पर नाराज है और यह नाराजगी नकरात्मक समीक्षा के रूप में सामने आ रही है।
अमेरिका के 61 फीसदी मतदाता ट्रंप के स्कूलों को दुबारा खोले जाने वाले निर्णय से नाराज हैं। जबकि 29 फीसदी लोग ट्रंप के इस निर्णय से सहमत हैं। एनबीसी/डब्लूएसजे के पोल से। जानकारी मिलती है कि 57 फीसदी पंजीकृत मतदाता उस प्रत्याशी को वोट देंगे जो कोरोनोवायरस के प्रसार को नियंत्रित करने पर अधिक ध्यान देगा। जबकि 25 फीसदी किसी ऐसे व्यक्ति को वोट देना चाहते हैं जो फिर से कारोबार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
क्विनिपियाक के पहले हुए सर्वेक्षण में मतदाताओं ने अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर ट्रंप को शुद्ध सकारात्मक रेटिंग दी थी। लेकिन अब हुए सर्वेक्षण में 53 फीसदी मतदाताओं ने ट्रंप के राष्ट्रपति के रूप में दिखाए प्रदर्शन को अस्वीकार कर दिया है। नस्लवाद और कोरोना वायरस के मुद्दों पर भी अमेरिकी जनता ट्रंप को असफल मानती दिख रही है। एनबीसी/डब्लूएसजे के अनुसार 36फीसद पंजीकृत मतदाता मान रहे हैं कि राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप सही काम कर रहे हैं। वहीं 60फीसद मतदाता उन्हें असफल मानते हैं। जून में यह आंकड़ा 42 फीसद और 55 फीसद था।
पेनसिल्वेनिया की मॉनमाउथ यूनिवर्सिटी के एक सर्वेक्षण में भी ट्रम्प की तुलना में बिडेन को महत्वपूर्ण माना गया. बिडेन को 53 फीसद पंजीकृत मतदाताओं का समर्थन मिला वही ट्रम्प को केवल 40 फीसद ने चुना। सर्वेक्षण केवल अनुमान हैं। परन्तु इससे संकेत मिलता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने चुनौती बढ़ती जा रही है।
(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)