ड्रैगन को पीछे हटाने ही पड़े कदम

भारतीय सेना नजर बराबर इस बात पर रहेगी कि चीनी सैनिक टेन्ट उखाड़कर अगर जा रहे हैं तो फिर से वापस न आएं।

Update: 2020-07-06 13:44 GMT

लखनऊ। लगभग दो महीने बाद चीन ने पीछे हटना शुरू किया है गलवान घाटी और अन्य क्षेत्रों से चीन के सैनिक ठीक उस दिन पीछे हटे हैं जब भगवान शंकर की आराधना का प्रमुख महीना सावन शुरू हुआ है। इसके दो दिन पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लेह में सैनिकों के बीच पहुंचे थे। मोदी ने यह संकेत भी दे दिया था कि चीन को अब किसी भी सूरत में आगे नहीं बढ़ने देना है, उसे पीछे कदम लौटाने ही होंगे। यही हुआ है और चीन की बख्तरबंद गाड़ियां भी वापस जाने लगीं लेकिन भारतीय सैनिक चीन की नीयत और इरादों से भलीभांति वाकिफ है, इसलिए अगले कुछ दिन बहुत ही सतर्कता के होंगे। भारतीय सेना किसी भी प्रकार की गफलत में नहीं रहना चाहती है। उसकी नजर बराबर इस बात पर रहेगी कि चीनी सैनिक टेन्ट उखाड़कर अगर जा रहे हैं तो फिर से वापस न आएं। चीन के विस्तारवाद पर भारत के विकासवाद ने भी बहुत प्रभाव डाला है। चीन के साथ व्यापार में भारत की तरफ से जो दीवालें खड़ी की गयीं, उनके ऐप्स पर नियंत्रण लगाया गया, उसका भी असर पड़ा है। इसके अलावा कई देश चीन के विरोध में खड़े हो गये हैं क्योंकि चीन की लालची नजर लगभग 250 द्वीपों पर कब्जा करने की है। इन सभी कारणों से भारत का पक्ष मजबूत हुआ और चीन को गलवान घाटी में पीछे हटना पड़ा।

भारत के सफल कूटनीतिक एवं सैनिक प्रयासों के बाद चीन की सेना ने गलवान घाटी के पेट्रोल प्वाइंट 14 से अपने अस्थाई ढांचे हटा लिये हैं और लगभग 2 किलोमीटर का इलाका अब पूरी तरह से खाली हो गया है। भारतीय सेना की फिजिकल वेरिफिकेशन में यह पता चलता है कि चीन की सेना ने अस्थाई टेंट हटा लिये हैं। हालांकि सेना की तरफ से अभी तक इस जानकारी की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है। सूत्रों के मुताबिक अभी सिर्फ गलवान घाटी के पेट्रोल प्वाइंट 14 से ही चीनी सेना पीछे हटी है जबकि पैंगोंग त्सो झील, डेपसांग और गोगरा पोस्ट के क्षेत्रों में अभी तक पहले वाली स्थिति बनी हुई है। सूत्रों के मुताबिक चीन की सेना ने गलवान घाटी के पेट्रोल प्वाइंट 14 से अपनी गाड़ियां भी पीछे हटा ली है। पेट्रोल प्वाइंट 14 में दोनो पक्ष आमने सामने से हट गए हैं। आधिकारिक तौर पर भारतीय सेना जब तक इसकी पुष्टि नहीं करती तबतक चीन पर भरोसा करना अच्छा नहीं होगा। ध्यान रहे चीन की सेना ने दोनो देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन किया था जिसके बाद भारत और चीन के सैनिकों के बीच 15 जून को हिंसक झड़प हुई थी, झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे जबकि चीन के 45 सैनिकों के मारे जाने की खबर है। इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है, हालांकि तनाव को कम करने के लिए भारत और चीन के बीच कमांडर स्तर पर बातचीत हो रही है। कमांडर स्तर की बात के हर दौर में चीन की फौज को भारतीय फौज अप्रैल 2020 वाली स्थिति में लौटने के लिए कह रही है और हो सकता है कि गलवान में पेट्रोल प्वाइंट 14 से हटकर चीन ने इसकी पहल कर दी हो। हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि बर्फ पिघलने की वजह से गलवान नदी उफान पर आ चुकी है और इस वजह से भी चीनी सैनिकों को अपने अस्थाई ढांचे हटाने पर मजबूर होना पड़ा होगा। इसके साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि चीन पर दबाव डालने के लिए न सिर्फ भारतीय फौज लद्दाख में चीनी फौज के सामने चट्टान की तरह खड़ी है बल्कि भारत सरकार ने भी हाल के दिनों में कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे चीन बैकफुट पर है।

ध्यान रहे भारत-चीन सीमा पर तनाव के बीच मोदी सरकार ने देश की सैन्य ताकत को मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। रक्षा अधिग्रहण परिषद ने लड़ाकू विमानों और हथियारों की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। रक्षा अधिग्रहण परिषद की बैठक में 21 मिग-29 और 12 सुखोई (एसयू-30 एमकेआई) लड़ाकू विमानों की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी। इसके साथ ही 59 मिग-29 लड़ाकू विमानों के अपग्रेडेशन की भी मंजूरी दी गई है। मिग-29 लड़ाकू विमानों की खरीद रूस से की जाएगी। साथ ही मौजूदा मिग-21 लड़ाकू विमानों का अपग्रेडेशन भी से कराया जाएगा। इस पर करीब 7 हजार 418 करोड़ रुपये खर्च होंगे। वहीं, एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों को एचएएल से खरीदा जाएगा। जिन पर 10 हजार 730 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

रक्षा अधिग्रहण परिषद ने कुल मिलाकर 38 हजार 900 करोड़ रुपये की खरीद को मंजूरी दी है। यह महत्वपूर्ण फैसला रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में हुई रक्षा अधिग्रहण परिषद की बैठक में लिया गया। मोदी सरकार के इस फैसले से भारतीय रक्षा तंत्र और मजबूत होगा। लड़ाकू विमानों और हथियारों की खरीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत को ध्यान में रखकर की जाएगी। लिहाजा स्वदेशी डिजाइन पर फोकस करते हुए भारतीय उद्योग को भी अधिग्रहण में शामिल किया जाएगा।

भारत की ओर से लगातार चीन को आर्थिक झटके दिए जा रहे हैं। सड़क निर्माण और डिजिटल क्षेत्र में झटके के बाद अब बारी बिजली क्षेत्र की है। केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि पावर प्रोजेक्ट के लिए चीन से जो भी इम्पोर्ट होता था, अब सरकार उसे रेगुलेट कर सकती है। इस क्षेत्र में कस्टम ड्यूटी को बढ़ाया जा सकता है। आरके सिंह ने कहा कि सरकार की ओर से कस्टम ड्यूटी को बढ़ाया जाएगा, ताकि आसानी से होने वाले आयात को सख्त किया जाए. चीनी कंपनियों को रोकने के लिए कस्टम के साथ-साथ नियमों में सख्ती बरती जाएगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत इतनी ताकत रखता है कि हम आर्थिक लेवल के साथ-साथ युद्ध क्षेत्र में भी चीन को धकेल सके।। इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बयान दिया था कि भारत में बड़े हाइवे प्रोजेक्ट्स में अब चीनी कंपनियों को बैन किया जाएगा। सरकार ने चीन की 59 मोबाइल ऐप्स पर बैन भी लगा दिया था। चीनी सैनिकों के पीछे हटने मंे ये सब कारण भी रहे हैं।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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