महाशिवरात्रि- शिव की तरह प्रकृति का सम्मान करना आवश्यक

आज के संदर्भ में यदि हम देखें तो तामसी प्रवृत्ति समाज में तेज रफ्तार से बढ़ रही है। हर जगह भ्रष्टाचार एवं आतंक का बोलबाला हैं।

Update: 2021-03-10 16:10 GMT

मुज़फ्फरनगर। महाशिवरात्रि पर्व श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। शिव भगवान हिंदुओं के आराध्य देव हैं, वह देवों के देव महादेव हैं। कैलाश पर्वत उनका निवास स्थल माना जाता है, जहां से मां पार्वती के साथ साधना में रहते हैं। हिमाचल के असंख्य देवी-देवता शिव और शक्ति के ही प्रतिरूप हैं। वैदिक मंत्रों में उनकी रूद्र रूप में स्तुति की गई है। पौराणिक गाथाएं उनके अनुपम और विचित्र स्वरूप का वर्णन करती हैं। शिव भगवान जहां आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं, वही वह रौद्र रूप धारण करके पापियों और दुष्टों का संहार भी करते हैं। ब्रह्मा और विष्णु यदि सृष्टिकर्ता और पालन करता है, तो भगवान शिव के पास संहार शक्ति भी है। उसी प्रकार कुरूप-विरूप, भूत-प्रेत, पिशाच एवं वनवासियों के वे देवाधिदेव हैं। उनकी महिमा अपरंपार है। समुद्र मंथन से उत्पन्न हलाहल विष को पीने वाले महाभिमानी दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस करने वाले, अपने ही वरदान से भस्मासुर को शक्ति प्रदान कर स्वयं उससे अपनी रक्षा हेतु भागने वाले भोलेनाथ ही हैं। देव नदी गंगा के वेग प्रवाह को अपनी जटाओ में धारण करने वाले, मृगछाला धारण करने वाले, भस्म को शरीर पर लेपित करने वाले भगवान शिवशंकर भोलेनाथ ही हैं।  

आज के संदर्भ में यदि हम देखें तो तामसी प्रवृत्ति समाज में तेज रफ्तार से बढ़ रही है। हर जगह भ्रष्टाचार एवं आतंक का बोलबाला हैं। हम देवी-देवताओं की आराधना इसलिए करते हैं कि हमें सद्मार्ग प्राप्त हो। भगवान की कृपा से ही मानव में छिपे सद्गुण उजागर होते हैं। इसलिए नित्य ही हमें इष्ट देव का स्मरण, ध्यान करना चाहिए। देवाधिदेव शिव के स्वरूप एवं उनके गुणों का समाज एवं सत्तासीन प्रतिनिधियों को अनुसरण करना चाहिए। समाज में असहाय, निर्धन एवं हेय दृष्टि से देखे जाने वाले वर्ग की समर्थ लोगों द्वारा मदद की जानी चाहिए। प्रत्येक सरकार द्वारा उक्त लोगों के उत्थान के लिए समय-समय पर योजनाएं संचालित की जानी चाहिए।

शाहपुर निवासी के डाॅ. अनुज अग्रवाल बताया कि शिवरात्रि को भगवान शिव द्वारा जो संदेश दिये हैं, उसी के अनुसार अलग रूप से मनाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भोलेनाथ की तरह सादगी और निश्छल भाव से समाज की समरसता को बढ़ाया जा सकता है। प्रकृति के चरम शिखर कैलाश पर्वत पर वास करने वाले शंकर भगवान कितने प्रकृति प्रेमी है, यह सहज ही आभास हो जाता है। प्रकृति प्रेम के आदर्श स्वरूप से यह सबक लेना बहुत जरूरी है कि हम पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने का पूर्ण प्रयत्न करें। समाज की बुराइयों एवं आंतक की दहशत को दूर करने के लिए देशवासियों एवं विशेष रूप से वर्तमान सरकार को शिव का रूद्र रूप एवं सहायक रूप धारण करना चाहिए, तभी सत्य में शिवरात्रि महापर्व की सार्थकता सिद्ध होगी और देश का कल्याण होगा।


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