राजस्थानी लोकगीत और पाश्चात्य संगीत की जुगलबंदी ने दर्शकों को किया....

राजस्थानी लोकगीत और पाश्चात्य संगीत की जुगलबंदी कार्यक्रम की प्रस्तुति दो भागों में की गई।;

Update: 2025-01-26 04:47 GMT

जयपुर I राजस्थान में पर्यटन विभाग द्वारा राजस्थान की पारंपरिक और सांस्कृतिक लोक कला एवं कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए की गई पहल ‘कल्चरल डायरीज़’ के चौथे संस्करण में शनिवार को अल्बर्ट हॉल पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में पारंपरिक लोककला और पाश्चात्य संगीत कला की जुगलबंदी देखने को मिली।

राजस्थानी लोकगीत और पाश्चात्य संगीत की जुगलबंदी कार्यक्रम की प्रस्तुति दो भागों में की गई। कार्यक्रम के प्रथम भाग में राजस्थान की चार पारंपरिक जातियां, मांगणियार, लंगा, दमामी और सपेरा (जो कालबेलिया के नाम से भी प्रचलित हैं) के ‘असपत की सवारी (स्वागत गीत)’ ‘करियो सांवले रंग का’ ‘हरियाल्ड़ो बना’ ‘कोड़ा करै माहरी माँ’ ‘खम्मा घणी’ ‘बिछूड़ो’ ‘जलालो बिलालो’ जैसे लोक गीतों की प्रस्तुति दी गई। इन लोक गीतों के प्रस्तुतिकरण में कामायचा, सिंधि सारंगी, ढोलक, ढोल, भपंग, मोरचंग, खड़ताल, नगाड़ा आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग किया गया। 

कार्यक्रम का दूसरा भाग भी अत्यंत मनमोहक रहा। कार्यक्रम के इस भाग में राजस्थानी लोक कलाकारों के ‘केसरिया बालम’ ‘झिरमिर बरसे मेह’ ‘पणिहारी’ और एक सूफी गीत, ‘मूंडी तूही’ लोक गीतों पर पाश्चात्य गीत और सैक्सोफोन, गिटार, क्लैपबॉक्स, ड्रमसैट आदि पाश्चात्य वाद्य यंत्रों के साथ जुगलबंदी प्रस्तुत की गई, जिसने दर्शकों को झूमने पर विवश कर दिया।

इस मनमोहक शाम की प्रस्तुति जाजम फाउन्डेशन के निदेशक विनोद जोशी और उनके 17 लोक एवं पाश्चात्य कालाकारों द्वारा की गई। जयपुर के अल्बर्ट हॉल पर आम जनता के साथ-साथ बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानियों ने भी इस रंगारंग कार्यक्रम का आनंद लिया। राजस्थान पर्यटन विभाग की पहल “कल्चरल डायरीज” का अगला एवं पांचवां संस्करण दिनांक सात और आठ फरवरी को आयोजित किया जाएगा।Full View

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