मोदी के शेरों पर सुप्रीम मोहर
PM मोदी और उनके गुजरात में पाये जाने वाले शेरों की मुख मुद्रा को ध्यान में रखते हुए बना दिये
नयी दिल्ली में नए संसद भवन पर अशोक स्तम्भ के शेर बनाने वाले कलाकार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके गुजरात में पाये जाने वाले शेरों की मुख मुद्रा को ध्यान में रखते हुए बना दिये। सम्राट अशोक ने बौद्ध स्तम्भों का निर्माण कराते समय बुद्धम शरणम् गच्छामि, धौम्यं शरणम् गच्छामि को ध्यान में रखा था लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब नए संसद भवन का निर्माण कराया, तब तक युग बदल गया है। अब रामधारी सिंह दिनकर की इन पंक्तियों को आदर्श माना जाता है-
क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो।।
इसीलिए संसद भवन पर अशोक स्तम्भ पर लगाये गये शेरों मंे नये भारत की तरह स्वाभिमान और आक्रोश झलकता है। विपक्ष मंे भी कुछ नेता ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि हमें मोदी सरकार की आलोचना करनी ही है। इसीलिए कभी-कभी वे शर्मिन्दगी का सामना भी करते हैं। नये संसद भवन पर लगे अशोक स्तम्भ के शेरों को लेकर भी इसी तरह की आलोचना की गयी और विपक्ष के नेता कहने लगे कि अशोक स्तम्भ का स्वरूप बिगाड़ दिया गया है। यह शिकायत सिर्फ सड़क तक ही सीमित नहीं रही बल्कि देश की सबसे बड़ी अदालत मंे पहुंच गयी। सुप्रीम कोर्ट ने अशोक स्तम्भ के स्वरूप को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील जो यह दलील दे रहे हैं कि इसमंे शेर कहीं ज्यादा आक्रामक नजर आ रहे हैं तो यह देखने वाले की सोच पर निर्भर करता है। इस प्रकार मोदी के शेरों पर सुप्रीम मोहर लग गयी है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए संसद भवन की छत पर बनाए गए अशोक स्तंभ के स्वरूप को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। दो वकीलों की ओर से दायर अर्जी में राष्ट्रीय प्रतीक में लगे शेरों की मुद्रा पर सवाल उठाया गया था। याचिका में गया था कि नए संसद भवन में लगाए गए राष्ट्रीय प्रतीक के शेर, सारनाथ म्यूजियम में संरक्षित रखे गए राष्ट्रीय चिह्न के गंभीर शांत शेरों की तुलना में कहीं ज्यादा क्रूर दिख रहे हैं ।ये भारतीय राष्ट्रीय चिह्न (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट का उल्लंघन है। सेंट्रल विस्टा में लगे भारतीय राजचिह्न में शेरों की बनावट को लेकर विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार को घेरा था। विपक्षी दलों का कहना था कि राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप को बदला गया है। हालांकि विपक्ष के इन आरोपों पर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने पलटवार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यहां लगाए गए अशोक स्तंभ के शेर किसी तरह से इस एक्ट का उल्लंघन नहीं हैं। जब वकील ने दलील दी कि इसमें शेर कहीं ज्यादा आक्रामक नजर आ रहे है तो जस्टिस शाह ने कहा कि ये देखने वाले की सोच पर निर्भर करता है। याचिका गत 29 सितम्बर को जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच के सामने आई।
मोदी सरकार ने नया संसद भवन बनवाया है। 1921 से 1927 के बीच पुराने संसद भवन का निर्माण हुआ था। नया संसद भवन 64,500 वर्ग मीटर में फैला है जो अभी की इमारत से 17,000 वर्ग मीटर ज्यादा है। लोकसभा का आकार मौजूदा सदन से लगभग तिगुना हो गया। लोकसभा में 888 सदस्यों के लिए सीटें हैं वहीं उच्च सदन राज्य सभा के 384 सदस्य इसमें बैठ सकेंगे।
ऐसा भविष्य में सांसदों की संख्या में वृद्धि को ध्यान में रखकर किया गया है। भारत में अभी लोक सभा में 543 और राज्य सभा में 245 सीटें हैं। नए संसद भवन की संयुक्त बैठक के दौरान वहाँ 1272 सदस्य बैठ सकेंगे। अधिकारियों के अनुसार नए भवन में सभी सांसदों को अलग दफ्तर दिया जाएगा जिसमें आधुनिक डिजिटल सुविधाएँ होंगी ताकि पेपरलेस दफ्तरों के लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सके। नई इमारत में एक भव्य कॉन्स्टीच्यूशन हॉल या संविधान हॉल होगा जिसमें भारत की लोकतांत्रिक विरासत को दर्शाया जाएगा। वहाँ भारत के संविधान की मूल प्रति को भी रखा जाएगा। साथ ही वहाँ सांसदों के बैठने के लिए बड़ा हॉल, एक लाइब्रेरी, समितियों के लिए कई कमरे, भोजन कक्ष और बहुत सारी पार्किंग की जगह होगी।
मौजूदा संसद भवन का इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा। अधिकारियों के मुताबिक संसद की नई इमारत बनाने की लागत करीब 971 करोड़ रुपये है।
मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने साम्राज्य को चलाने के लिए लाल किले का निर्माण कराया। 1857 के गदर में अंग्रेजों से हारने और बंदी बनाकर बर्मा भेजे जाने तक अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर इसी लाल किले से अपनी सत्ता चलाते रहे। इसके बाद कुछ वक्त तक अंग्रेजी राज की राजधानी कोलकाता रही, लेकिन 12 दिसंबर 1911 को किंग जॉर्ज पंचम ने अपने ऐलान के साथ दिल्ली को फिर से भारत की राजधानी बना दिया। 1931 तक वायसरॉय और उनके सचिवालय के लिए नई बिल्डिंग्स बनाई गईं और देश के आजाद होने यानी 1947 तक अंग्रेजी हुकूमत इन्हीं बिल्डिंगों के जरिए चली। अब 2020 में केंद्र की मोदी सरकार इसी सेंट्रल विस्टा, संसद भवन और दूसरे केंद्रीय मंत्रालयों के दफ्तरों को फिर से विकसित कर इसे नया रूप देना चाहती है। भारत की हुकूमतें इन्हीं नए संसद परिसर, सेंट्रल विस्टा और कॉमन सचिवालय से चला करेंगी।
रायसिना हिल्स पर मौजूद बिल्डिंग्स का निर्माण 1911 से 1931 के बीच हुआ था। इसका डिजाइन सर एडविन लुटियन और सर हरबर्ट बेकर ने बनाया था। उस वक्त इन बिल्डिंग्स को वायसरॉय और उनके सचिवालय के लिए तैयार किया गया था। इसी अवधि में संसद भवन भी बनाया गया था। इस पूरे इलाके को विकसित हुए 100 साल गुजरने के बाद रायसिना हिल और राजपथ को फिर से तैयार करने की जरूरत सरकार को महसूस हुई। (हिफी)