मोदी ने उछाला भाजपा का ग्राफ
जनसंघ वाद में भारतीय जनता पार्टी बन गया और 2 सांसदों से 303 सांसदों के सफर में नरेन्द्र मोदी का नेतृत्व ही सबसे ज्यादा झलकता है
नई दिल्ली। भारत की राजनीति में जलता हुआ दिया आज भी लोगों को याद है क्योंकि इस चुनाव चिह्न वाली पार्टी जनसंघ ऐसे विचारों पर आधारित थी जिनमें बौद्धिक जनों को राष्ट्र की चेतना दिखाई पड़ती थी। उस समय के राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे थे, जिससे जनसंघ को संसद और विधानसभाओं में अपने सदस्य पहुंचाने में सफलता नहीं मिल पायी। जनसंघस को दो सदस्यों वाली पार्टी कहा जाता था। जनसंघ वाद में भारतीय जनता पार्टी बन गया और 2 सांसदों से 303 सांसदों के सफर में नरेन्द्र मोदी का नेतृत्व ही सबसे ज्यादा झलकता है। गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में 1990 और 1995 के विधानसभा चुनाव भाजपा का विजयी रथ जिस तरह से चल रहा था, उसी रफ्तार को नरेन्द्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद जारी रखा। गिनती के दो-चार राज्यों में सिमटी भाजपा उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, असम, त्रिपुरा, मेघालय, गोवा जैसे राज्यों में छा गयी है। पश्चिम बंगाल में जहां भाजपा का कोई नाम लेने वाला नहीं था, वहां नरेन्द्र मोदी ने प्रमुख विपक्षी दल बना दिया। दक्षिण भारत में कर्नाटक में भाजपा की सरकार है और अभी हाल ही में महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना को दो फाड़ करके उद्धव ठाकरे से सरकार छीन ली है। भाजपा की 2014 के बाद 2019 में तो और भी शानदार विजय हुई है और अब 2024 के आम चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी का विकल्प विपक्ष में दिखाई नहीं पड़ रहा है।
भारतीय जनता पार्टी, जिसे अब भाजपा अथवा बीजेपी के नाम से देश का बच्चा बच्चा जान गया है, ने राजनीतिक पार्टी के रूप में 42 वर्षों का सफर तय कर लिया है। इससे पहले इस पार्टी को भारतीय जनसंघ के नाम से जाना जाता था। जनसंघ की विचारधारा के रूप में विशिष्ट पहचान थी तो भाजपा ने राजनीतिक उपलब्धियों के रूप में अपनी पहचान बनायी है। दो सांसदों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा के पास आज अपने 303 सांसद हैं और केंद्र में पांचवीं बार सरकार बनाने का अवसर देशकी जनता ने दिया है। जनसंघ को जहां श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के कारण लोकप्रियता हासिल हुई थी, वहीं भाजपा आज जिस मुकाम पर पहुंची है, उसके लिए नरेंद्र दामोदर मोदी का नाम लिया जा सकता है। गत 6 अप्रैल को भाजपा ने अपनी स्थापना के 42 वर्ष पूरे किए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के नेता के तौर पर नहीं बल्कि देश के जिम्मेदार प्रधानमंत्री की तरह भाजपा कार्यकर्ताओं को नसीहत दी। राजनीतिक महाभारत में अर्जुन की भूमिका नरेंद्र मोदी ने निभाई है।
भाजपा का पूर्व रूप जनसंघ था। भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी की पक्षपाती नीतियों के विरोध में और राष्ट्रवाद के समर्थन में 1951 में की थी।
जनसंघ का प्रथम अभियान जम्मू और कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय के लिए आंदोलन था। कश्मीर आंदोलन के विरोध के बावजूद 1953में पहले लोकसभा चुनावों में जनसंघ को लोकसभा में तीन सीटें प्राप्त हुई। वो 1967 तक संसद में अल्पमत में रहे। इस समय तक पार्टी कार्यसूची के मुख्य विषय सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाना और जम्मू एवं कश्मीर के लिए दिया विशेष दर्जा खत्म करना थे। इसके बाद चीन और पाकिस्तान के साथ देश के युद्ध लड़ने पड़े । यह समय राजनीतिक रूप से भी लड़ने का नहीं था। जनसंघ के जिम्मेदार नेताओं ने कांग्रेस सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर परिस्थितियों का सामना किया।
सन् 1962 में चीन के साथ लड़ाई में हमारे देश की हालत लगभग जर्जर हो गयी थी। ऐसे समय में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने से जनसंघ भी बचना चाहती थी लेकिन 1967 में देशभर के विधानसभा चुनावों में पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और समाजवादियों सहित अन्य पार्टियों के साथ मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न हिन्दी भाषी राज्यों में गठबंधन सरकार बनाने में सफल रही। 1977 में आपातकाल खत्म हुआ और इसके बाद आम चुनाव हुये। इस चुनाव में जनसंघ का भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ) और समाजवादी पार्टी के साथ विलय करके जनता पार्टी का निर्माण किया गया और इसका प्रमुख उद्देश्य चुनावों में इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को हराना था। सभी विपक्षी दल और कांग्रेस छोड़कर आये नेता जब एक मंच पर खड़े हो गये तो 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी को विशाल सफलता मिली और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। दीनदयाल उपाध्याय के 1979 में निधन के बाद जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेयी बने थे अतः उन्हें इस सरकार में विदेश मंत्रालय का कार्यभार मिला। हालांकि, विभिन्न दलों में शक्ति साझा करने को लेकर विवाद बढ़ने लगे और ढ़ाई वर्ष बाद ही मोरारजी रणछोड़जी देसाई को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। गठबंधन के एक साल कार्यकाल के बाद 1980 में आम चुनाव करवाये गये। इसी वर्ष 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई थी।
कांग्रेस के विरोध में राजनीतिक दलों की स्वार्थी नीति को समझते हुए पुराने जनसंघ के नेताओं अटलबिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, भैरोसिंह शेखावत आदि ने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी अर्थात भाजपा का गठन किया।
भाजपा ने 1984 के आम चुनाव में सिर्फ दो सांसद पाये थे लेकिन 1996 के आम चुनाव में इस पार्टी को 163 सांसद मिल गये थे। इसके पीछे लालकृष्ण आडवाणी की प्रमुख भूमिका थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस से बगावत करके बोफोर्स तोप सौदे में दलाली का मामला उठाया था। उस समय कांग्रेस के नेता राजीव गांधी हुआ करते थे। कांग्रेस के खिलाफ एक बार फिर विपक्षी दलों ने जनता दल के नाम से मोर्चा बनाया था। वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके आरक्षण का कार्ड चला तो भाजपा ने राम मंदिर का मामला उठाया। इसके बाद ही 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा का राजनीतिक ग्राफ आगे बढता चला गया। भाजपा ने 1996 में अटलबिहारी वाजपेई के नेतृत्व में पहली बार गठबंधन की सरकार बनाई थी। बहुमत न होने से यह सरकार 13 दिनो में ही गिर गई थी। भाजपा ने 1999 में घटक दलों के सहयोग से फिर सरकार बनाई और इस बार पूरे पाँच साल सरकार चली। हालांकि सोनिया गांधी ने 2004 में यूपीए के नाम से गठबंधन बनाकर भाजपा से सत्ता छीन ली और पूरे दस साल उसे वनवास मे रहना पडा लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस से एक बार फिर सत्ता ले ली। भाजपा को मोदी ने 282 सांसद दिलाए थे। तब से भाजपा का ग्राफ ऊंचा ही जा रहा है। आज भाजपा के पास 303 सांसद हैं। (हिफी)