अविद्या ही मानव दुखों का मूल कारण: सुरेंद्र पाल
शुद्ध ज्ञान,शुद्ध कर्म व शुद्ध उपासना के बिना मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं है।
मुजफ्फरनगर। शुद्ध ज्ञान,शुद्ध कर्म व शुद्ध उपासना के बिना मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं है। उक्त विचार भारतीय योग संस्थान के निःशुल्क योग साधना केंद्र ग्रीन लैंड माडर्न जू० हाई स्कूल मुजफ्फरनगर में संस्थान के प्रान्तीय कार्यकारिणी सदस्य योगाचार्य सुरेन्द्र पाल सिंह आर्य ने ज्ञान,कर्म और उपासना विषय पर योग गोष्ठी में दिए।उन्होंने बताया कि जब तक व्यक्ति को शुद्ध ज्ञान नहीं होता अर्थात मिथ्या ज्ञान रहता है। कर्म शुद्ध अर्थात निष्काम कर्म नहीं करता और शुद्ध उपासना अर्थात ऋद्धा और विश्वास के साथ ईश्वर भक्ति नहीं करता। तब तक यह मानव जीवन व्यर्थ ही है।मानव जीवन का लक्ष्य धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं है।इसके लिए संध्या,हवन और ईश्वर भक्ति मुख्य साधन है।जब व्यक्ति उस सर्वशक्तिमान ,निर्विकार,सर्वव्यापक,सर्वज्ञ परमेश्वर की उपासना ऋद्धा और विश्वास के साथ करता है तो वह न्यायकारी ईश्वर उसे शुद्ध ज्ञान व शुद्ध कर्म करने की प्रेरणा देता है।
जिला कार्यकारिणी सदस्य सत्यवीर सिंह पंवार ने कहा कि जब व्यक्ति निजी स्वार्थ को छोड़कर सत्य और असत्य को ध्यान में रखते हुए निष्काम कर्म करता है तब उसे शुद्ध और अशुद्ध व सही और गलत की पहचान होती हैं।योग शिक्षक यज्ञ दत्त आर्य ने कहा कि जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरूप को साथ ही साथ जानता है वह अविद्या अर्थात कर्मोपासना से मृत्यु को तर के विद्या अर्थात यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है।योगसूत्र में वर्णित है कि अविद्या के चार भाग है पहला अनित्य को नित्य जानना ,जैसे यह संसार व देह आदि सदा से है और सदा रहेंगे।जबकि सत्य यह है कि ये एक दिन समाप्त होने वाले है अर्थात नश्वर है।दूसरा अशुचि अर्थात अशुद्ध को शुद्ध मानना। तीसरा सांसारिक सुख को ही असली सुख मानना जबकि प्रत्येक सांसारिक सुख के साथ चार प्रकार के दुःख मिले हुए है।चौथा अनात्मा को आत्मा मान लेना।वास्तव में अविद्या ही मानव जीवन में दुःखो का मूल कारण है।इस अवसर पर प्रदीप शर्मा,केंद्र प्रमुख नीरज बंसल,राजकिशोर,अंकुर मान ,क्षेत्रीय प्रधान राजीव रघुवंशी व कामेश मलिक आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।