तीरथ की पहली परीक्षा सल्ट में

तीरथ की पहली परीक्षा सल्ट में

देहरादून। सल्ट विधानसभा में चुनावी रण पूरी तरह बिछ गया है। विधायक सुरेन्द्र जीना के निधन के बाद बीजेपी ने उनके भाई महेश जीना पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने 2017 की रनर-अप रही गंगा पंचोली पर फिर दांव खेला है। मुख्य मुकाबला इस बार भी 2017 की तर्ज पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है, बस अंतर इतना है कि बीजेपी के सुरेन्द्र की जगह महेश जीना ने ले ली है। यही नहीं मतदाताओं की संख्या में बीते चार सालों में बहुत अंतर नहीं आया है। माना जा रहा है कि इसी उपचुनाव से 2022 के विधानसभा चुनावों के जीतने का रास्ता भी साफ होगा।

उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की पहली परीक्षा सल्ट विधानसभा के उपचुनाव में होने जा रही है। भाजपा की यह सीट है जो विधायक के निधन से खाली हुई है। इसलिए भाजपा को यह सीट फिर से हासिल करना जरूरी है। एक साल बाद ही राज्य में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। इसलिए भाजपा के लिए यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के सीएम पद से हटने के बाद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद ही फटी जीन्स का बयान देकर वह विवादों में घिर गये थे। तीरथ सिंह ने इसके लिए माफी भी मांगी थी। जनता, विशेशकर महिलाओं ने उन्हें माफ कर दिया है अथवा नहीं माफ किया, इसका भी फैसला इसी उपचुनाव में हो जाएगा।

पिथौरागढ़ में सूबे की सल्ट विधान सभा भले ही पहली बार उपचुनाव का सामना कर रही हो, लेकिन यहां के चुनावी हालात बहुत हद तक 2017 के जैसे ही हैं। इस दौरान अंतर आया है तो सिर्फ इतना कि सुरेन्द्र जीना की जगह उनके भाई महेश जीना बीजेपी से मैदान में हैं। सल्ट विधानसभा में चुनावी रण पूरी तरह बिछ गया है। विधायक सुरेन्द्र जीना के निधन के बाद बीजेपी ने उनके भाई महेश जीना पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने 2017 की रनर-अप रही गंगा पंचोली पर फिर दांव खेला है। मुख्य मुकाबला इस बार भी 2017 की तर्ज पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है,

बस अंतर इतना है कि बीजेपी के सुरेन्द्र की जगह महेश जीना ने ले ली है। यही नहीं मतदाताओं की संख्या में बीते चार सालों में बहुत अंतर नहीं आया है। माना जा रहा है कि इसी उपचुनाव से 2022 के विधानसभा चुनावों के जीतने का रास्ता भी साफ होगा।

बीते चुनाव अर्थात 2017 में जहां सल्ट में 95 हजार 158 वोटर थे, वहीं अब इनकी संख्या 95 हजार 241 हो गई है। कांग्रेस से राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा का कहना है कि भले ही ज्यादातर हालात 2017 के जैसे ही हों, लेकिन इस बार चुनाव परिणाम 2017 से उलट रहेंगे। टम्टा दावा करते हैं कि कांग्रेस की जीत निश्चित है।वह कहते हैं कि 2017 के रण में भले ही जीत बीजेपी के सुरेन्द्र जीना की हुई थी, लेकिन अंतिम क्षणों में पहली बार विधानसभा के रण में उतरी गंगा पंचोली ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। बीजेपी के जीना को इस चुनाव में जहां 21581 वोट मिले थे तो कांग्रेस की गंगा को 18677 वोट मिले थे। उम्मीदवारों के लिहाज से 2017 में 10 दावेदार मैदान थे तो इस बार इनकी संख्या घटकर 7 जरूर हो गई है। बीते चुनाव से तुलना की जाए तो यहां कांग्रेस और बीजेपी के अलावा किसी का भी जनाधार नजर नहीं आता है क्योंकि 2017 में भुवन जोशी तीसरे नम्बर पर रहे थे लेकिन उन्हें वोट सिर्फ 669 मिले थे। बीजेपी सांसद अजय भट्ट का कहना है कि उनकी पार्टी सल्ट उपचुनाव तो भारी मतों से जीत ही रही है, साथ ही यहां से 2022 के विधानसभा चुनावों के जीतने का रास्ता भी तैयार होगा।

इस प्रकार भले ही उपचुनाव में सल्ट विधानसभा के चुनावी समीकरण बहुत ज्यादा न बदले हों, लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या नतीजा भी पिछली बार की तरह ही रहता है या फिर जनता जनार्दन नया इतिहास रचती है। ऐसे में अब सबकी निगाहें 2 मई पर टिकी हैं, जब ईवीएम का पिटारा खुलेगा। स्वर्गीय सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद खाली हुई सल्ट विधानसभा सीट के लिए 17 अप्रैल को वोटिंग होनी है। बीजेपी ने सुरेंद्र सिंह जीना के बड़े भाई महेश जीना को सल्ट से अपना प्रत्याशी बनाया है।इससे पार्टी को जनता की सहानुभूति का लाभ भी मिलेगा। इसीलिए सल्ट से बीजेपी की ओर से टिकट के दावेदारों में महेश जीना का नाम सबसे आगे था। वह अपने छोटे भाई सुरेंद्र सिंह जीना के चुनावों में उनका मैनेजमेंट संभालते रहे हैं। सुरेंद्र जीना के 2005 के भिकियासैंण विधानसभा का चुनाव हो या 2012 और 2017 का सल्ट विधानसभा चुनाव हो, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। अपने भाई की असामयिक मृत्यु के बाद उन्होंने सल्ट विधानसभा उपचुनाव के लिए खुद को प्रत्याशी बनाने की मांग पार्टी से की थी।. हालांकि, हाईकमान की ओर से उनके नाम पर अंतिम मुहर भी लग गयी। महेश जीना कहते हैं कि मेरा लक्ष्य अपने भाई के अधूरे कामों को पूरा करना है। सल्ट क्षेत्र की जनता की सेवा करने के लिए राजनीति में आ रहा हूं। बीजेपी को भी लग रहा है कि स्वर्गीय जीना की बेदाग और जनता के बीच अच्छी छवि का फायदा उनके भाई को सहानुभूति वोट के रूप में मिल सकता है।

सल्ट विधानसभा में अभी तक दो बार कांग्रेस के रणजीत रावत और दो बार बीजेपी के सुरेंद्र जीना विजयी हुए। इस सीट पर कांग्रेस की हार का सिलसिला 2012 के परिसीमन के बाद शुरू हुआ, जब भिकियासैंण सीट का विलय सल्ट सीट में हो गया। सल्ट का कुछ क्षेत्र रानीखेत विधानसभा में मिला दिया गया। हालांकि 2017 की मोदी लहर के बीच भी कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचैली बहुत कम अंतर से यह चुनाव हारी थीं। इस बार का यह उपचुनाव बीजेपी के नए बने प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ ही नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए भी अग्नि परीक्षा का है। यदि इस उपचुनाव में कांग्रेस जीत हासिल करती है तो 2022 में उनके लिए संजीवनी का काम करेगा। बीजेपी की मुश्किल भी थोड़ा सा बढ़ गई है। चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री तीरथ कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। फटी जींस वाला विवाद भी अभी पूरी तरह शांत नहीं हो पाया है।

यह उपचुनाव कांग्रेस के लिए भी महत्वपूर्ण है। हालांकि कांग्रेस काफी समय तक कोई उम्मीदवार घोषित नहीं कर पाई थी। कद्दावर नेता हरीश रावत जहां गंगा पंचैली को प्रत्याशी देखना चाह रहे थे, वहीं सल्ट के पूर्व विधायक रणजीत रावत इस सीट पर अपने बेटे विक्रम रावत को चुनाव लड़ाना चाह रहे थे। कभी बहुत घनिष्ठ रहे पूर्व सीएम हरीश रावत और रणजीत रावत के बीच अब गहरी खाई हो चली है। ऐसे में इस सीट को लेकर कांग्रेस फिर गुटबाजी का शिकार हो सकती है और इसका नुकसान गंगा पंचैली को उठाना पड सकता है। (हिफी)

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