ऋषिकेश के लक्ष्मणझूला पुल की मियाद पूरी, आवाजाही पर रोक

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ऋषिकेश। पीडब्ल्यूडी की सर्वे रिपोर्ट में 90 साल पुराने लक्ष्मणझूला पुल की मियाद खत्म होने के खुलासे के बाद अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने लक्ष्मणझूला पुल पर आवाजाही पर रोक लगाने के निर्देश तत्काल जारी कर दिए हैं। हालांकि पीडब्ल्यूडी ने अपने सर्वे में आवाजाही के लिहाज से रामझूला पुल को सुरक्षित पाया है और इस पर आवाजाही हो सकती है, लेकिन कांवड़ यात्रा के मद्देनजर ऐहतियातन पुल पर आवाजाही पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।

89 साल पहले के डिजाइन और क्षमता के हिसाब से पुल आज इस स्थिति में नहीं है कि इस पर अब बड़ी संख्या में लोग आवाजाही कर सकें

रिपोर्ट के मुताबिक 89 साल पहले के डिजाइन और क्षमता के हिसाब से पुल आज इस स्थिति में नहीं है कि इस पर अब बड़ी संख्या में लोग आवाजाही कर सकें। पुराने समय में झूला पुलों का निर्माण करते हुए पुल की क्षमता का ध्यान नहीं रखा जाता था, जबकि वर्तमान में 500 किलोग्राम प्रति स्क्वायर मीटर की क्षमता के झूला पुल बनाए जाते हैं। बताया जा रहा है कि पुल का टावर एक ओर झुक हुआ प्रतीत हो रहा है। सुरक्षा की दृष्टि के चलते यह निर्णय लिया गया है।

वर्ष 1930 में निर्मित लक्ष्मण झूला पुल अपनी उम्र पूरी कर चुका है

लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने जानकारी दी कि इस वर्ष 20 जनवरी को डिजाइन टेक स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट्स द्वारा विस्तृत तकनीकी के माध्यम से इस पुल का अध्ययन किया गया था। जिसमें पता चला कि वर्ष 1930 में निर्मित यह पुल अपनी उम्र पूरी कर चुका है। डिजाइन टैक स्ट्रक्चरल कन्सलटैंट की आबजर्वेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुल के अधिकांश पुर्जे और अन्य सामान खराब हो गए हैं और ढहने की स्थिति में हैं। इस पुल को अब से पैदल यात्रियों के आवागमन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

लक्ष्मण झूला पुल को आवागमन के लिए बंद कर दिया गया है

डिजाइन टेक स्ट्रक्चर कंसलटेंट की ऑब्जर्वेशन की इस रिपोर्ट के बाद अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा इसके फलस्वरूप जनहानि एवं दुर्घटना न हो इस बात को दृष्टिगत रखते हुए लक्ष्मण झूला सेतु को आवागमन के लिए बंद कर दिया गया है।

एक किवदंती के अनुसार भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था

एक किवदंती के अनुसार भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था। स्वामी विशुदानंद की प्रेरणा से कलकत्ता के सेठ सूरजमल झुहानूबला ने यह पुल सन् 1889 में लोहे के मजबूत तारों से बनवाया, इससे पूर्व जूट की रस्सियों का ही पुल था और रस्सों के इस पुल पर लोगों को छींके में बिठाकर खींचा जाता था। वर्ष 1924 की बाढ़ में लोहे के तारों से बना यह पुल बह गया था, इसके बाद मजबूत एवं आकर्षक पुल बनाया गया था। इस पुल के पश्चिमी किनारे पर भगवान लक्ष्मण का मंदिर है और इसके दूसरी ओर श्रीराम का मंदिर है। कहा जाता है कि श्रीराम स्वयं इस सुंदर स्थल पर पधारे थे। पुल को पार कर बाईं ओर पैदल रास्ता बदरीनाथ को तथा दायीं ओर स्वर्गाश्रम को जाता है। केदारखंड में इस पुल के नीचे इंद्रकुंड का विवरण है, जो अब प्रत्यक्ष नहीं है।

एक किवदंती के अनुसार भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था

वर्ष 1930 में निर्मित हुआ यह पुल वर्तमान में तत्समय के सापेक्ष अप्रत्याशित यातायात वृद्धि के कारण काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। पुल के टावर एक ओर झुके हुए प्रतीत हो रहे हैं। यातायात घनत्व और अधिक होने के कारण भविष्य में पुल के क्षतिग्रस्त होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप जनहानि की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि हाल ही में कांवड यात्रा भी आरम्भ होने वाली है। इस दौरान काफी मात्रा में श्रद्धालु हरिद्वार-ऋषिकेश से गंगाजल लाकर अपने आराध्य भगवान आशुतोष को गंगाजल से अभिषेक करते हैं। इस दौरान ऋषिकेश के राम झूला और लक्ष्मण झूला पर आवाजाही बढ़ जाती है।

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