जेलों में बंदियों की सुरक्षा करना कारागार अधिकारियों का कानूनी, नैतिक और मानवीय दायित्व है : आनन्द कुमार

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लखनऊ उत्तर प्रदेश कारागार मुख्यालय के सभागार में टाइम्स सेन्टर फाॅर लर्निंग लिमिटेड के सहयोग से प्रदेश के जेल अधीक्षक, जेलर, डिप्टी जेलर, हेड वार्डर और वार्डर संवर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों हेतु दो दिवसीय प्रशिक्षण सत्र ''बंदियों का मानसिक स्वास्थ्य परिवर्धन एवं आत्महत्या रोकथाम'' विषय पर आयोजित किया गया।






पश्चाताप का भाव पैदा होता है तथा आत्मग्लानि के कारण वे अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं


प्रशिक्षण सत्र के उद्घाटन अवसर पर कारागार के अधिकारियों, कर्मचारियों को संबोधित करते हुए पुलिस महानिदेशक कारागार आनन्द कुमार ने कहा कि- ''जेलों में बंदियों की हर प्रकार से सुरक्षा करना कारागार अधिकारियों का कानूनी, नैतिक और मानवीय दायित्व है, बंदियों को सुरक्षा प्रदान करना हर हाल में हमारी जिम्मेदारी है। आवेश में आकर जघन्य अपराध कर जाने वाले व्यक्ति जब जेल में निरूद्ध होते हैं, तो उनमें पश्चाताप का भाव पैदा होता है तथा आत्मग्लानि के कारण वे अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं, इसके अतिरिक्त अनेक अन्य कारण भी हैं, जिनके चलते बंदियों में आत्महत्या का विचार पनपता है। यद्यपि जेलों का प्रशासन इस प्रकार का है कि बंदीगण आसानी से आत्महत्या नही कर सकते तथापि कई बार बंदी आत्महत्या करने में सफल रहते हैं। बंदियों से निरन्तर संवाद करने, बंदियों की मनः स्थिति समझने, कारागार में नैतिक, अध्यात्मिक, सृजनात्मक, मनोरंजक तथा खेलकूद की गतिविधियों को संचालित करने से जेलों में आत्महत्याओं की घटनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही इस प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया गया है। इस आयोजन में जिन प्रशिक्षकों को बुलाया गया है, वे आत्महत्या जैसे गूढ़ विषय के विशेषज्ञ हैं, अतः मुझे पूरी उम्मीद है कि प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले जेल अधिकारी/कर्मचारीगण इससे अवश्य लाभान्वित होंगे तथा जेलों में बंदियों की मानसिक स्थिति में सुधार होगा।






पुलिस महानिदेशक कारागार आनन्द कुमार ने जेल अधिकारियों/कर्मचारियों की सराहना भी की


आनन्द कुमार ने जेल अधिकारियों/कर्मचारियों की इस बात के लिए सराहना भी की कि अनेक अवसरों पर सतर्कता तथा सकारात्मक प्रयासों से उन्होंने अवसाद से ग्रस्त बंदियों द्वारा आत्महत्या करने की कोशिश नाकाम करके उनकी प्राणरक्षा की है।





जेलों की परिस्थितियों, परिवार से प्राप्त सूचनाएं और एकाकीपन से भी बंदी आत्महत्या जैसा घातक निर्णय


इस अवसर पर अमरीका से आयीं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोचिकित्सक डा स्वाति बाजपेई ने अधिकारियों को सलाह दी कि ''जेलों में बंदियों के आने के समय ही उनकी मानसिक दशा से इस बात का अंतिम आकलन न करें कि वे कभी आत्महत्या करेंगे ही नहीं, कभी-कभी जेलों की परिस्थितियों, परिवार से प्राप्त सूचनाएं और एकाकीपन से भी बंदी आत्महत्या जैसा घातक निर्णय ले लेते हैं। कई मामलों में अधिक आयु, गंभीर रोगों और खराब मानसिक स्वास्थ्य इसका कारण होता है। '







रचनात्मक गतिविधियाँ संचालित की जायें

एमिटी विश्वविद्यालय के इंस्टीटयूट ऑफ बिहैवरल एण्ड एलाइड साइंसेज की प्रोफेसर डाॅ प्रज्ञा डंगवाल ने प्रशिक्षण के लंच बाद के सत्र में ग्रुप डाइनेमिक्स के अन्र्तगत अधिकारियों को कई समूहों में बांटकर खानेवाले सूखे चाइनीज नूडल्स और चिपकाने वाले टेप के प्रयोग से मीनारें बनाने की गतिविधि कराई। डा0 डंगवाल ने कहा कि जल्दी टूटने वाले नूडल्स जेलों में आने वाले बंदियों की तरह हैं और उन्हें चिपकाने के लिए इस्तेमाल टेप, एक तरह से जेल अधिकारियों के प्रयासों का प्रतीक है, जिनकी वजह से भंगुर नूडल्स से भी ऊँची मीनारें बन सकीं। इसी तरह यदि जेलों में भी लोगों को आपस में जोड़कर रचनात्मक गतिविधियाँ संचालित की जायें, तो बंदी आत्महत्या जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहेंगे।





टाइम्स सेन्टर फाॅर लर्निंग लिमिटेड के सलाहकार डाॅ अशोक कुमार शर्मा ने अवसाद, तनाव, कुंठा, घुटन, दुख, ग्लानि, भय और भावुकता के कारण उत्पन्न अनेक मानसिक रोगों के बारे बताते हुए कार्यशाला में आमंत्रित अतिथि प्रवक्ताओं का परिचय दिया।





इस अवसर पर अपर महानिरीक्षक मुख्यालय डा शरद तथा अपर महानिरीक्षक प्रशिक्षण एवं विकास वीके जैन, पुलिस उप महानिरीक्षक कारगार श्रीपर्णा गांगुली तथा लव कुमार, वरिष्ठ अधीक्षक मुख्यालय वीके सिंह, वित्त नियंत्रक मुख्यालय श्री अशोक कुमार तथा मुख्यालय के जनसंपर्क अधिकारी संतोष कुमार वर्मा के साथ ही मुख्यालय एवं डा सम्पूर्णानन्द कारागार प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ के अधिकारी एवं कर्मचारी भी मौजूद थे।


आज बंदियों का मानसिक स्वास्थ्य परिवर्धन एवं आत्महत्या रोकथाम'' विषय पर दो दिवसीय प्रशिक्षण सत्र कार्यक्रम का द्वितीय एवं अन्तिम दिन है।

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