जयंती विशेष : स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ा नया अध्याय, हिला दी ब्रिटिश हुकूमत की नींव

जयंती विशेष : स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ा नया अध्याय, हिला दी ब्रिटिश हुकूमत की नींव

लखनऊ भारत माता के वीर सपूत और महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के मोहल्ला खिरनीबाग में हुआ था। इनके पूर्वज मूल रूप से ग्वालियर के चंबल नदी किनारे तोमरघार गांव के निवासी थे। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी भाषा का उन्हें अच्छा ज्ञान था। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में नया अध्याय जोड़ा। गुलामी की बेड़ियां तोड़ी और आजादी से मोहब्बत की। ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। पं. रामप्रसाद बिस्मिल नवयुवकों का नेतृत्व करने वाले कई प्रतिभाओं के धनी थे। बिस्मिल के क्रांतिकारी विचारों ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक अलग ही दिशा दी थी। पं. रामप्रसाद बिस्मिल राष्ट्रप्रेम की कविताओं के साथ-साथ शायरी भी करते थे।

पं.राम प्रसाद किशोरावस्था में आर्यसमाज के संपर्क में आए। रामप्रसाद बिस्मिल का एकमात्र उद्देश्य पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करना था। उन्होंने गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया लेकिन चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी के आंदोलन वापस लेने से बहुत निराश हुए। रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने साल 1922 के गया अधिवेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। कांग्रेस में उग्रवादी और उदारवादी विचारधारा अलग-अलग हो गई।

पं. रामप्रसाद बिस्मिल ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) पार्टी की स्थापना करके मुख्यालय बनारस में बनाया। बिस्मिल का कार्य अपने दल के लिए हथियार खरीदने का था। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, सचिंद्र बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुरारी लाल गुप्ता,बनवारी लाल और मुकुन्दी लाल गुप्ता आदि ने मिलकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया था। संगठन के लिए पैसों का बंदोबस्त करना जिसका मूल उद्देश्य था।

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के 40 क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया, जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां,राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशन सिंह को मौत की सजा सुनाई गई। मुकदमे में 16 अन्य क्रांतिकारियों को कम से कम 4 वर्ष की सजा से लेकर कालापानी की सजा तक सुनाई गई। गोरखपुर की जेल में 19 दिसम्बर 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी दे दी गई।मात्र 30 साल की आयु में उन्होंने अपने प्राणों को न्यौछावर करके भारत को आजाद करवाने का गजब का जज्बा कायम किया। भारत की आजादी के द्वार इन बेमिसाल देशभक्तों की शहादत देकर खुले। संपूर्ण भारत अपने इन वीरों को शत-शत नमन करता है।

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