किसान क्रांति यात्रा में पैगाम ए इंसानियत के मंच पर लगा हर हर महादेव, अल्लाह हू अकबर का नारा

किसान क्रांति यात्रा में पैगाम ए इंसानियत के मंच पर लगा हर हर महादेव, अल्लाह हू अकबर का नारा
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मुजफ्फरनगर। हरिद्वार से शुरू हुई भारतीय किसान यूनियन की किसान क्रांति यात्रा अपने सफर के चौथे दिन मुजफ्फरनगर जनपद में पहुंची तो चारों और किसानों का सैलाब नजर आया। इस यात्रा के साथ जनपद में करीब पांच साल पहले दंगों के कारण सामाजिक स्तर पर पड़ी खाई भी पटती नजर आयी। जाति, धर्म और सियासत के सभी बंधनों को तोड़कर किसान क्रांति यात्रा ने साम्प्रदायिक सौहार्द्र पैदा करने का काम भी किया। ये यात्रा जब भाकियू के गृह जनपद में पहुंची तो अलग ही नजारा बन रहा था। यात्रा ने शहर के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मीनाक्षी चैक पर प्रवेश किया तो यहां मुस्लिमों ने दिल खोलकर इन किसानों का स्वागत किया। सामाजिक संस्था पैगाम-ए-इंसानियत के द्वारा फूलों की बारिश के साथ किसानों का इस्तकबाल करते हुए उनका 'मुहब्बतनगर' से परिचय कराया। यहां पर हिन्दु और मुस्लिम ने मिलकर भाकियू की परम्परा में शामिल हुक्का गुडगुड़ाया और समाज को भाईचारे का संदेश दिया।


भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. नरेश टिकैत के नेतृत्व में हरिद्वार से 23 सितम्बर को दिल्ली के लिए चली भाकियू की किसान क्रांति यात्रा बुधवार को मुजफ्फरनगर पहुंची। यहां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मीनाक्षी चैक पर जब भाकियू अध्यक्ष चौ.नरेश टिकैत व महासचिव चौ.राकेश टिकैत किसान क्रांति यात्रा में हजारों किसानों का सैलाब लेकर पहुंचे तो सामाजिक संस्थान पैगाम-ए-इंसानियत के अध्यक्ष आसिफ राही के नेतृत्व में सैंकड़ों मुस्लिमों ने यात्रा में पहुंचे किसानों व भाकियू नेताओं का फूलों की बारिश कर स्वागत किया। संस्था के द्वारा मीनाक्षी चैक पर बनाये गये मंच पर यात्रा को अल्प विराम दिया गया। यहां चौ. राकेश टिकैत ने कहा कि मुजफ्फरनगर का इतिहास मुहब्बत और भाईचारे का रहा है, यहां यात्रा के जगह जगह हो रहे स्वागत ने ये साबित कर दिया है। समाज में आज भी आपसी प्रेमभाव कायम है, इसे हमें मजबूत बनाना होगा। उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द की आजवा बुलन्द की तो पैमाग-ए-इंसानियत के इस मंच पर हर हर महादेव-अल्लाह हू अकबर का नारा गुंज उठा। इन नारों के बीच ही जब चौ. राकेश टिकैत ने हुक्के में कस खींचे, तो हिन्दू-मुस्लिम सभी मिलकर हुक्के की गुडगुड़ाहट के बीच आपसी भाईचारा का धुआं फिजा में उड़ाते हुए नजर आये। बता दें कि साल 2013 में जनपद में कवाल कांड के बाद साम्प्रदायिक दंगों के कारण जनपद के भाईचारे को नजर लग गयी थी। इसका सबसे बड़ा खामियाजा भारतीय किसान यूनियन को भी भुगतना पड़ा था। क्योंकि साल 2013 के दंगों की शुरूआत जाट और मुस्लिमों के बीच हुए विवाद से होने के कारण इस किसान संगठन से मुस्लिमों ने कुछ दूरी बना ली थी, लेकिन पैगाम-ए-इंसानियत के मंच पर किसान यात्रा के ठहराव ने इस खाई को पाटने का काम किया और हिन्दु मुस्लिम सभी ने मिलकर अपने अधिकारों के लिए दिल्ली कूच पर निकले किसानों के लिए दिल खोलकर रख दिया। पैगाम-ए-इंसानियत के मंच पर जब मुस्लिमों ने हर हर महादेव और हिन्दुओं ने अल्लाह हू अकबर का नारा बुलन्द किया तो फिजां में आपसी प्यार की मिठास घुली और साम्प्रदायिक सौहार्द्र का नजारा देखने को मिला। ये किसान क्रांति यात्रा सामाजिक सद्भाव को मजबूती देने वाली भी साबित हो रही है। इस यात्रा में शामिल किसान जब नगर के हृदय स्थल शिव चैक पर भोले बाबा के दरबार में पहुंचे तो उन पर पुष्प बरसाये गये, मुस्लिम क्षेत्र के रूयप में प्रसिद्ध मीनाक्षी पर पहुंचे तो उनके स्वागत में मुस्लिमों ने हलवा और शरबत बांटा।

इस अवसर पर पैगाम-ए-इंसानियत के अध्यक्ष आसिफ राही, डा. राशिद खान, शाहिद पप्पी, अमीर आजम कल्लू, डा. साजिद अल्वी, गौहर सिद्दीकी, हाजी नईम कस्सार, दिलशाद पहलवान, इकरार फारूकी, इरशाद अली सम्राट, इंतजार, अरशद, सभासद नौशाद कुरैशी, इरशाद झाड़ूवाला, शहजाद कुरैशी, आलम बझेडी, मौलाना मूसा कासमी, रफी अहमद, नौशाद अंसारी, फुरकान अंसारी गांधी मार्ट, फैजान अंसारी, हाजी इकराम कस्सार, वसी खैरी, अजीम खान, दिलशाद अंसारी, वसीम अहमद आदि मौजूद रहे।

हाईवे पर किसान क्रांति यात्रा का कब्जा, गूंज रहे किसानों के तराने


मुजफ्फरनगर। भारतीय किसान यूनियन आज दो बड़े झटकों से उबर फिर से देश के किसानों का सबसे बड़ा संगठन बनकर उबर रही है। किसानों के संघर्ष, आंदोलन और खून से सींचे गये इस संगठन के लिए हरिद्वार से शुरू हुई किसान क्रांति यात्रा 'संजीवनी' मानी जा रही है। इस एक यात्रा ने भाकियू को पुनःजीवित करने के साथ ही सर्वप्रिय, सर्व मान्य किसान संगठन के रूप में खड़ा करने का काम करके दिखाया है।

स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सी-2 का फार्मूला लागू करने के साथ ही अन्य मांगों को लेकर भाकियू का रणसिंघा किसान क्रांति यात्रा में लगातार बजता जा रहा है। इस रणसिंघे की गूंज ने इतिहास में बड़ी बड़ी सरकारों को किसानों के दर पर झुकाने का काम करके दिखाया है, लेकिन भाकियू के संस्थापक अध्यक्ष चौ.महेन्द्र सिंह टिकैत के स्वर्गवास के बाद से भाकियू हाशिये पर जाती रही। बाबा टिकैत के बाद चौ.नरेश टिकैत और चौ.राकेश टिकैत की भाकियू वो जौहर दिखाने में नाकाम रही, जिसके बलबूते ये किसान संगठन देश भर में पहचान बना चुका था, ऐसा नहीं है कि दोनों नेताओं के द्वारा किसानों के लिए आंदोलन से मुंह फेर लिया गया हो, लेकिन भाकियू कोई भी बड़ा आंदोलन करने में सफल नहीं हो पा रही थी। हरिद्वार में अधिवेशन भी किये और राज्य स्तरीय एवं देशव्यापी आंदोलन का बिगुल भी फुंका गया, लेकिन भाकियू की शक्ति क्षीण ही नजर आयी। हालांकि संगठन शासन और सरकार में अपना प्रभाव बरकरार रखे हुए था, इसी बीच साल 2013 के दंगों ने भाकियू की शक्ति को ओर कम करने का काम किया। अभी तक किसान बिरादरी के रूप में सर्व समाज के किसान और लोगों के जुड़ने से जो ताकत भाकियू को मिल रही थी, वो ही भाकियू जातिगत और धार्मिक आधार पर बंटने लगी, लेकिन इसके बाद संघर्ष से न तो चौ.नरेश टिकैत पीछे हटे और ना ही चौ.राकेश टिकैत की सहनशीलता ने जवाब दिया, दोनों भाईयों ने अपने पिता की खांटी किसान राजनीति को देखा, तो उन्होंने उसको ईमानदारी से आगे बढ़ाना जारी रखा और आज किसान क्रांति यात्रा में हिन्दु मुस्लिम के साथ ही सर्व समाज के लोगों का सैलाब इन दोनों भाईयों के संघर्ष के सुफल के रूप में सामने हैं। इस यात्रा के हर कदम भाकियू की शक्ति में इजाफा होता जा रहा है। हरिद्वार से निकली किसान यात्रा के दौरान हाईवे पर कांवड मेले जैसा नजारा देखने को मिल रहा है। हाईवे के एक ओर किसानों का सैलाब है तो दूसरी ओर की सड़क को आवागमन के लिए खुला छोड़ा गया है। किसानों का सैलाब उमड़ने के बावजूद भी इस यात्रा ने अनुशासन का भी रिकार्ड कायम किया है। मुजफ्फरनगर जनपद में अपने दूसरे पड़ाव पर यात्रा गुड़ मण्डी में विश्राम के लिए ठहरी। 27 सितम्बर को भाकियू जिलाध्यक्ष राजू अहलावत के गांव भैंसी में इस यात्रा का जिले का तीसरा पड़ाव होगा। दिल्ली तक पहुंचते पहुंचते इस यात्रा में एक लाख किसानों के जुड़ने का अनुमान है। किसानों की इस यात्रा में राष्ट्रवाद किसानों के हाथों में भाकियू के झण्डे के साथ ही लहराता तिरंगे के रूप में नजर आ रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाकियू को इस किसान यात्रा ने संजीवनी देने का काम किया है।

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