20 दिसम्बर-मुजफ्फरनगर में हिंसा के मामले में जिला जज की अदालत से पहली जमानत

20 दिसम्बर-मुजफ्फरनगर में हिंसा के मामले में जिला जज की अदालत से पहली जमानत
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मुजफ्फरनगर नागरिकता संशोधन कानून लागू किये जाने के विरोध में जिला मुख्यालय पर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई व्यापक हिंसा के बाद पुलिस कार्रवाई में गिरफ्तार कर जेल भेजे गये आरोपियों के लिए 23 दिन बाद सोमवार को राहत भरी खबर आयी है। 20 दिसम्बर को हुई हिंसा के मामले में आरोपी को जमानत मिली है। जिला जज की अदालत से इस हिंसा प्रकरण में किसी आरोपी की यह पहली सशर्त जमानत है।

बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 20 दिसम्बर को जुमे की नमाज के बाद शहर में विभिन्न स्थानों पर केन्द्र सरकार के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करने के लिए भीड़ एकत्र हुई थी। प्रदर्शन के दौरान ही पथराव के बाद हिंसा हो गयी। इसमें काफी सम्पत्ति को क्षति पहुंची और पुलिस कर्मी व पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारियों को जहां चोट आयी थी, वही किदवनईनगर निवासी युवक नूर मौहम्मद गोली लगने से मारा गया। इस प्रकरण में शहर कोतवाली और थाना सिविल लाइन पुलिस ने सीसीटीवी व वीडियो फुटेज के आधार पर उपद्रवियों को चिन्हित किया, जो अभी भी जारी है। दोनों थानों में 40 से अधिक मुकदमे दर्ज किये गये और 80 से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। इन आरोपियों की जमानत को लेकर सुनवाई चल रही है। सोमवार को जिला एवं सत्र न्यायालय में 20 दिसम्बर की हिंसा प्रकरण में एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ एवं हिंसा के मामले में गिरफ्तार आरोपी सालेहदीन पुत्र फारूख की जमानत अर्जी जिला जज संजय कुमार पचैरी द्वारा स्वीकार कर ली गयी। जिला जज संजय कुमार पचैरी ने जमानत अर्जी पर सुनवाई के बाद आदेश दिया कि एक-एक लाख के दो जमानती दाखिल करने पर आरोपी को रिहा किया जाए। इस हिंसा प्रकरण में यह पहली जमानत अर्जी है, जो संगीन धाराओं के आरोपी सालेहदीन के लिए अदालत से मंजूर हुई है। इससे पहले अभियोजन की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता दुष्यंत त्यागी व आरोपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वकार अहमद ने पैरवी की।

सालेहदीन के परिजनों का कहना है कि 20 दिसम्बर की हिंसा में वह शामिल नहीं था। उस दिन वह दिल्ली से घर आ रहा था कि रास्ते में ही पुलिस ने उसको पकड़ लिया और हिंसा के आरोप में मुकदमा में आरोपी बनाकर उसको जेल भेज दिया गया। उसके पिता फारूख भी सरकारी कर्मचारी हैं, उनको भी पुलिस ने हिंसा में आरोपी बना दिया था, जबकि उस दिन वह अपने कार्यालय में ही मौजूद रहकर सरकारी कामकाज निपटा रहे थे। विभागाध्यक्ष ने जब इस मामले में डीएम को लिखित अर्जी दी तो जांच के बाद फारूख का राहत मिली थी, उनको अपने पुत्र की जमानत करानी पड़ी।

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