विवेचना में लापरवाही पर कलेक्टर राजीव शर्मा का चला चाबुक, पैरा 500 के तहत कार्यवाही

विवेचना में लापरवाही पर कलेक्टर राजीव शर्मा का चला चाबुक, पैरा 500 के तहत कार्यवाही
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मुजफ्फरनगर। प्रशासनिक दायित्वों को निभाने के साथ साथ एक कलेक्टर किस प्रकार से कानून व्यवस्था को मजबूती देने के साथ ही पुलिसिंग को गुड पुलिसिंग में बदल सकता है, ये जनपद में तैनात आईएएस राजीव शर्मा ने अपनी कार्यप्रणाली से साबित करके दिखाया है। उनके द्वारा जन कल्याण के लिए जहां शासन की योजनाओं को धरातल पर उतारने के साथ उनको ऐतिहासिक उपलब्धि तक पहुंचाया, जिलाधिकारी के रूप में एक अभिभावक की भांति जिले के लोगों के लिए अनेक योजनाओं का कार्यान्वयन किया, कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपराधियों को सजा दिलाने में तत्पर रहे तो वहीं एक दण्डाधिकारी के रूप में अपराधियों के पुलिस की कमजोर पैरवी के कारण बचने के मामलों को गंभीरता से लेकर ऐसे लापरवाह विवेचकों के खिलाफ कार्यवाही करने का कदम भी उठाया। इसके लिए जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने पुलिस रेगुलेशन में पैरा 500 के अन्तर्गत दी गयी व्यवस्था के अनुसार कुछ लापरवाह विवेचकों के खिलाफ कार्यवाही की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया। जनपद में किसी जिलाधिकारी के द्वारा पहली बार पैरा 500 के अन्तर्गत विवेचकों के विरुद्ध ही कार्यवाही का कदम उठाया गया है। इनमें हम कुछ खास मामलों को संकलित कर यहां पर लाये हैं, इनमें दो मामले तो पुलिस पर ही हमले के हैं, जिनमें विवेचकों के द्वारा विवेचना में की गयी लापरवाही के कारण मुल्जिमों के खिलाफ केस मजबूत नहीं बन पाया और पुलिस के जांच अधिकारी पुलिस पर ही हुए हमलों में मुल्जिमों को सजा दिलाने में नाकाम रही। इन मामलों मे विवेचना की कमजोरी के लिए अदालतों ने भी पुलिस के प्रति टिप्पणी की। ऐसे मामलों में जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने गंभीरता दिखाते हुए इन विवेचकों के खिलाफ जांच शुरू कराने का काम किया है।

जिलाधिकारी राजीव शर्मा मुजफ्फरनगर जिले में चार्ज संभालने के साथ ही सरकार की मंशा के अनुरूप योजनाओं के कार्यवान्वयन के साथ ही अपराध उन्मूलन में भी जुट गये थे, हालांकि हम प्रायः देखते हैं कि किसी भी जिले में जिलाधिकारी के द्वारा प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए शासन की योजनाओं और परियोजनाओं को ही परवान चढ़ाने का काम किया जाता है। अपराध उन्मूलन के पैमाने पर जिलाधिकारी केवल अभियोजन विभाग की समीक्षा बैठक तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन मुजफ्फरनगर के कलेक्टर राजीव शर्मा की कार्यशैली ब्यूरोक्रेसी की इस परम्परा से बहुत ज्यादा जुदा है। उनके द्वारा अभियोजन विभाग की समीक्षा तो की जाती रही है, लेकिन जिस प्रकार से अपराधियों को सजा दिलाने के लिए उनके द्वारा गंभीरता से अभियोजन पक्ष को मजबूती देने के साथ ही उनसे लगातार समन्वय बनाकर हर प्रकरण की माॅनीटरिंग करने का काम भी किया जाता है। वो हर केस की खुद भी स्टडी करते हैं और उनका पूरा जोर इस पर है कि कोई भी अपराधी सजा पाने से छूट ना जाये। उनकी इस मेहनत का असर भी नजर आता है। साल 2017 के मुकाबले साल 2018 में अब तक अपराधियों को अभियोजन विभाग सजा दिलाने में ज्यादा सक्षम नजर आया है। इसी कड़ी में डीएम राजीव शर्मा मुल्जिमों को सजा से छूट जाने पर भी गंभीर है। उनके द्वारा कई मामलों में कमजोर और लापरवाह विवेचना के चलते मुल्जिमों को सजा नहीं मिलने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। इनमें से तीन मामलों में जिलाधिकारी ने पुलिस रेगुलेशन के पैरा 500 के अन्तर्गत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर विवेचकों के खिलाफ जांच कराकर कार्यवाही करने को कहा है। जिलाधिकारी राजीव शर्मा इस कार्यवाही को लेकर कहते हैं, ''जिलाधिकारी को दण्डाधिकारी भी कहा जाता है, इस अधिकार के कारण उनको किसी भी दोषी को दण्ड देने का अधिकार है। पुलिस रेगुलेशन के पैरा 500 में व्यवस्था दी गयी है कि जब कोई न्यायालय किसी पुलिस अधिकारी के आचरण की निन्दा करें, उन बिन्दुओं पर जिनकी न्यायालय ने निन्दा के योग्य ठहराया हो, अपील के यदि कोई हो, परिणाम की प्रतीक्षा किए बिना तत्काल जांच की जानी चाहिए। इसमें व्यवस्था दी गयी है, कि यदि वह अधिकारी जिसके आचरण की निन्दा की गयी है, पुलिस अधीक्षक से भिन्न पंक्ति का हो तो जिले का पुलिस अधीक्षक या तो स्वयं या किसी राजपत्रित अधिकारी के माध्यम से जांच संचारित करेगा। उसकी समाप्ति पर, वह जिला मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट अग्रेषित करेगा। इसी व्यवस्था में दिये गये अधिकार का प्रयोग करते हुए जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने अदालत से कमजोर केस के चलते दोषमुक्त हुए मुल्जिमों के मामलों में विवेचनाधिकारियों को प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए जांच प्रारम्भ करायी है। इनमें तीन केस काफी प्रमुख हैं।

केस नम्बर-1

जनपद मुजफ्फरनगर के थाना बुढ़ाना में दर्ज मुकदमा अपराध संख्या 46/2015 सरकार बनाम इब्राहिम आदि आईपीसी की धारा 307, 353 और 332 के अन्तर्गत एफआईआर दर्ज की गयी। मुकदमे का वादी बुढ़ाना थाना की गढ़ी सखावत पुलिस चैकी में चीता मोबाइल 44 पर तैनात सिपाही मोन्टू त्यागी बना। वादी के अनुसार वो अपनी साथी सिपाही मोहित दीक्षित के साथ बुढ़ाना मेरठ रोड पर गश्त पर था। इसी बीच एक ट्रक संख्या यूपी15एटी 4674 तेज गति से वहां से गुजरा, ट्रक का पीछा कर पुलिसकर्मियों ने कुछ दूरी पर उसको रुकवा लिया। ट्रक से चार लोग उतरे, जिनके हाथों में लोहे की राॅड, पेचकस और अन्य हथियार ले रखे थे, इनके द्वारा पुलिसकर्मियों पर हमला बोल दिया गया, जिसमें वो घायल हुए। संघर्ष करते हुए पुलिसकर्मियों ने इनमें से एक इब्राहिम पुत्र रहमत को मौके से पकड़ लिया, जबकि तीन खेतों के रास्ते फरार हो गये। थाना पुलिस ने सिपाही की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर इब्राहिम को जेल भेज दिया। पुलिस पूछताछ में इब्राहिम ने बताया कि उसके साथ उसके साथी मन्शाद और हारून व एक अज्ञात था। इस मुकदमे की विवेचना थाने के उप निरीक्षक वीर सिंह को सौंपी गयी। एसआई वीर सिंह ने 30 जुलाई 2015 को आरोप पत्र दाखिल किया। केस की सुनवाई अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट नम्बर 10 में हुई। 16 मार्च 2018 को न्यायालय से ये केस निस्तारित हुआ और पुलिस पर हमले के इस केस में एक अज्ञात सहित सभी चारों आरोपियों को अदालत ने पुलिस की कमजोर पैरवी और साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया। जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने अदालत का आदेश आने के बाद इसका अवलोकन किया। न्यायाधीश ने अपने दोषमुक्ति आदेश में जो टिप्पणी की, उसमें पुलिस विवेचना में कई बड़ी गलती सामने आयी। इन्हीं खामियों और विवेचना में लापरवाही के चलते पुलिस ही पुलिसकर्मियों पर हमले के आरोपियों को सजा दिलाने में नाकाम रही। अदालत के दोषमुक्ति आदेश में पुलिस विवेचना में जिन लापरवाही या खामी का उल्लेख किया गया है, उनमें एफआईआर में घटनास्थल का कोई भी विवरण दर्ज नहीं किया जाना। विवेचक के द्वारा घटना स्थल का कोई नक्शा नजरी नहीं बनाया गया। अभियुक्तगण मन्शाद और हारून को मुकदमा वादी पहले से जानता नहीं था, उनकी गिरफ्तारी के बाद शिनाख्त नहीं करायी गयी, किस आधार पर वो अभियुक्त बनाये गये, स्पष्ट नहीं किया गया। अभियुक्त इब्राहिम को मौके से गिरफ्तार किया गया, उसके शरीर पर चोट के निशान का उल्लेख जीडी में तो किया गया, लेकिन इसके बाजवूद भी उसका कोई मेडिकल परीक्षण नहीं कराया गया। इन्हीं खामी के कारण अदालत से इब्राहिम व उसके साथी सजा पाने के बजाये बरी हो गये।

जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने इस केस का अवलोकन करने के साथ विधिक राय ली, जिसमें एडीजीसी फौजदारी रितु चैधरी का कहना है, ''विवेचना में घोर लापरवाही की गयी, साक्ष्य का संकलन भी नहीं किया गया, ऐसे मामलों में शासकीय अपील की सफलता की आशा भी नहीं होती है। वहीं अभियोजन अधिकारी गंगाशरण ने अपनी राय में कहा, ''इस मुकदमे में विवेचक के द्वारा स्वतंत्र गवाही न कराना, फरार अभियुक्तों की कार्यवाही शिनाख्त ना कराना, नक्शा नजरी नहीं बनाया जाना ही आरोपियों के दोषमुक्त होने के मुख्य आधार बने विवेचक के द्वारा इस केस की जांच पड़ताल में बरती गयी लापरवाही का संज्ञान लेकर जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने एसएसपी को 15 जून 2018 को पत्र लिखकर पुलिस रेगुलेशन के पैरा 500 के अन्तर्गत दी गयी व्यवस्था के अनुसार विवेचक के विरुद्ध जांच कराकर कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया। डीएम राजीव शर्मा के निर्देशों के तहत एसएसपी ने सीओ फुगाना को जांच सौंपी है। विवेचक से मामले में पूछताछ भी की गयी, जांच की प्रक्रिया अभी तक भी जारी है।

केस नम्बर-2

पैरा 500 के अन्तर्गत विवेचक के खिलाफ कार्यवाही की प्रक्रिया का दूसरा मामला भी पुलिस पर हमले के मुकदमे में अदालत से मुल्जिमों के दोषमुक्त होने में विवेचक की लापरवाही से जुड़ा हुआ है। थाना छपार में आईपीसी की धारा 307 व 34 के अन्तर्गत दर्ज मुकदमा अपराध संख्या 473/2014 सरकार बनाम पचासा आदि पुलिस और बदमाशों के बीच मुठभेड़ से जुड़ा रहा। तत्कालीन थानाध्यक्ष अरूण कुमार त्यागी इस मुकदमे के वादी हैं। उनके द्वारा दर्ज कराई गयी एफआईआर में बताया गया, ''8 नवम्बर 2014 को थाना छपार के एसएसआई संतोष कुमार गौतम थाना जीप में अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ क्षेत्र में रात्रि गश्त पर थे, इसी बीच सूचना मिली कि बरला-देवबन्द रोड पर बदमाशों ने किसी राहगीर से एक लाख 80 हजार रुपये और बन्दूक लूटी ली है, बदमाश लूट की वारदात को अंजाम देने के बाद गांव खुड्डा की ओर भागे। सूचना मिलने के बाद एसएसआई संतोष गौतम ने उनका पीछा किया। खेडा खुशनाम के पास पुलिस की बदमाशों से मुठभेड़ हो गयी और मौके से बदमाश बाबू पुत्र जाहिद निवासी फुलास देवबन्द तथा अब्बू सहमा पुत्र मुरसलीम निवासी गांव तीथकी देवबन्द को गिरफ्तार कर लिया, जबकि इनके साथी पचासा उर्फ फिरोज पुत्र सिकन्दरपुर सकरपुर देवबन्द और दिलबहार उर्फ इन्तजार पुत्र कल्लू राजपुर छपार फरार हो गये। इस घटना की विवेचना थाना छपार के उप निरीक्षक वीरेन्द्र सिंह को दी गयी। एसआई वीरेन्द्र सिंह ने कोर्ट में अपनी चार्जशीट दाखिल की। अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट नं. 3 में केस की सुनवाई चली। 13 फरवरी 2018 को न्यायालय के द्वारा कमजोर विवेचना और पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने पर चारों अपराधियों को बरी करने के साथ ही पुलिस कार्यवाही पर भी टिप्पणी की। अदालत की ओर से अपने दोषमुक्ति आदेश में कहा गया, ''पुलिस पार्टी पर फायरिंग की घटना अभियुक्त के लिए संदेह से परे साबित नहीं हो सकती, पुलिस के द्वारा घटना स्थल से बरामद तमंचा विधि विज्ञान प्रयोगशाला में प्रेषित नहीं किया, जिससे पता चल सके कि वेा चालू है या नहीं। जहां पर स्वतंत्र गवाह न हो विधि विज्ञान की रिपोर्ट भी ना हो तो सन्देह होता है।'' विवेचक एसआई वीरेन्द्र सिंह की विवेचना में यही वो खामी रही, जिस कारण अभियुक्तों को अदालत के द्वारा दोषमुक्त किया गया। यह तब है जबकि पुलिस ने एक लाख 80 हजार रुपये और बन्दूक की लूट की इस वारदात में बदमाशों से लूट का माल बरामद भी दर्शाया था। इसके बावजूद भी पुलिस इन बदमाशों को सजा कराने में कामयाब नहीं हो सकी।

विवेचना में लापरवाही के कारण बदमाशों को सजा नहीं मिल पाने पर डीएम राजीव शर्मा ने कड़ी नाराजगी जाहिर कर एसएसपी को पुलिस रेगुलेशन के पैरा 500 के अन्तर्गत विवेचक के विरुद्ध कार्यवाही के लिये पत्र लिखा। एसएसपी ने इस प्रकरण की जांच सीओ सदर को सौंपी। सीओ सदर के द्वारा विवेचक रहे एसआई वीरेन्द्र सिंह को नोटिस देकर स्पष्टीकरण मांगा। सीओ सदर रिजवान अहमद कहते हैं, ''इस मुकदमे के विवेचक रहे वीरेन्द्र सिंह सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वो मेरठ जनपद के सरधना थाना क्षेत्र के गांव दबथुआ के निवासी हैं। उनके द्वारा दिये ये स्पष्टीकरण में मुख्य तौर पर यह बताया गया कि बदमाशों से बरामद तमंचे से चलाई गयी गोली से कोई घायल नहीं हुआ, इसलिए उसको जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला नहीं भेजा गया था। इस प्रकरण में विवेचना में लापरवाही की जांच अभी प्रक्रियागत है।''

केस नम्बर-3

ये केस अवैध शराब की बिक्री से जुड़ा हुआ है, इसमें वादी ही साक्षी भी है। इसमें भी विवेचना के दौरान कई बातों को नजर अंदाज किया गया और अदालत के द्वारा साक्ष्यों के अभाव, वादी व विवेचक के बयानों में विरोधाभास होने के कारण आरोपी को दोषमुक्त कर दिया। मामला मीरापुर थाना क्षेत्र का है। थाने में तैनात उप निरीक्षक रूपेन्द्र सिंह ने आईपीसी की धारा 273 और आबकारी अधिनियम की धारा 60 के अन्तर्गत तहरीर देकर मुकदमा अपराध संख्या 825/2009 दर्ज कराया था। मुकदमा वादी एसआई रूपेन्द्र सिंह के अनुसार उनको 26 सितम्बर 2009 को सूचना मिली थी कि मीरापुर थाना क्षेत्र के गांव चूडियाला में कोल्ड स्टोरेज के पास एक व्यक्ति अवैध रूप से शराब बेच रहा है। इस पर एसआई रूपेन्द्र सिंह ने उपरोक्त स्थान पर छापा मारा। यहां से पुलिस ने अवैध शराब बेचने के आरोप में आस मौहम्मद पुत्र हसीनुद्दीन गांव कोटला मीरापुर को मय अवैध शराब गिरफ्तार किया। इस मामले में मीरापुर थाने के एसआई जयप्रकाश सिंह निवासी नानुपुर गढमुक्तेश्वर हापुड़ को विवेचक बनाया गया। विवेचना के दौरान कई खामी बरती गयी और कमजोर विवेचना के चलते आरोपी आस मौहम्मद को अदालत से सजा नहीं दिलायी जा सकी। इस प्रकरण के मुकदमे की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट नम्बर 7 के द्वारा की गयी। कमजोर विवेचना के कारण अदालत ने आरोपी को दोषमुक्त करार देकर बरी कर दिया। 12 मार्च 2018 को इस केस के सम्बंध में अदालत द्वारा दिये गये दोषमुक्ति आदेश में पुलिस की विवेचना के प्रति प्रतिकूल टिप्पणी की गयी, ये टिप्पणी विवेचना में की गयी खामियों को प्रदर्शित कर रही है।

इसमें कहा गया, मुकदमा साक्षी ही मुकदमा वादी भी है और इसी ने अपने बयानों में कथन किया था कि बरामद शराब मानव जीवन के लिए खतरनाक नहीं थी और न ही इस साक्षी ने परीक्षण हेतु विधि विज्ञान प्रयोगशाला में आरोपी के पास से बरामद शराब को भेजा।'' इस केस की खामी ये भी रही कि विवेचक के द्वारा पुलिस फरद नहीं बनायी गयी और मुकदमा साक्षी एवं विवेचक के बयानों के विरोधाभासी होने के कारण सन्देह का लाभ अभियुक्त को मिला, विवेचना में लापरवाही के कारण पुलिस अवैध शराब बेचने के आरोपी को सजा दिलाने में सफल नहीं हो सकी। इस सम्बंध में पैनल लाॅयर फौजदारी कय्यूम अली कहते हैं, ''इस केस के वादी उप निरीक्षक रूपेन्द्र कुमार सिंह ने ये बयान दिया था कि आस मौहम्मद से बरामद की गयी अवैध शराब से कोई सैम्पल जांच के लिए नहीं लिया गया था, जबकि विवेचक ने अपने बयान में जांच के लिए सैम्पल भेजने की बात कही है। ये ही विरोधाभास इस केस को कमजोर करने वाला साबित रहा। इसके अलावा सार्वजनिक स्थान पर शराब बेची जा रही थी, इसके बावजूद भी विवेचक कोई स्वतंत्र साक्षी केस की मजबूती के लिए प्रस्तुत नहीं कर पाये। उनका कहना है कि विवेचना में लापरवाही ने इस केस को कमजोर किया और इसमें आगे शासकीय अपील करने से भी कोई लाभ नहीं मिलेगा।''

इस केस में भी जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने पुलिस रेगुलेशन के पैरा 500 के अन्तर्गत अधिकार का प्रयोग कर एसएसपी को जांच और कार्यवाही करने के निर्देश दिये। इस प्रकरण में एसएसपी के आदेश पर सीओ जानसठ के द्वारा जांच की जा रही है। इसमें विवेचक जयप्रकाश का स्पष्टीकरण भी लिया जा चुका है। जयप्रकाश 31 दिसम्बर 2015 को विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

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