राम मंदिर पर प्रियंका की गाइडलाइन

राम मंदिर पर प्रियंका की गाइडलाइन

लखनऊ। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अयोध्या में भव्य मंदिर का भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कर कमलों से सम्पन्न हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि राम के नाम पर ही भाजपा ने राजनीति में सफलता प्राप्त की थी लेकिन कांग्रेस की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसीलिए कांग्रेसजनों के लिए गाइडलाइन तय कर दी है कि वे मंदिर के विरोध में कुछ भी न बोलें। मंदिर ट्रस्ट ने कांग्रेस को आमंत्रित नहीं किया, लेकिन प्रियंका नहीं चाहतीं कि इसे भी विवाद का विषय बनाया जाए लेकिन इस मंदिर में कांग्रेस की क्या भूमिका रही है, इसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास जरूर किया जा रहा है।

अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों सम्पन्न हुआ। इस भूमि पूजन से पहले लगातार राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही थी। इस सभी के बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की ओर से बयान जारी किया गया है। प्रियंका ने ट्वीट कर कहा कि भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने। प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने ट्वीट में लिखा, 'सरलता, साहस, संयम, त्याग, वचनवद्धता, दीनबंधु राम नाम का सार है। राम सबमें हैं, राम सबके साथ हैं। भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने'। इस प्रकार प्रियंका ने कांग्रेसजनों के लिए गाइडलाइन बना दी।

प्रियंका ने लिखा कि 5 अगस्त 2020 को रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम रखा गया है। ये कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता का अवसर बने, जय सिया राम। प्रियंका गांधी वाड्रा की ओर से ये बयान तब आया है जब कांग्रेस की ओर से राम मंदिर को लेकर अलग-अलग तरह के बयान सामने आ रहे थे। एक तरफ मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भूमि पूजन का समर्थन किया, साथ ही स्वागत भी किया। उन्होंने लोगों को भूमि पूजन की बधाई भी दी। इतना ही नहीं कमलनाथ ने अपने ट्विटर पर प्रोफाइल फोटो भी बदल ली है और भगवा वस्त्र में नजर आ रहे थे।

वहीं दूसरी ओर दिग्विजय सिंह की ओर से भूमि पूजन के वक्त पर सवाल खड़े किए गए थे, उन्होंने कहा था कि अभी शुभ मुहूर्त नहीं है ऐसे में इसे कुछ वक्त के लिए टाल देना चाहिए।इतना ही नहीं दिग्विजय सिंह ने शुभ मुहूर्त न होने और भाजपा नेताओं को कोरोना होने के कनेक्शन को जोड़ दिया था जिस पर काफी विवाद हुआ था, इन बयानों के बाद ही भाजपा की ओर से आरोप लगाया जा रहा था कि कांग्रेस एक बार फिर मंदिर निर्माण में अड़ंगा लगा रही है। प्रियंका गांधी ने इन सभी विवादों को किनारे कर कांग्रेस को राम के साथ जोड़ा।

अयोध्या की विरासत जितनी पुरानी है, उतना ही पेंचीदा यहां की जमीन पर उठा विवाद भी रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राममंदिर निर्माण का काम शुरू हो रहा है। बीजेपी राज में आज भले ही राममंदिर बनने का सपना साकार हो रहा हो, लेकिन अयोध्या के विवादित स्थल पर मूर्ति रखने, बाबरी का ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर का शिलान्यास और मस्जिद का विध्वंस तक कांग्रेस के सत्ता में रहते हुआ था।

भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में 1528 में मीर बाकी पर मंदिर गिराकर मस्जिद बनाने का आरोप लगा और बाद में हिंदू-मुस्लिम समुदाय में विवाद का यही कारण बना। 1885 में राममंदिर के निर्माण की मांग उठी और यह मांग करने वाले थे महंत रघुवर दास। सन् 1947 में देश आजाद हुआ और सन् 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। इसी के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और आचार्य नरेंद्र देव समेत सभी विधायकों ने विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया।

कांग्रेस नेता उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने 1948 में हुए उपचुनाव में फैजाबाद से आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ एक बड़े हिंदू संत बाबा राघव दास को उम्मीदवार बनाया। गोविंद वल्लभ पंत ने अपने भाषणों में बार-बार कहा था कि आचार्य नरेंद्र देव भगवान राम को नहीं मानते हैं, वे नास्तिक हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या ऐसे व्यक्ति को कैसे स्वीकार कर पाएगी। इसका नतीजा रहा कि नरेंद्र देव चुनाव हार गए। बाबा राघव दास की जीत से राम मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर फिर से मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी। इसके बाद विवाद बढ़ने लगा तो पुलिस तैनात कर दी गई। तब कांग्रेस का केंद्र से लेकर राज्य तक में राज था। इसी बीच 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित मस्जिद स्थल के अंदर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दीं और यह प्रचार किया कि भगवान राम ने वहां प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस कब्जा प्राप्त कर लिया है।

सन् 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने भगवान राम की पूजा अर्चना के लिए अदालत से विशेष इजाजत मांगी थी। महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदुओं की पूजा जारी रखने के लिए मुकदमा दायर कर दिया। अस्सी के दशक में आस्था और मंदिर के आसपास की राजनीति मुख्य केंद्र में आ गई। कांग्रेस में राजीव गांधी का दौर आ चुका था और वीएचपी राम मंदिर मुद्दे को लेकर माहौल बनाने में जुटी हुई थी। एक फरवरी 1986 को एक स्थानीय अदालत ने विवादित स्थान से मूर्तियां न हटाने और पूजा जारी रखने का आदेश दे दिया। इसके बाद बाबरी मस्जिद का ताला खुला।

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बीजेपी को मात देने के लिए राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दे दी। नारायण दत्त तिवारी उस समय सूबे के मुख्यमंत्री थे। नवंबर 1989 को वीएचपी सहित तमाम साधु-संतों ने राम मंदिर का शिलान्यास किया और 1989 के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत राजीव गांधी ने आयोध्या से की। इसके बाद राम मंदिर के समर्थन में भीड़ जुटाने केलिए बीजेपी ने अपना अभियान शुरू कर दिया। इसी के तहत 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की शुरुआत की थी। इसी यात्रा के दो साल बाद 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी विध्वंस किया और विवादित ढांचे को गिरा दिया। यह वह समय था जब केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी और सूबे में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार। तब से कांग्रेस यूपी में आजतक वापसी नहीं कर सकी है।

कांग्रेस नेता कमलनाथ कह रहे हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने साल 1985 में मंदिर का ताला खोल दिया था। उन्होंने 1989 में ही शिलान्यास की बात कही थी, लेकिन हम इसे राजनीतिक मंच पर नहीं लाए। राजनीतिक मंच पर धार्मिक भावना नहीं लानी चाहिए। कांग्रेस ने मंदिर पर कोर्ट के फैसले का सम्मान किया। सभी भारतवासी मंदिर चाहते हैं। जब मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हो गया, तो बीजेपी इसे क्यों भुनाने में जुटी हुई है?

इस पर संघ विचारक और राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा कहते हैं दोहरापन कांग्रेस के चरित्र का हिस्सा बन गया है। सत्ता को पाने के लिए अपनी विचाराधारा से भी कांग्रेस समझौता करती जा रही है। विवादित स्थल पर शिलान्यास जरूर कांग्रेस के दौर में हुआ था, लेकिन उस वक्त राजीव गांधी का समर्पण मंदिर के प्रति नहीं था बल्कि राजनीतिक अवसरवादिता थी और सत्ता को पाने के लिए उन्होंने कदम उठाया था। कांग्रेस नेता आज इतिहास याद दिला रहे हैं, यह उनकी सत्ता की लालसा को दर्शाता है।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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