जिलाधिकारी राजीव शर्मा के मार्ग निर्देशन में अभियोजन कामयाब, सिंगल मर्डर में दिलाई सबसे बड़ी सजा

जिलाधिकारी राजीव शर्मा के मार्ग निर्देशन में अभियोजन कामयाब, सिंगल मर्डर में दिलाई सबसे बड़ी सजा
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मुजफ्फरनगर। जिलाधिकारी राजीव शर्मा के कार्यकाल में अपराधिक मामलों में सजा का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने नौ माह के अपने कार्यकाल में जनपद के अभियोजन विभाग को सशक्त बनाने का काम किया है। वो एक दण्डाधिकारी के रूप में जहां आपराधिक मुकदमों में लचर विवेचना कर लापरवाही बरतने वाले विवेचना अधिकारियों के खिलाफ पुलिस रेगुलेशन के अन्तर्गत पैरा 500 में दिये गये अधिकारों का प्रयोग कर कार्यवाही प्रक्रिया चलाने में जुटे हैं तो लगातार मुकदमों की पैरवी की माॅनीटरिंग का अभियोजन विभाग को मोटिवेट करने में भी वो सफल नजर आये हैं। करीब दस साल पुराने हरसौली हत्याकांड में आया फैसला उनके प्रयासों की सफलता को बयां करता है, जिसमें सिंगल मर्डर केस में भी अभियोजन विभाग अपराधियों को 'सबसे बड़ी' सजा दिलाने में कामयाब हो पाया है। इस कामयाबी से अभियोजन विभाग में उत्साह का संचार भी हुआ है।

जनपद का हरसौली हत्याकांड अदालत से फैसला आने के बाद सबसे बड़ी सजाओं में शुमार हो गया है। मुजफ्फनगर के न्यायिक इतिहास में सिंगल मर्डर केस में ये सजा नजीर बनी है। इससे पहले फहीमपुर के नृशंस हत्याकांड को ही बड़ी सजा के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन इस सजा से बड़ी यहां पर नहीं रही। जनपद में बसेडा कांड, बरला कांड और बुटराडा कांड भी काफी चर्चाओं में रहा है, लेकिन आठ साल पहले शाहपुर थाने के गांव हरसौली में हुई नसीम की हत्या के मुकदमे में अदालत ने 7 मुलजिमों को फांसी की सजा सुनाई है, इस फैसले ने इसे मुजफ्फरनगर का सबसे चर्चित कांड बनाने का काम किया है। अभियोजन की ओर से पैरवी करने वाले सहायक शासकीय अधिवक्ता कमलकांत ने बताया कि घटना 25 फरवरी 2010 की है।

शाहपुर थाना क्षेत्र के गांव हरसौली में हत्याकांड में सात आरोपियों को न्यायालय से सजा-ए-मौत मिलना ये साबित करता है कि मुजफ्फरनगर जनपद में अभियोजन विभाग अब सक्षम और सशक्त बन रहा है। जिलाधिकारी के पद पर आईएएस राजीव शर्मा अपने नौ माह का कार्यकाल पूर्ण कर चुके हैं। इस दौरान उनके द्वारा कराये गये अधिकांश कार्य एक अभिनव प्रयोग के रूप में ही सामने आये हैं। उन्होंने सबसे ज्यादा जोर आपराधिक मामलों की न्यायिक प्रक्रिया में अभियोजन पक्ष को आरोपियों को सजा दिलाने के लिए सक्षम और सशक्त बनाने के लिए लगाया है। इसका असर भी उनके कार्यकाल में देखने को मिला है। जिलाधिकारी राजीव शर्मा के मार्ग निर्देशन में फरवरी 2018 से सितम्बर 2018 तक अभियोजन विभाग के द्वारा आईपीएस की विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत अदालतों में चल रहे मुकदमों में से 171 केस में दण्डादेश जारी कराने में सफलता पायी है। जबकि अन्य अधिनियम के अन्तर्गत इस अवधि में 1626 सजा हुई। साल 2017 में इसी अवधि में अभियोजन विभाग 104 केस में सजा करा पाया था। इस उपलब्धि के लिए जिलाधिकारी राजीव शर्मा अभियोजन विभाग को लगातार प्रोत्साहित करते हुए विवेचनाओं को मजबूत बनाने के लिए जुटे रहते हैं। पिछले दिनों ही उनके द्वारा जिला जज एस.के. पचौरी, एसएसपी सुधीर कुमार सिंह के साथ मिलकर विवेचनाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से ''क्राइम एण्ड क्रिमीनल एडमिनिस्ट्रेशन'' विषय पर कार्यशाला का आयोजन कराया गया था। ये पहला अवसर था, जबकि जनपद में किसी कलेक्टर के द्वारा ऐसी कार्यशाला के आयोजन का कदम उठाया गया हो। उनके इन्हीं प्रयासों से आपराधिक मुकदमों में अपराधियों के विरुद्ध कुछ बेहतर परिणाम सामने आये हैं। इनमें मासूम लायबा नूर हत्याकांड भी शामिल रहा, जिसमें बच्ची के माता पिता और उनके दोस्त को आजीवन कारावास की सजा हुई। अब ताजा मामला हरसौली हत्याकांड में सामने आये अदालत के फैसला का है। अभियोजन विभाग की ओर से पैरवी करने वाले सहायक शासकीय अधिवक्ता कमलकांत कश्यप बताते हैं, हरसौली कांड से जुड़ी घटना आठ साल पुरानी है। मुजफ्फरनगर जनपद के थाना शाहपुर क्षेत्र के ग्राम हरसौली में 25 फरवरी 2010 को वॉलीबॉल खेलते हुए नसीम व उसके भाई खलील का कुछ युवकों से झगड़ा हो गया था। इसके बाद दूसरे पक्ष के सादिक, शाहिद, अरशद, राशिद, सरफराज, फारुख व मुमताज देसी बंदूक व तमंचे लेकर उनके घर पर चढ़ आए और ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। गोली लगने से नसीम व खलील के अलावा रेयान और शाकिर भी घायल हुए थे। घायल नसीम की अस्पताल में मौत हो गई थी। नसीम की हत्या व अन्य लोगों के घायल होने पर हरसौली निवासी इरफान ने सात हमलावरों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस में दूसरे पक्ष की ओर से भी शौकत ने मृतक नसीम, घायल खलील, शाकिर व रेयान के खिलाफ हत्या के प्रयास की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस ने दोनों मामलों में विवेचना कर आरोप पत्र कोर्ट में प्रेषित कर दिया था। मामला सेशन्स कोर्ट के सुपुर्द होने के बाद अपर सत्र न्यायाधीश-11 राजेश कुमार भारद्वाज के समक्ष सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ। एडीजीसी कमलकांत ने नसीम की हत्या के मामले में अभियुक्तों के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए घायल हुए खलील, शाकिर व रेयान समेत कुल नौ गवाह पेश किए। गवाही और बहस पूरी होने के बाद अभियोजन की ओर से प्रस्तुत किये गये मजबूत साक्ष्यों के आधार पर पीठासीन अपर सत्र न्यायाधीश-11 ने सभी सात अभियुक्तों सरफराज, शाहिद, अरशद, सादिक, राशिद, फारुख और मुमताज को नसीम की हत्या व अन्य धाराओं में दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई है। डीजीसी यशपाल सिंह का कहना है, ''उनको जब ये केस दिया गया तो मामले में बहस चल रही थी, हमने मजबूत पैरवी के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया और पुख्ता साक्ष्यों के साथ गवाही करायी। इस टीम वर्क का नतीजा ये रहा कि अपराधियों को अदालत से सजा ए मौत हुई है। अभियोजन विभाग की समीक्षा के साथ ही जिलाधिकारी राजीव शर्मा जी के द्वारा समय समय पर दिया जा रहा मार्ग दर्शन भी अभियोजन को सशक्त बनाने में सहयोगी बना है।''

मुजफ्फरनगर में चर्चित रहे प्रमुख हत्याकांड

फहीमपुर हत्याकांडः मुजफ्फरनगर जनपद के सिखेड़ा थाना क्षेत्र के गांव फहीमपुर में एक दिसंबर 2000 को यह सामूहिक हत्याकांड हुआ था। इसकी पृष्ठभूमि गांव में तेरहवीं में आये आनंदपाल की हत्या से जुड़ी रही। आनंद पाल की हत्या का बदला लेने के लिए अदालत में पेशी के बाद लौट रहे आठ लोगों को गांव फहीमपुर के पास बस से उताकर गोलियों से भूनकर नृशंस हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड में मुख्य आरोपी चन्द्रवीर सिंह और सहदेव सिंह सहित कुल दस लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। इनको न्यायालय में फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसको हाईकोर्ट ने भी कायम रखा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 30 अर्पै्रल 2004 को चन्द्रवीर व सहदेव सहित चार आरोपियों की सजा ए मौत को आजीवन कारावास में बदल दिय था। ये आरोपी आगरा की जेल में बन्द हैं। इस हत्याकांड के 18 वर्ष बाद मुख्य हत्यारे चंद्रवीर ने दया की अपील की, लेकिन उसकी दया याचिका को शासन ने खारिज कर दिया। हत्यारे ने रिहाई की मांग की थी।

बरला के चर्चित दोहरे हत्याकांडः इस केस में जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. गोकुलेश ने मई 2017 में आरोपी पिता-पुत्र को फांसी की सजा सुनाई है। अदालत ने दोनों पर 20-20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। करीब साढ़े छह साल पहले मामूली बात को लेकर हुई कहासुनी में दादा-पोते की धारदार हथियारों से काटकर हत्या कर दी गई थी। छपार थाना क्षेत्र के गांव बरला के जंगल में नौ नवंबर 2011 को दोहरा हत्याकांड हुआ था। छपार थाने पर बरला निवासी मोहम्मद आलिम ने मुकदमा दर्ज कराया था। उसने बताया था कि वह अपने पिता रियासत और पुत्रों आजाद उर्फ राजा, मुनव्वर उर्फ मोनू और साले के लड़के फजरुद्दीन के साथ अपने खेत पर पापुलर के पत्ते एकत्र कर रहा था। गांव के ही बारिक पुत्र अब्दुल हसन अपने पुत्र शहबाद, शाहनवाज उर्फ काला व शाहनजर उर्फ मोनू के साथ आया। आरोपियों ने पापुलर के पेड़ों को अपना बताते हुए धारदार हथियारों से हमला कर उसके पिता रियासत (60) और पुत्र आजाद उर्फ राजा (24) की हत्या कर दी।

बुटराडा हत्याकांडः 2003 में मुजफ्फरनगर के गांव बुटराडा में ग्राम प्रधान की चुनावी रंजिश के चलते 6 लोगों छह लोगों रामकिशन, सतेंद्र, सुनील, रिजवान, रिहान और माशूक की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी। मामले में न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए आरोपी मदन और सुरेश को फांसी की सजा मुकर्रर करते हुए तीसरे आरोपी ईश्वर को उम्रकैद और अन्य तीन आरोपियों पर 74 हजार अर्थदंड की सजा सुनाई थी। अक्टूबर 2003 को इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। इसमें लोकेंद्र ने बाबरी थाने पर मुकदमा दर्ज कराया था। मामले में न्यायाधीश एडीजे 3 के समक्ष 25 गवाह पेश करते हुए तमाम दलीलें और सबूत पेश किए गए।

चर्चित बसेडा गैंगरेप कांडः इस मुकदमे में अपर जिला सत्र न्यायधीश चतुर्थ आरपी सिंह ने मुख्य आरोपी जुल्लू उर्फ जुल्फीकार सहित सभी चैदह आरोपियों को दोषी ठहराया। दोषी ठहराये गये आरोपियों में से पांच आरोपियों को गैंगरेप में तीन महिलाओं को अपहरण और साक्ष्य मिटाने के आरोप में दोषी ठहराते हुए उन्हें कारावास एवं आर्थिक दंड की सजा सुनाई। 9 अक्टूबर 2003 को जनपद के छपार थाना क्षेत्र के गांव बसेड़ा में पन्द्रह वर्षीय किशोरी के साथ गैंगरेप किया गया था इस मामले में पुलिस ने ग्यारह लोगों के विरूद्ध अपहरण, बलात्कार आदि के आरोप में अदालत में चार्जशीट भेजी थी। बाद में पीड़िता के बयान और गवाहों के बयान के आधार पर अदालत ने पांच और लोगों के नाम आरोपियों में जोड़ दिये गये।

अपहरण और हत्या में दो को फांसी की सजाः मुजफ्फरनगर जिले में एक व्यवसायी के बेटे का अपहरण कर हत्या करने के मामले में यहां की फास्ट टैक अदालत के न्यायाधीश राजेश भारद्वाज ने इसे विरलतम मामला बताते हुए फैसला सुनाया और आरोपी मोनू उर्फ चंद्र प्रकाश और नीतू को फांसी की सुनाई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सजा की पुष्टि के बाद फैसले पर अमल किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक कबाड़ व्यवसायी अरशद के 17 वर्षीय बेटे का जिले के मंसूरपुर गांव से 18 लाख रूपये की फिरौती के लिए अक्तूबर 2010 में अपहरण कर लिया गया था। बाद में पुलिस को उसका शव मिला जिस पर गोलियों के निशान थे और आरोपियों से अपराध में इस्तेमाल हथियार को बरामद किया गया था।

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