खाकी और कर्तव्य के बीच छह माह की बेटी के साथ 'गुड पुलिसिंग' कर रही झांसी की सिपाही अर्चना

खाकी और कर्तव्य के बीच छह माह की बेटी के साथ गुड पुलिसिंग कर रही झांसी की सिपाही अर्चना

लखनऊ। पुलिस...! ये एक ऐसा शब्द है, जब जुबां पर आता है तो जहन में एक दबंग और अभद्र व्यवहार वाला एक व्यक्तित्व तैरने लगता है, आज समाज में पुलिस को लेकर नकारात्मक विचारों की भरमार दिखाई देती है, लखनऊ के विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद पुलिस को समाज में क्रूरतम अत्याचारी के रूप में पेश करने का काम किया गया, लेकिन इसी पुलिस के साथ ड्यूटी के लिए त्याग, समर्पण और ईमानदारी भी जुड़ी है, हमारे आसपास ही 'गुड पुलिसिंग' के कई मामले आते है, लेकिन इनको हम नजर अंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं। पुलिस की सकारात्मक छवि की ये अच्छी तस्वीरें पुलिस से जुड़े विवादों की तरह प्रशंसा नहीं बटोर पाती, ये एक सामाजिक विकृति के रूप में ही देखा जायेगा कि जो पुलिसकर्मी अपने घर, परिवार को छोड़कर केवल ड्यूटी के लिए समर्पित रहता है, उसके अच्छे कार्य या त्याग समाज में सराहना का पात्र नहीं बनता। आज पुलिस के समर्पण और त्याग की एक ऐसी ही एक तस्वीर सोशल मीडिया पर यूपी के जनपद झांसी से वायरल हो रही है। इस तस्वीर में एक महिला काॅस्टेबिल अपनी अबोध बच्ची के साथ कोतवाली में ड्यूटी को अंजाम देने के साथ ही मां का कर्तव्य भी निभा रही है। इस महिला कांस्टेबिल को प्रोत्साहित करते हुए डीआईजी सुभाष सिंह बघेल ने 1000 रुपये से पुरस्कृत करने का ऐलान किया, इस ईनाम की खुशी तो इस महिला कांस्टेबिल को है, लेकिन ये अधूरा सा है। वो इनाम तो चाहती है, मगर अपने गृह जनपद के निकटतम जिले में तैनाती के रूप में, अब देखना है कि उसे 'गुड पुलिसिंग' का इनाम इस स्तर पर मिलता है या नहीं!

पुलिस हमेशा से ही एक निगेटिव थिंकिंग बनी है, लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद समाज में पुलिस के प्रति इस सोच ने और गहरा रूप अख्तियार किया। यही कारण है कि हम अपने आसपास ही होने वाली 'गुड पुलिसिंग' को नजर अंदाज कर जाते हैं। जबकि ये पुलिस कर्मचारी भी हमारे ही समाज से, हमारे ही परिवार से आते हैं, लेकिन ''जिस मन ना लागे वो क्या जाने पीर पराई'', जैसा हाल ही हमारे समाज का भी है। 'गुड पुलिसिंग' के यूं तो अनेक किस्से हैं, लेकिन ताजा मामला झांसी जनपद से सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहा है।


झांसी कोतवाली में तैनात महिला कांस्टेबिल अर्चना की ये तस्वीर दिखा रही है कि पुलिस कर्मचारियों के लिए काम और परिवार के बीच सामंजस्य बनाकर रखना कितनी बड़ी चुनौती भी बन सकता है। अर्चना साल 2016 बैच की कांस्टेबिल है। मूल रूप से ताजनगरी आगरा की निवासी अर्चना की शादी कानपुर में हुई। अर्चना को यूपी पुलिस में लागू की गयी बाॅर्डर स्कीम के अन्तर्गत मायके और ससुराल से करीब 250 किलोमीटर दूर जनपद झांसी में तैनात कर दिया गया। अर्चना वर्तमान में झांसी शहर कोतवाली में कार्यरत है। कांस्टेबिल अर्चना के पति हरियाणा के गुडगांव में नौकरी करते हैं। दूरी ज्यादा होने के कारण पति का झांसी आना भी कम ही होता है और अर्चना अकेले ही यहां पर रहकर अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रही है। अर्चना ने करीब छह माह पूर्व पुत्री को जन्म दिया। अकेले रहने के कारण अर्चना के सामने अपनी छह माह की बच्ची अनिका का पालन पोषण करने और ड्यूटी को अंजाम देने में सामंजस्य बिठा पाना पहाड़ जैसी चुनौती बना हुआ है। अर्चना प्रतिदिन अपनी अबोध बच्ची अनिका को घर से लेकर कोतवाली पहुंचती है और बच्ची को काउंटर पर लिटा कर कोतवाली में आने वाले आगंतुकों और पीड़ितों की समस्याओं को सुनने के साथ उनके निस्तारण में जुटी रहती है। ड्यूटी के साथ अपनी बच्ची का पालन पोषण कार्य स्थल पर करना शायद ही किसी मां के लिए आसान हो। अर्चना के सामने ये चुनौती ही कम नहीं, इसके अलावा उसकी ड्यूटी वीआईपी कार्यक्रम या कोतवाली से इतर भी लगती है तो छह माह की बच्ची को वो वहां ले जाने में असमर्थ होने पर अपनी महिला पुलिस मित्रों का सहयोग लेने को विवश होती है। अर्चना की दिक्कत को महसूस करते हुए कई महिला कांस्टेबिल उसका सहयोग करने को आगे आती रहती हैं। अपनी अबोध बच्ची को महिला मित्र पुलिस कर्मचारियों के पास छोड़कर अर्चना कभी कभी काफी दूर ड्यूटी पर पहुंचती है, तो उसको बेटी की चिंता भी सताती है। इन दुश्वारियों के बीच अर्चना की ड्युटी के प्रति दृढ़ता कमतर नहीं है। जब अर्चना के 'गुड पुलिसिंग' के लिए इस त्याग और ड्यूटी के प्रति उसके समर्पण की चर्चा झांसी परिक्षेत्र के डीआईजी सुभाष सिंह बघेल तक पहुंची तो वो इस महिला कांस्टेबिल को प्रोत्साहित करने से नहीं चूके। उन्होंने महिला कांस्टेबिल अर्चना को व्यक्तिगत तौर पर एक हजार रुपये नकद देकर सम्मानित करने की घोषणा की। डीआईजी की ओर से प्रोत्साहन और सम्मान मिलने से महिला कांस्टेबिल अर्चना उत्साहित हैं, लेकिन घर और ससुराल से सैंकड़ों किलोमीटर दूर अकेले नौकरी के लिए तैनात रहकर बेटी और ड्यूटी में सामंजस्य बनाकर हर चुनौती को स्वीकार कर 'गुड पुलिसिंग' का सुन्दर संदेश दे रही हैं। कांस्टेबिल अर्चना कहती हैं, ''डीआईजी के हाथों पुस्कार मिलने से मैं उत्साहित तो हूं, लेकिन इस इनाम की खुशी आधी अधूरी है। घर और परिवार से दूर रहकर अकेले ड्यूटी के साथ बेटी को पालने की चुनौती कई बार हतोत्साहित भी करती है। महिला कांस्टेबिलों को यूपी में गृह जनपद के करीब ही तैनाती मिलने चाहिए, ताकि वो अपनी नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियों में और ईमानदारी के साथ समर्पित रह सकें। बड़ा इनाम यही होगा कि यदि मुझको घर के करीब तैनाती दी जाये।'' बता दें कि झांसी की आगरा से दूरी 270 किलोमीटर और कानपुर की दूरी 228 किलोमीटर है।

पुलिस कर्मचारियों में तनाव का बड़ा कारण 'बाॅर्डर स्कीम'

यूपी पुलिस में कानून व्यवस्था बेहतर बनाने के नाम पर लागू की गयी बाॅर्डर स्कीम की शरूआत से ही पुलिस कर्मचारियों में इस व्यवस्था के प्रति असंतोष दिखाई देने लगा था। आज भी ऐसी ही स्थिति है। दरअसल साल 2010 में बसपा शासनकाल में मुख्यमंत्री मायावती ने यूपी में बाॅर्डर स्कीम को लागू किया था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, हैड कांस्टेबिल, कांस्टेबिल सहित कोई भी पुलिसकर्मी अपने गृह जनपद के बॉर्डर जिले में तैनात नहीं किया जाता। इस व्यवस्था से पुलिस कर्मचारियों को काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। साल 2012 में जब यूपी में सपा की सरकार आयी तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुलिस की समस्या की समझते हुए बाॅर्डर स्कीम को खत्म कर दिया था, लेकिन फिर से जब प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर सपा सरकार पर सवाल उठने लगे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जून 2014 में फिर से बाॅर्डर स्कीम को लागू करा दिया था। इसके बाद से ये आज तक लागू है। पुलिस कर्मचारियों में तनाव और अवसाद के शिकार होते हुए आत्महत्या और जनता से दुव्र्यवहार की घटनाएं भी इसी कारण बढ़ रही हैं। बाॅर्डर स्कीम ने पुलिस कर्मचारियों को परिवार से दूर किया और बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स अवसादग्रस्त हो गयी। आज भी अर्चना की तरह काफी पुलिस कर्मचारियों को भारी दुश्वारियों के बीच जीवन जीना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद पुलिस फोर्स को फिर से उम्मीद जगी थी, कि शायद अब बाॅर्डर स्कीम के तुगलकी फरमान से निजात मिले, लेकिन ये उम्मीद डेढ साल से उम्मीद ही बनी है। हां! अब कहीं जाकर सरकार ने इस पर गौर करना प्रारम्भ किया है। डीजीपी मुख्यालय से एक चिट्ठी चली है, जो पुलिस विभाग में सकारात्मक चर्चाओं का कारण बनी है। इस चिट्ठी के एडीजी लखनऊ के कार्यालय पहुंचने पर यह उम्मीद जगी है कि इसी दिवाली पर पुलिस फोर्स को बाॅर्डर स्कीम से निजात का बम्पर गिफ्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा दिया जा सकता है।

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