एडीएम हरीश चंद्र , स्वच्छ छवि, ईमानदार कार्यशैली फिर भी सजा

एडीएम हरीश चंद्र , स्वच्छ छवि, ईमानदार कार्यशैली  फिर भी सजा

मुजफ्फरनगर। नोएडा का एडीएम हरीश चन्द्र और कर्नल विरेन्द्र सिंह चौहान प्रकरण कई सवाल खड़ा करता है। अपनी 21 साल की सिविल सर्विस में मूल्यों को हमेशा आगे रखकर कार्य करते हुए बेदाग और ईमानदार छवि बनाकर उत्तर प्रदेश प्रशासनिक व्यवस्था में एक अलग छवि रखने वाले पीसीएस अफसर हरीश चन्द्र को किस बात की सजा मिली? ये सवाल लेकर लोग जवाब मांग रहे हैं।

मुजफ्फरनगर में जब उनको शासन ने अपर जिलाधिकारी प्रशासन के पद पर तैनात कर भेजा तो जो लोग पहली मुलाकात में उनसे रूबरू हुए, उनको इस मुलाकात में एडीएम हरीश चन्द्र एक अलग मिजाज के अफसर लगे, लेकिन जब उन्होंने धीरे-धीरे उनका काम देखा। उनकी कार्यशैली से परिचित हुए तो इन लोगों को इस अफसर में एक निर्भीक और आदर्शवादी अफसर के साथ ही एक अच्छा इंसान भी नजर आया। अपने परिवार से दूर रहकर लगातार सेना के रिटायर्ड कर्नल विरेन्द्र सिंह चैहान की हरकतों की शिकायतों के चलते मानसिक रूप से एक हद तक उत्पीड़न सहते हुए भी इसे लगातार हल करने के प्रयासों में जुटे रहने वाले एडीएम हरीश चन्द्र उस व्यक्ति को समझाने में हार गये, जिसको समाज में एक सैनिक होने के कारण सर्वाधिक सम्मान मिलता है। एडीएम प्रशासन के रूप में हरीश चन्द्र ने मुजफ्फरनगर जनपद में तैनाती के दौरान कई सराहनीय कार्य किये, जो उनकी स्वच्छ छवि और ईमानदार कार्यशैली को प्रदर्शित करती हैं। नगरीय निकाय चुनाव के दौरान उनको जनपद की खतौली नगरपालिका परिषद् के लिए रिटर्निंग आॅफीसर बनाया गया। यहां मतगणना के दौरान भाजपा के प्रत्याशी पूर्व चेयरमैन पारस जैन के साथ जब निकटतम मुकाबला बना तो मतगणना में गड़बड़ी का शोर मचने लगा। भाजपाईयों ने लगातार रिटर्निंग आॅफीसर पर दबाव बनाना शुरू किया, डीएम तक से शिकायत की गयी। लखनऊ से भी दबाव बनवाया गया, लेकिन उन्होंने हर दबाव को नकारते हुए निष्पक्ष मतगणना करायी और इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की दस से भी कम वोटों से पराजय हो गयी। यहां सपा की उम्मीदवार चुनाव जीती। यही एक वजह रही, जबकि एडीएम हरीश चन्द्र भाजपाईयों की आंख का कांटा बने। लोगों के जहन में यह सवाल भी उठता है कि कहीं उनकी यही निष्पक्षता तो आज उनकी परेषानियों का सबब नहीं बन गयी है। जब मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना में मुजफ्फरनगर में प्रदेश सरकार की मंशा के अनुसार गरीब परिवारों की बेटियों के कन्यादान का नम्बर आया तो जिलाधिकारी ने एडीएम हरीश चन्द्र को तमाम प्रबंध के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदारी सौंपी। दिन रात लगकर उन्होंने इसमें ना सिर्फ बेटियों की संख्या बढ़ाने का काम किया, बल्कि जो सामान बेटियों को गृहस्थ जीवन चलाने के लिए उपहार स्वरूप दिया गया, उसकी क्वालिटी भी उत्कृष्ट स्तर की रहे, इसके लिए दूसरे राज्यों से सामान मंगवाया। जब छह साल बाद जिले में नुमाइश का आयोजन कराने के लिए डीएम ने संकल्प लिया तो एक माह तक एडीएम प्रशासन हरीश चन्द्र ने इस नुमाइश को रोशन रखने में अभूतपूर्व योगदान दिया। अब सवाल ये है कि क्या समाज में रहते हुए रिटायर्ड आर्मी पर्सन कुछ गलत नहीं कर सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि शासन प्रशासन को हर दबाव को नकारते हुए इस प्रकरण में निष्पक्ष जांच कर सच्चाई जनता के सामने रखनी चाहिए। सही और गलत हमें समाज में ही पता चल जाता है, एडीएम हरीष चन्द्र के साथ पूरा समाज खड़ा नजर आया, ये उनकी जीत रही।

एडीएम की फेसबुक वाॅल से - अपनी कहानी-अपनी जुबानी


''पिछले एक माह का समय मेरे और मेरे परिवार के लोगों के लिये अभिशाप भी रहा और वरदान भी रहा। अभिशाप इस अर्थ में कि हमें उन अपराधों के लिये दोषी ठहराया गया जो हमने किये ही नहीं। वरदान इस अर्थ में कि इस विपत्ति की घड़ी में अपनों और परायों की पहचान हुई। मैंने अब तक जो इंसानियत भाईचारा के लिये काम किया, परमात्मा का निरन्तर ध्यान किया, उसका पुण्य इस बुरे वक्त में साफ दिखाई पड़ा। मेरे पीछे लाखों लोग खड़े हो गये जिन्होंने सच्चाई के लिये, न्याय के लिये मेरे हक में आवाज उठाई। मैं और मेरा परिवारवन भर उन लोगों का ऋणी रहेगा।

जो लोग मुझसे और मेरे परिवार से किसी तरह से परिचित हैं, वे जानते हैं कि हम किस तरह के लोग हैं। मैंने अपने पूरे जीवन काल में कभी किसी का दिल नहीं दुखाया, किसी परिंदे को भी दुख नहीं पहुंचाया। किसी इंसान के दुख दर्द को कैसे कम किया जाए, किसी रोते हुए चेहरे पर कैसे हंसी लायी जाए, इसी धुन में लगा रहा। ये बात मुझे जानने वाले लोग मुझसे बेहतर जानते हैं। दोस्तों! आज से लगभग चार साल पहले जब मैंने ये फ्लैट खरीदा था तो उसके पूर्व की एक घटना का जिक्र करना बहुत प्रासंगिक समझता हूं, सेक्टर 37 में जहां मैं पहले किराये पर रहता था, तो उसके सामने ही ठाकुर अमर सिंह (समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव) की बहिन रहतीं थीं। उनके यहां मेरी पत्नी का आना जाना था। एक दो बार मैं भी उनके घर गया था। फ्लैट खरीदने के पहले मेरी पत्नी ने उनसे चर्चा की थी, तो उन्होंने साफ मना किया था कि कर्नल चौहान को वे व्यक्तिगत रूप से जानती हैं। आप लोग कहीं और देख लो वरना आप लोग कभी चैन से नहीं रह पाओगे। ये बात मेरी पत्नी ने मुझे बताई परंतु मुझे लगा कि कोई व्यक्ति इतना बुरा नहीं हो सकता। हम लोग तो कर्नल साहब के सामने उनके बच्चों जैसे हैं। मैंने सोचा कि अगर कभी कर्नल साहब कुछ कह देंगे भला बुरा तो सुन लेंगे। हमारा क्या चला जायेगा। जिस दिन से मैंने ये फ्लैट खरीदा, उसी दिन से वे जो कुछ बुरे से बुरा कर सकते थे किया। जिन लोगों ने आस पड़ोस में अवैध निर्माण कर रखा था, उनकी शिकायत प्राधिकारण में मेरे नाम से कर दी। मैं तो वहां किसी को जानता तक नहीं था और फिर मुझे जिन लोगों के बीच में रहना था, भला मैं क्यों उनसे झगड़ा करता।

इन कर्नल साहब ने अपनी शातिराना सोच से मेरी बुराई करा दी। जब फ्लैट में मरम्मत का काम शुरू हुआ तो मेरे एक मित्र सत्यदेव मिश्रा से मैने अनुरोध किया कि वे कुछ दिन रहकर मेरा फ्लैट ठीक करा दें। सत्यदेव मिश्रा ने पूरे समय रहकर काम कराया। फ्लैट में मरम्मत के समय कर्नल साहब ने ना जाने कितने विघ्न डाले, क्या क्या परेशानियां खड़ी कीं ये मुझसे बेहतर मिश्रा जी बता सकते हैं। जो लोग सत्यदेव मिश्रा से बात करना चाहें, मैं उन्हें नम्बर दे सकता हूं। यहां एक बात और भी बताना चाहूंगा कि अब उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास ले लिया है और अपना पूरा समय परमात्मा के ध्यान भजन में व्यतीत कर रहे हैं। मेरे फ्लैट में जो कुछ भी काम हुआ वो उसी समय हुआ आगे और पीछे का छज्जा भी उसी समय का था। कर्नल साहब के चालचलन के बारे में अगर कोई जानने का इच्छुक हो तो वहां की किसी काम वाली से जानकारी कर ले, सब पता चल जायेगा। मैं और मेरा परिवार पिछले चार सालों से इनकी नाजायज हरकतों को चुपचाप बर्दाशत कर रहा था। कर्नल साहब ने मेरे नौकर की साइकिल पर गाड़ी चढ़ाकर तोड़ दी और उसे पीटा भी। उनकी कोशिश रहती थी कि ये काम छोड़कर भाग जाये और ये लोग परेशान होकर चले जाएं या उनकी मनमानी चलने दें। चार सालों में हम लोगों ने कई हजार गालियां खायीं कर्नल साहब से पर जग हंसाई के कारण चुप रहे।

कर्नल साहब मेरे परिवार को आतंकित और उत्पीड़ित करने के लिये रात में कभी एक बजे कभी कभी दो बजे फ्लैट की घंटी बजाते थे। बच्चे डर के मारे दरवाजा नहीं खोलते थे। बच्चे मुझे रात में फोन करते थे। पत्नी अक्सर ऐसे मौके पर विवेक गुप्ता और उनकी पत्नी तृप्ति को बुला लेती थी। विवेक गुप्ता राष्ट्रीय स्तर के हाकी के खिलाड़ी हैं और यश भारती पुरुस्कार से सम्मानित हैं। इटावा के रहने वाले हैं। इटावा के होने के नाते ये मेरी पत्नी को बहिन की तरह मानते हैं और हर अवसर पर दोनों पति-पत्नी आकर खड़े हो जाते। विवेक गुप्ता और उनकी पत्नी कितनी बार रात में अपने छोटे छोटे बच्चों को लेकर मेरे फ्लैट पर गये, ये बात उनसे तथा उनकी पत्नी से कोई भी पूछ सकता है।

मेरी पत्नी ने कर्नल चौहान की अमर्यादित और अशोभनीय हरकतों की शिकायत पार्क में इसके पहले वहां कई आर्मी ऑफिसर्स, जो कि पार्क में टहलने आते हैं, उनसे की तो पार्क से करीब 10-15 लोग जिनमें कुछ महिलायें भी थी, कर्नल को समझाने उनके घर गये और उन्हें बहुत समझाया। पर कर्नल साहब ने उन लोगों को भला बुरा कहा और हम लोगों को दलाल तक कह डाला, जिस पर सभी लोगों ने कर्नल चैहान के व्यवहार की निंदा की। बाद में कर्नल चैहान ने उन सभी से माफी मांगी। ये घटना तो एक-डेढ़ माह से ज्यादा पुरानी नहीं है। आज ये लोग भले ही मेरे पक्ष में गवाही देने न आयें, लेकिन कोई भी व्यक्ति जो सच्चाई जानने का इच्छुक हो वहां जाकर पता कर सकता है। मेरी पत्नी के वहां के लोगों के साथ कैसे संबंध हैं, इसके लिये किसी से पूछने की जरूरत नहीं है। बस एक दो महीने की सीसीटीवी फूटेज देख ली जाए, तो सब अपने आप स्पष्ट हो जायेगा। इससे एक बात और साफ हो जायेगी कि कर्नल चौहान इस पार्क में कभी घूमने नहीं जाते हैं और 14 अगस्त 2018 को आपराधिक कृत्य के इरादे से पार्क में अपने आदमियों के साथ गये थे। वहां उपस्थित कुछ महिलाओं ने इस बात की चर्चा की थी कि कर्नल चौहान के पास पिस्तौल थी, जिसकी खबर एक टीवी चैनल ने चलायी थी। मेरी पत्नी जब शाम को पार्क से लौटती थी तो मेरे फ्लैट पर चढ़ने का रास्ता कर्नल चौहान के दरवाजे के सामने से था, जहां अक्सर खड़े होकर ये घेरने की कोशिश करते थे। कुछ दिनों से तो मेरी पत्नी अपनी सहेली को दहशत की वजह से अपने साथ ले आती थी जो घर तक छोड़कर जाती थी। मेरी पत्नी की वो सहेली भी एक आर्मी ऑफिसर की बहू है, जिसका नाम मैं यहां नहीं खोल रहा हूं वरना जिन लोगों ने मेरी पत्नी के साथ दिन दहाड़े घटी घटना के गवाहों को डरा धमकाकर मुंह बंद करने के लिये मजबूर कर दिया वे किसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं। फिर भी परमात्मा की ऐसी कृपा रही कि मेरे परिवार के साथ घटी घटना के बारे में इतने अकाट्य सबूत हैं कि न्यायालय में मुझे किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी। कर्नल साहब ने असली मुद्दे से सबका ध्यान भटकाने के लिये एक बात को सबसे ज्यादा तूल दिया वो यह कि हमने कोई बहुत बड़ा अवैध निर्माण कर लिया था एवं कर्नल साहब को उससे बहुत परेशानी थी और इसी वजह से वो शिकायत कर रहे थे। मैं यहां यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मेरे फ्लैट में जो कि प्रथम तल पर स्थित है, आगे की तरफ खिड़की और दरवाजे के ऊपर एक छज्जा बना था, जिससे बारिश का पानी और धूप से बचाव हो जाता था। इतना निर्माण वहां के प्रत्येक फ्लैट मालिक ने कर रखा है। फ्लैट के पीछे की ओर भी एक छोटा सी बालकनी थी, जो तभी से बनी हुई थी जब से फ्लैट खरीदा था। इसी को तुड़वाने के लिये कर्नल साहब पूरी ताकत से लगे हुए थे। मेरे किसी निर्माण से कर्नल साहब को कोई परेशानी नहीं थी। केवल अपनी खराब नीयत की वजह से वो ये सारे काम करने में लगे थे। यहां एक बात और भी उल्लेख करना चाहूंगा कि कर्नल साहब ने स्वयं एक कमरा अवैध रूप से बना रखा है तथा पार्क की काफी जमीन अवैध रूप से घेर रखी है। इसकी शिकायत भी नोएडा प्राधिकरण में लम्बित है, जिसको वहां के अधिकारियों ने दबा दिया है। सेक्टर -29 के हर घर में लोगों ने कई कई कमरे बना रखे हैं तथा इन सबके खिलाफ प्राधिकरण में शिकायतें धूल खा रही हैं। कोई कुछ नहीं कर रहा है। कोई भी व्यक्ति प्राधिकरण में जाकर मेरी बात का सत्यापन कर सकता है। मेरे खिलाफ इकतरफा कार्यवाही बिना मुझे सुने, बिना अवसर दिये आनन फानन में की गयी। जबकि नोएडा प्राधिकरण में बाकायदा नियमावली बनी है जिसके तहत कार्यवाही होती है। यहां मेरा सिर्फ इतना कहना है कि मेरी एफआईआर को झूठा साबित करने एवं असल मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिये सारा ड्रामा किया गया।

कर्नल साहब मेरी बालकनी गिरानेे के लिये इतने उतावले थे कि उन्होंने खुद ही बालकनी के पिलर खोद डाले और गड्ढों में पानी भर दिया ताकि पिलर जमीन में धंस जाएं और बालकनी गिर जाए। इसी के बाद मैंने जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्धनगर को आठ अगस्त 2018 को एक पत्र लिखा था, जिस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। मैं खुद जिलाधिकारी गौतमबुद्धनगर से व्यक्तिगत रूप से मिला था, परंतु किया किसी ने कुछ भी नहीं। 12 अगस्त 2018 को भी मेरे आवास पर राकेश शुक्ला जो भारत सरकार के एक मंत्री के ओएसडी हैं, अपनी पत्नी के साथ थे, उनकी मौजूदगी में ही कर्नल साहब ने बहुत भला बुरा कहा। मैंने खुद हाथ जोड़कर कर्नल साहब से कहा कि हम लोग आपके बच्चे जैसे हैं, हमें चैन से रह लेने दो परंतु कर्नल साहब ने तब भी हम लोगों को बरबाद करने की धमकी दी थी और कहा था कि नोएडा से लेकर लखनऊ तक सब मेरे अधिकारी और नेता बैठे हैं, तुम लोगों को मैं जल्दी ही सबक सिखाऊंगा। दोस्तो! 14 अगस्त 2018 की सुबह हम दोनों लोग पार्क में घूमने गये थे। 10-15 मिनट घूमने के बाद मैं और मेरी पत्नी वापस घर आ गये थे। मुझे मुजफ्फरनगर जाना था तो मैं अपनी तैयारी में लग गया। पार्क में उपस्थित महिलाओं ने मेरी पत्नी से कहा कि ऊषा तुम कपड़े बदल कर आ जाओ। आज तीज का त्यौहार है तो सभी लोग मिलकर मनायेंगे। इसी बीच कर्नल साहब पार्क में अपने आदमियों को लेकर घुस गये। कर्नल साहब ने अपनी एक गाड़ी पार्क के कोने पर लगा रखी थी, इस बात को कर्नल साहब ने खुद स्वीकार किया है। जब पार्क में कर्नल साहब ने मेरी पत्नी के बारे में गुंडी, सुअर व गाय का मांस खाने वाली कहकर महिलाओं को भड़काया तथा जातिसूचक गालियां दीं तो वहां उपस्थित सभी महिलाओं ने जमकर विरोध किया। इसी बीच मेरी पत्नी घर से दुबारा पार्क में पहुंच गयी, जहां पहले से ही महिलायें कर्नल चौहान से लड़ रहीं थीं। कर्नल चैहान ने मेरी पत्नी के मुंह पर फिर वही सब कहा और कहा कि तेरा तो आज मैं वो हाल करूंगा कि पता लग जायेगा कि कर्नल चैहान क्या चीज है। यहां यह बताना आवश्यक है कि कर्नल चैहान अपने जिन लोगों के साथ पार्क में घुसे थे, उनको वहां उपस्थित महिलाओं ने गार्डों की सहायता से बाहर निकलवाया था, वे पार्क से बाहर निकलकर गार्ड रूम की दीवार के पास खड़े हो गये। जब मेरी पत्नी दुबारा पार्क गयी तो इन लोगों ने वहीं से पकड़ने की कोशिश की परंतु शोरगुल सुनकर गार्ड आ गये तो कर्नल साहब सफल नहीं हो पाये। इसी बीच में मेरे नौकर ने मुझे फोन किया तो मैने बाहर झांककर देखा तो पार्क का माहौल बहुत खराब लगा।

मैं किसी अनहोनी की आशंका से पार्क की तरफ भागा। वहां जाकर सारी बात पता की तो मैं बहुत परेशान हुआ। पार्क में एक महिला मंजुला धर ने एक गार्ड के मोबाइल से डायल 100 को फोन कर दिया जिसका रिकाॅर्ड मौजूद है। कोई भी सत्यापित कर सकता है। मैं सभी महिलाओं के साथ पार्क के कोने पर जहां से पार्क में घुसते हैं वहां गया। तब तक डायल 100 की पुलिस मौके पर आ चुकी थी, जिसका पूरा वीडियो फुटेज मौजूद है। कर्नल साहब ने मेरे मुंह पर फिर खूब गालियां दीं और ये भी कहा कि मैं इसका (उषा, मेरी पत्नी) का पति नहीं हूं। ये सब पुलिस के सामने कहा। इसके बाद माहौल ज्यादा बिगड़ते देख कर्नल साहब वहां से निकलने लगे तो मैंने उन्हें निकलने नहीं दिया और इसी कोशिश में मैंने पीछे धकेल दिया। इसी बीच चौकी इंचार्ज एसआई रवि तोमर मौके पर आ गये। उन्होंने पूरी घटना की जांच की कर्नल साहब को मौके से गिरफ्तार किया। रवि तोमर ने पूरी घटना के सम्बंध में अपनी रिपोर्ट क्षेत्राधिकारी को दी, जिसके बाद थाना सेक्टर 20 नोएडा में एफआईआर दर्ज हुई। रवि तोमर की रिपोर्ट से सारी बात शीशे की तरह साफ हो जायेंगी।

मेरे परिवार का असली बुरा समय 14 अगस्त से शुरू हुआ। कर्नल के आदमियों ने योजनाबद्ध तरीके से आतंक मचाना शुरू किया। जितनी महिलायें उस दिन पार्क में थीं उनको इतना डरा धमका दिया गया कि सब चुपचाप हो गयीं। यहां तक कि मजुला धर मैडम जो थाने तक साथ गयीं थीं, उनको इतना डराया धमकाया गया कि वे भी अपना बयान बदलने को मजबूर हो गयीं। मैं इन सभी महिलाओं की पीड़ा समझ सकता हूं और मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। भगवान की ऐसी कृपा रही कि मैंने पूरी घटना की वीडियो फुटेज निकलवा ली थी, जिसके कारण हमें किसी गवाह की जरूरत नहीं है। इसके अलावा कुछ मौके के गवाह भी हैं, जिनके नाम मैं यहां सावधानी वश नहीं खोल रहा हूं।

चार दिन तक लगातार वहां अज्ञात लोग घूमते रहे। मैं अपने परिवार के साथ अपने फ्लैट में ही कैद होकर रह गया। इस बीच कई लोग मुझसे मिलने आये, जिन्होंने मुझे बुरे से बुरे परिणाम के लिये तैयार होने को कहा। मैं समझ ही नहीं पाया कि आखिर हम लोगों ने कौन सा अपराध कर दिया है, जिसका दुष्परिणाम हम भोगेंगे। एफआईआर वापस लेने के लिये सब तरफ से दबाव डाले गये। अन्त में मुझे और मेरे परिवार को नेस्तानाबूद करने का अभियान शुरू हुआ। जिला प्रशासन ने कर्नल की खुलेआम पैरोकारी की। कर्नल चौहान की सोच वाले कुछ ठाकुर व अन्य लोगों ने षडयंत्र रचा, जिसे सफल बनाने में जिला प्रशासन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मेरे व मेरे परिवार के विरुद्ध चार दिन बाद जेल से आईपीसी की धारा 307 व अन्य गम्भीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया। जेल और थाना के बीच की दूरी 30-35 किमी. से कम नहीं होगी। जेल से एक बजकर एक मिनट पर कर्नल ने एफआईआर करने के लिये प्रार्थना पत्र भेजा और एक बजकर तेरह मिनट पर जेल से लगभग 35 किमी. दूर सेक्टर थाना 20 में रिपोर्ट भी दर्ज हो गयी। जेल से थाने तक तहरीर पंहुचने में कम से कम 45 से 50 मिनट का समय लगेगा, परंतु मात्र 12 मिनट में एफआईआर दर्ज हो गयी और तुरंत गिरफ्तारी भी शुरू कर दी। रिपोर्ट दर्ज होने के पहले ही मेरे नौकर को गिरफ्तार कर लिया। मेरे साथ ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा रही। मुझे 17 अगस्त की रात 12 बजे एक फोन आया कि आपके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है, अतः आप तुरंत नोएडा छोड़ दें। मैं किसी तरह रात में ही घर छोड़ कर चला गया। सुबह मुझसे मिलने मेरी पत्नी व छोटा बेटा वहां आ गये जहां मैं रुका था। बड़ा बेटा व नौकर घर पर ही रह गये। करीब एक बजे बेटे का घर से फोन आया कि 5-6 पुलिस वाले आये थे और बच्चन को पकड़ ले गये हैं। तब तक हम लोगों को पता नहीं था कि एफआईआर हुई भी है या नहीं। थाने पर पता किया तो बताया गया कि पूछताछ के लिये लाये हैं। थाने के इंस्पेक्टर ने उषा के मोबाइल पर फोन किया कि आपका 164 का बयान कराना है तो आप आ जाए। मैंने किसी अज्ञात अनिष्ट की आशंका से मना करा दिया। मैंने बड़े बेटे को कहा कि ताला बंद करके तुरंत कहीं चला जाए।

इसके बाद हम लोगों ने लंच किया और ये तय किया कि मैं तो मुजफ्फरनगर चला जाउंगा और बच्चे नोएडा चले जायेंगे। तब तक हमें ये भनक नहीं लगी थी कि हमारे खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। हम लोग एक साथ करीब डेढ़ बजे निकले। फिर एक चौराहे से मैं तो मुजफ्फरनगर के लिये मुड़ गया और बच्चे नोएडा के लिये मुड़ गये। मैंने एक निगाह बच्चों पर डाली और दिल मजबूत करके आगे बढ़ गया और बेटा तथा पत्नी आंखों में आंसू भरे हुए नोएडा की तरफ बढ़ गये। इसके लगभग 10 मिनट बाद मेरे पास फोन आया कि आपके और आपके परिवार के खिलाफ गम्भीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया गया है और आप लोगों की गिरफ्तारी के लिये पुलिस सक्रिय हो गयी है। मैंने तुरंत अपनी पत्नी को बताया कि अब घर न जाओ, क्योकिं शिकारियों ने जाल बिछा दिया है। सभी ने अपने अपने मोबाइल बंद कर लिये और जिसको जहां समझ में आया वहां चला गया। मेरे पास अब न्यायालय की शरण में जाने का ही एक मात्र विकल्प बचा था, क्योकि नोएडा में ये आम चर्चा थी कि मुझे किसी भी अवस्था में गिरफ्तार करने के लिये शासन से आदेश दिये गये हैं। मैंने अपने सभी मोबाइल बंद कर दिये। सभी से मेरा सम्पर्क कट गया। 5 दिन तक मुझे परिवार के किसी सदस्य के बारे में पता ही नहीं चल पाया कि सुरक्षित हैं या पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है या कर्नल चौहान के गुंडों ने मार दिया है। मेरे लिये ये दिन कितने संकट से भरे थे ये या तो मैं जानता हूं या फिर ईश्वर जानता है।''

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