संगठन से सरकार में पहुंचे है मंत्री गिरीश चंद यादव

संगठन से सरकार में पहुंचे है मंत्री गिरीश चंद यादव

लखनऊ। आज के दौर की राजनीति भले ही बाहुबल से दूर नजर आती हो, लेकिन राजनीति में सफलता की कहानी लिखने के लिए यही माना जाता है कि व्यक्ति का धनकुबेर होना जरूरी है। राजनीति और धन एक दूसरे के पर्याय बनते जा रहे हैं। नगरीय निकाय के सभासद पद जैसे छोटे चुनाव में लोग पैसा पानी की तरह बहाते हैं तो कोई बड़ा चुनाव लड़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाता, लेकिन आज इसी राजनीति में ऐसे लोग भी है, जो अपवाद बने हैं, इन्हीं राजनेताओं में जौनपुर जिले के सदर सीट से विधायक और सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार में नगर विकास राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव का नाम शामिल है। साल 2017 में गिरीश चन्द्र को उनके आरएसएस से लेकर भाजपा जिला महामंत्री के 27 साल के संघर्ष व समर्पण का तोहफा मंत्रीमंडल में हिस्सेदारी के रूप में मिला। विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने से लेकर योगी सरकार में मंत्रीमंडल तक पहुंचने का हर पल गिरीश चन्द्र की कहानी को रोमांचक बनाता है।

'खोजी न्यूज' ने यूपी के नगर विकास राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव के आरएसएस और भाजपा के प्रति समर्पण, जनहितों को लेकर उनके संघर्ष और सज्जनता के साथ उनकी जीत व योगी सरकार में मंत्री पद तक सफलता के रोमांच को शब्दों का रूप देकर इस शख्सियत के अनछुए पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया...!

साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। पीएम नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के प्रभाव में हुए इन चुनावों में जनता ने भाजपा के प्रति इतना लगाव दिखाया कि कई जिलों में विपक्ष का सूपडा ही साफ कर दिया गया, भाजपा की इस जीत की कहानी हम पढ़-सुन चुके हैं। इसी कहानी में कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जो सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार के 17 माह बीत जाने के बाद भी जनता के लिए 'पर्दे के पीछे' की कहानी बने हैं, गिरीश चन्द्र यादव का नाम ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। जौनपुर जनपद की सदर विधानसभा सीट से विधायक और सीएम योगी सरकार में नगर विकास मंत्री के रूप में कार्य कर रहे गिरीश चन्द्र को सीएम योगी के मंत्रीमंडल में एकमात्र 'यादव मंत्री' के रूप में भी पहचाना जाता है। बता दें कि सपा को ही अभी तक यादवों को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन भाजपा में गिरीश चन्द्र का लगाव अटूट रहा है। '90 के दशक में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़कर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में कार्य करते हुए छात्रों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले गिरीश चन्द्र साल 1993 में जौनपुर में हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल हुए और पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। गिरीश को भाजपा मण्डल कार्यसमिति में सदस्य पद का दायित्व मिला। यहीं से सामान्य जीवन से जुड़े गिरीश के संघर्ष और सपर्मण की कहानी शुरू होती है। उनकी सज्जनता का गवाह उनके आवास के पास स्थित अस्पताल बना है, यहां रोजमर्रा अपनी बीमारी का उपचार कराने के लिए आने वाले रोगियों की मदद और पीड़ितों की सेवा के लिए वो इस कदर आतुर और तत्पर रहते थे कि कई बार इसके लिए उनको अपनी पत्नी की नाराजगी तक झेलनी पड़ती थी। बकौल गिरीश चन्द्र....''घर के पास ही अस्पताल होने के कारण वो पैदल ही वहां पहुंच जाया करते थे और रोगियों को ज्यादा से ज्यादा मदद उपलब्ध कराने का प्रयास करते। कई मरीजों को घर से खाना लाकर देते, रात में कई बार भूखे मरीज मिलते तो उनके लिए घर जाकर पत्नी से खाना बनाने को कहते, तो वो मेरी इस कार्यषैली पर कई बार गुस्सा कर बैठती, हालांकि नाराजगी के बाद भी वो खाना बनाकर देती और मरीजों तक वो पहुंचाने का काम करते थे। मेरी हर कामयाबी में मेरी पत्नी का सहयोग सराहनीय रहा।'' उनके द्वारा एक अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने कचहरी में गरीबों और असहायों को सहायता देने का काम किया। कई लोगों को मुकदमा लड़ने में सहायता दी। उनको सही न्यायिक जानकारी देने में वो कभी पीछे नहीं हटते थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमण्डल में शामिल होने के बाद राज्यमंत्री नगर विकास का दायित्व संभालते हुए भी



गिरीश चन्द्र यादव का ये समाजसेवा का काम निरंतर जारी है।

छात्र जीवन से ही कुछ करने का रहा जज्बा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमण्डल में स्थान मिलने के बाद गिरीश चन्द्र यादव के स्वभाव पर उनके चाचा राज बहादुर ने कहा था कि गिरीश शुरू से ही अपने पुरुषार्थ के हिसाब से गांव व आस-पास के लोगों की समस्याओं के निस्तारण में मदद करते रहे। उनके मंत्री बनने के बाद क्षेत्र के लोगों ने विकास की जो उम्मीद जगाई थी, 16 महीने की सरकार में उन्होंने उसे पूरी होते हुए देखा है। गिरीश चन्द्र यादव के मित्र संतोष कुमार कहते हैं, ''गिरीश का पढ़ाई के समय से ही समाजसेवा और राजनीति के प्रति रुझान बना हुआ था। उन्होंने स्वार्थ से परे रहकर राजनीति की और बिना कुछ प्राप्ति की इच्छा के भाजपा से जुड़कर उसी में सेवा भाव से काम करते हुए संगठन को जौनपुर जनपद में खड़ा किया। उनके मंत्री बनने से क्षेत्र व जनपद का समुचित ढंग से विकास होने की उम्मीद जगी थी, उसे उन्होंने पहले ही साल में पूरा करके दिखाया है। सरल स्वभाव वाले मृदुभाषी समाजसेवी गिरीश अब और व्यापक रूप से लोगों का उत्थान करने में लगे हुए है। गांव जगदीशपुर अकबर निवासी उनके दूसरे मित्र राजकेशर पाल 1993 से ही उनके साथ हैं, वो कहते हैं, ''गिरीश चन्द्र यादव ने समाजसेवा को ही राजनीतिक लक्ष्य बनाया, काम के बदल पार्टी से कुछ पाने की इच्छा कभी नहीं की। पार्टी की ईमानदारी से सेवा व जनता की समस्याओं के लिए सतत संघर्ष का सुपरिणाम ये रहा कि उन्हें पहले जौनपुर सदर सीट से उम्मीदों के विपरीत टिकट मिला, जनता ने विधायक बनाकर सदन में भेजा तो उनको मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमण्डल में राज्यमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हो गया।

जौनपुर सदर से जीत गिरीश ने तोड़ा मिथक

लखनऊ। जौनपुर सदर सीट पर साल 2017 का चुनाव कांटे का मुकाबला था, भाजपा के प्रत्याशी गिरीश चन्द्र यादव के सामने बसपा से दिनेश टण्डन और कांग्रेस से पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सदर सीट से विधायक नदीम जावेद मैदान में थे, बसपा और कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार 'धनकुबेर' प्रत्याशी के रूप में जनता के बीच चर्चाओं में थे। अपने चुनाव को याद करते हुए गिरीश बताते हैं...''प्रचार के दौरान एक सज्जन ने उनको रोककर सवाल पूछा कि पैसे वाले उम्मीदवारों के सामने तुम कैसे टिक पाओगे?...इस सवाल ने उस समय तो उनको अनुत्तर कर दिया, लेकिन जब ईवीएम ने जवाब देना शुरू किया तो 15 साल बाद इस सीट पर भाजपा को जीत मिली और मेरी जीत ने इस सीट के चुनाव को लेकर बने उस मिथक को भी तोड़ा, जिसमें लोगों में ये धारणा बलवती हो गई थी कि इस सीट पर जिस पार्टी का विधायक जीत हासिल करता है, उस पार्टी की सरकार सूबे में नहीं बन पाती है।'-इस सीट पर '69 में जनसंघ के टिकट पर जंग बहादुर चुनाव जीते थे, साल 2002 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर सुरेन्द्र प्रताप विधायक बने थे। इनके बाद गिरीश चन्द्र ने यहां पर 'कमल' खिलाया। गिरीश चन्द्र यादव की जीत सुनिश्चित करने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी, केशव प्रसाद मौर्य, स्मृति ईरानी और रमाकांत यादव जैसे शीर्ष पंक्ति के नेताओं ने प्रचार किया। गिरीश कहते है...''टिकट के लिए उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को अपना बायोडाटा नहीं दिया था, केवल यह आग्रह किया था कि उनको मौका दिया जाये, वो हमेशा ही पंडित दीनदयाल की उस विचारधारा से प्रभावित रहे, जिसमें उन्होंने अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को न्याय और अधिकार मिलने तक संघर्ष की बात कही थी।'' वो कहते हैं, ''जब मेरे टिकट की घोषणा हुई तो अचम्भित रह गया, प्रचार के लिए मोटरसाइकिल भी उनके पास नहीं थी, समर्थकों व मित्रों के बलबूते उन्होंने ये चुनाव लड़ा। संगठन में लंबे समय तक काम करने का अनुभव मेरे काम आया, विधानसभा में 163 गांवों में से 133 गांवों में डोर टू डोर जाकर जनता से सम्पर्क किया। शहर के 31 में से 27 वार्डों में जनसम्पर्क किया। चुनाव प्रचार काफी थकाऊ रहा, सवेरे पांच बजे उठकर रात 12 बजे आता, सवेरे खाने का टिफिन तैयार करके देने वाली पत्नी जब खाना ज्यों का त्यों देखती तो नाराज होती, गर्म पानी में पैर डालकर सेवा करती। हर कदम हिम्मत बढ़ाती।' जो नतीजा सामने आया, उसने रिकार्ड बना दिया।''

11 मार्च को जब मतगणना का दिन आया तो, गिनती के समय गिरीश यादव 13 चक्र तक हार रहे थे। 30 चक्रों तक यहां चली मतों की गणना में सपा-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी नदीम जावेद शुरू के 12-13 चक्र तक बढ़त बनाए रहे। हालांकि, यह बढ़त हजार-पंद्रह सौ के ही इर्द-गिर्द रही। इसके बाद के चक्र में भाजपा के गिरीश यादव ने एक बार बढ़त बनाई तो फिर उसकी परिणति जीत के रूप में सामने आई। 30वें चक्र की गणना तक भाजपा के गिरीश चंद्र यादव ने 90324 मत प्राप्त किये, सपा कांग्रेस प्रत्याशी नदीम जावेद को 78040 और बसपा प्रत्याशी दिनेश टण्डन को 41877 मत हासिल हुए। इस चुनावी जंग में गिरीश ने विधायक नदीम को 12 हजार 284 मतों के अंतर से परास्त कर इतिहास रच दिया। गिरीश चंद्र बताते हैं...''साल 2000 में उनके द्वारा जिला पंचायत सदस्य के रूप में वार्ड नम्बर 04 से चुनाव लड़ा, 620 वोट से गिरीश यह चुनाव जीते, इसके बाद जब जिला पंचायत के अध्यक्ष पद के चुनाव में इस पद के लिए नामांकन करने की तैयारी में जुटे जब एक प्रत्याशी को प्रस्तावक नहीं मिला तो बिना पैसे लिये गिरीष चन्द्र ने अपना वोट उनको प्रस्तावक बनकर दे दिया। जबकि इस चुनाव को धनबल का चुनाव माना जाता है। 2005 में जिला पंचायत के चुनाव में उन्होंने फिर से भाग्य आजमाया, लेकिन वो सदस्य पद पर मैदान में उतरे और चुनाव हार गये, उनके सामने अर्जुन यादव की मां चुनाव लड़ रही थी। अर्जुन के पिता तत्कालीन विधायक थे। इसी का असर उनके चुनाव पर पड़ा।''

टिकट की दौड़ में कहीं नहीं थे गिरीश चन्द्र

आज सीएम योगी सरकार में विश्वसनीय राज्यमंत्री के रूप में देखे जाने वाले गिरीश चन्द्र यादव दो दशक से ज्यादा भाजपा में समर्पित रहने के बावजूद भी टिकट की दावेदारी में कभी नहीं रहे, चुनाव खूब लड़वाये। साल 2017 में जब यूपी में चुनावी संग्राम का बिगुल बजा तो भी वो टिकट की लाइन में कहीं नहीं थे। टीडी कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद 2004 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने वाले गिरीश चन्द्र यादव को जब जौनपुर सदर सीट से भाजपा का टिकट मिला तो लोगों को आश्चर्य हुआ था, क्योंकि वर्ष भर से इनका नाम चर्चा में तो दूर चुनावी हलचल की इस दौड़ में शामिल तक नहीं था। पार्टी हाईकमान के निर्देश पर जब वे चुनाव लड़ने मैदान में आए तो नामांकन के समय इनके पास नकद एक लाख 80 हजार रुपए थे, जबकि पत्नी के पास 10 हजार रुपए की धनराशि थी। जेवर के नाम पर 80 ग्राम सोना गिरीश के पास, जबकि उनकी पत्नी के पास 20 ग्राम सोना और 250 ग्राम चांदी थी। विधि व्यवसाय करने वाले भाजपा के इस विधायक के ऊपर 64 हजार रुपये का कर्ज था और इन के पास 5.68 लाख रुपए की चल संपत्ति तो पत्नी के पास 82 हजार रुपए की चल सपत्ति रही।

जीत के बाद मंत्री बनने की सोची भी नहीं,एक फोन से मिली सत्ता

लखनऊ। जौनपुर सदर विस सीट से विधायक बने गिरीश चन्द्र यादव सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। जौनपुर के सरायख्वाजा थाना क्षेत्र के गांव पनियारा उनका पैतृक गांव है। शहर में ख्वाजगी टोला में रहने वाले गिरीश पेशे से वकील हैं और न्यायालय में पै्रक्टिस भी करते रहे है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हुई तो सदर विधानसभा सीट से कई चेहरों के नाम भाजपा के 'कमल' पर उभरते नजर आ रहे थे, इसमें पूर्व विधायक सुरेन्द्र बहादुर सिंह, अनिती सिद्धार्थ, राजेश श्रीवास्तव आदि शामिल थे।

अंतिम समय तक भी गिरीश चन्द्र दावेदारी के फ्रेम में नहीं थे, सदर सीट का जातीय समीकरण देख पार्टी हाईकमान ने गिरीश यादव पर भरोसा जताया और गिरीश चन्द्र यादव ने जनादेश हासिल कर सपा-कांग्रेस गठबंधन की मजबूत दीवार को ढहाकर जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस के सीटिंग विधायक नदीम अहमद को पराजित कर अप्रत्याषित जीत हासिल की। इसी तोहफे से संतुष्ट होकर अपने समर्थकों और परिवारीजनों के साथ जीत का जश्न मनाने में जुटे थे, जगह-जगह उनके स्वागत समारोह हो रहे थे। वहीं भाजपा को यूपी में मिली प्रचंड जीत के बाद लखनऊ में कई बड़े नेताओं की भागदौड़ थी। राज्यमंत्री बनने की फेहरिस्त माफी लंबी होने पर वो यह सोच भी नहीं सकते थे कि यूपी में उनको मंत्रीमंडल में स्थान भी मिल सकता है। राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव की जुबानी हमने उनके राज्यमंत्री बनने का रोचक किस्सा सुना..वो कहते हैं....'मंत्री बनने के लिए कोई लाॅबिंग नहीं की, मैं न तो लखनऊ गया और ना ही दिल्ली जाकर हाईकमान से कोई गुजारिश की। पता था कि वो पहली बार जीते हैं, भाजपा को प्रचंड बहुमत होने के कारण, उनका कहीं नम्बर नहीं आयेगा, अपनी जीत से खुष होकर ही मैं क्षेत्र में अपने समर्थकों के साथ जनता के बीच जाता रहा, ताकि उनका आभार व्यक्त कर सकूं, 11 मार्च से 18 मार्च तक मैं जौनपुर में समर्थकों, मित्रों और परिवार के बीच ही रहा। पहले जीत और फिर अपनी पार्टी की सरकार बनने की ही खुषी मुझे ज्यादा रही। दिल्ली से लखनऊ तक यूपी में सरकार गठन की तैयारी चल रही थी, इसी बीच 19 मार्च को 10 बजे भाजपा कार्यालय में था, तभी माथुर जी का फोन आया....''तुमको मंत्री पद की शपथ लेनी है...तैयारी करो!...इस फोन पर मुझे काफी देर तक विश्वास नहीं हुआ, मैं आश्चर्यचकित था...मुझे भाजपा की नीति पर गर्व हुआ और पता चला कि समर्पित कार्यकर्ता का पार्टी में क्या वजूद है।''

जब पत्नी नहीं देख पाई गिरीश का शपथ ग्रहण समारोह

लखनऊ। आरएसएस से जुड़कर राष्ट्रवाद को समर्पित रहते सार्वजनिक जीवन की शुरुआत के बाद भारतीय जनता पार्टी में राजनीतिक शुरूआत करने वाले गिरीश चंद्र यादव को पहली बार विधायक चुने जाने के बाद योगी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री का ओहदे से नवाजा गया और उनके शपथ लेते ही गिरीश चन्द्र यादव के जौनपुर जनपद के पैतृक गांव समसपुर पनियरिया करंजाकला स्थित पैतृक आवास पर बधाई देने वालों का तांता लग गया, पार्टी समर्थक झूम उठे, लेकिन इस जश्न के माहौल में कुछ अधूरापन उस समय नजर आया, जबकि अपने पति को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्मयंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ राज्यपाल राम नाईक के हाथों राज्यमंत्री की शपथ ग्रहण करते हुए उनकी पत्नी व परिवार टीवी पर नहीं देख पाया।

वर्तमान में सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार में नगर विकास, अभाव एवं सहायत व पुनर्वास विभाग के राज्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे गिरीश चन्द्र यादव सरकार में नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना के साथ मिलकर पीएम मोदी और सीएम योगी के विकासशील मिशन को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। दस जनवरी 1974 को जन्मे गिरीश चन्द्र यादव ने प्राथमिक शिक्षा अपने पैतृक गांव के परिषदीय विद्यालय से पूरी करने के बाद इंटरमीडिएट शिक्षा जमुहाई में स्थित राष्ट्रीय इंटर कालेज से पूरी की। बीएससी, एलएलबी की शिक्षा जौनपुर नगर स्थित वीबीएस पूर्वांचल यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध टीडी पीजी कालेज से पूरी करने के बाद वह भाजपा की सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। गिरीश चंद्र यादव के बचपन का नाम हरिनाथ था। कक्षा पांच में इनका नाम बदलकर गिरीश चंद्र यादव कर दिया गया था। सन् 2000 में वह जिला पंचायत सदस्य चुने गए। जब उनको जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमण्डल में शामिल किया तो वो उस समय तक भाजपा में जिला महामंत्री पद के दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। सरल स्वभाव रखने के कारण अपने समर्थकों और क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल करने वाले गिरीश चन्द्र यादव भाजपा से जुड़े तो बिना कोई महत्वकांक्षा के काम किया और अपनी पार्टी के प्रति शत प्रतिशत समर्पित रहे और पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार में उनका नगर विकास विभाग में राज्यमंत्री बनना शायद उन्हें इसी का ईनाम भी मिला। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश सरकार में बेटे गिरीश चन्द्र यादव को राज्यमंत्री बनाए जाने की खबर उनके किसान पिता सवधू राम यादव व गृहणी माता राजपत्ती देवी को जब घर वालों ने मीडिया से जानकारी मिलने पर दी तो अचानक मिली इस अविस्मरणीय खुशी से उनकी आंखें छलक उठीं। आनन फानन में लोगों ने मिठाई मंगवाकर सभी का मुंह मीठा कराया। यह खबर जंगल में आग की तरह क्षेत्र में फैली और देखते ही देखते उनके घर बधाई देने वालों का तांता लग गया। लोग यह चर्चा करते रहे कि दोपहर तक इस शुभ समाचार की लोगों को भनक तक नहीं लग सकी थी। बड़े भाई शिक्षक श्रीनाथ यादव, छोटे भाई दूधनाथ यादव, चाचा राज बहादुर अपने घर आये लोगों की आवभगत में लगे थे। इनके घर में पत्नी संजू देवी, पुत्र वैभव, पुत्री खुशबू व पूजा, बहन भानुमती देवी, अमिरता देवी, चाची सुमित्रा देवी की खुशियां देखते बन रही थी। इन खुशियों में एक अडंगा भी लगा, जब गिरीश यादव की पत्नी संजू देवी नगर के ढालगर टोला स्थित आवास पर अपने बच्चों के साथ टीवी सेट के सामने पति के शपथ ग्रहण समारोह को देखने के लिए काफी पहले से जमीं थीं, लेकिन जैसे ही उनके पति के शपथ ग्रहण की बारी आई ठीक उसी समय बिजली कट गई। टीवी पर ये ऐतिहासिक पल नहीं देखने के कारण पूरा परिवार मायूस हो गया, कई प्रयास भी विफल हो गये, तो मोबाइल फोन के सहारे उन्होंने पति को राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेते देखा।

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