नई परिवहन नीति के विरोध में निजी स्कूल, बच्चों को लाने-ले जाने की जिम्मेदारी अभिभावकों के कंधों पर डाली

नई परिवहन नीति के विरोध में निजी स्कूल, बच्चों को लाने-ले जाने की जिम्मेदारी अभिभावकों के कंधों पर डाली
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मुजफ्फरनगर। सरकार की नई परिवहन नीति के विरोध में खतौली में संचालित हो रहे सीबीएसई के गोल्डन हार्ट एकेडमी, केके पब्लिक स्कूल, मॉडर्न पब्लिक स्कूल, श्रीराम पब्लिक स्कूल, मेपल्स अकादमी व सैंट मैरी पब्लिक स्कूल के संचालको ने 24 अगस्त से अपने स्कूल की परिवहन सेवाएं बन्द करने का ऐलान किया है। इससे पूर्व मंसूरपुर क्षेत्र के निजी स्कूल एमडीएस, विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, फ्यूचर विजन एकेडमी, लिटिल फ्लावर एकेडमी, द्रोण पब्लिक स्कूल, वेदांता पब्लिक स्कूल, देव इंटर कॉलेज, डीएवी पब्लिक स्कूल, स्प्रिंग डेल पब्लिक स्कूल, वनस्थली पब्लिक स्कूल, रेड रोज पब्लिक स्कूल, एंजन पब्लिक इंटर कॉलेज, जय भारती पब्लिक स्कूल व राज पब्लिक स्कूल के संचालकों ने बैठक आयोजित कर सरकार की नई परिवहन नीति पर विरोध में 23 अगस्त से स्कूल की समस्त परिवहन सेवा बंद करने का निर्णय लिया था। 21 जुलाई को इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसियेशन ने सरकार द्वारा जारी मोटर वाहन नियमावली 2019 26वें संशोधन का विरोध जताया था। इस ऐलान के बाद इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के सामने एक नया संकट आ खड़ा हुआ है।


ज्ञात हो कि विगत दिनों ने सरकार के निर्देश पर प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए नई परिवहन नीति को लागू कराने का बीडा उठाया था। इसके तहत नगर के स्कूल संचालकों ने सभी अभिभावकों से अपने बच्चों को स्वयं स्कूल लाने व ले जाने की व्यवस्था करने को कहा है, इससे अभिभावको में बैचेनी है।

इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसियेशन ने 21 जुलाई को आयोजित प्रेसवार्ता में सरकार द्वारा मोटर वाहन नियमावली 2019 (26वें संशोधन) के विरोध में कहा था कि जनपद के लगभग 85 प्रतिशत विद्यालय ग्रामीण क्षेत्रो में संचालित है, जिन्होंने न्यूनतम परिवहन शुल्क के साथ शत-प्रतिशत स्कूल परिवहन व्यवस्था को लागू कर रखा है। इंडीपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष राजकुमार वर्मा का कहना है कि कोई स्कूल संचालक अपनी तरफ से लापरवाही नहीं करता, ऐसे में मुकदमा दर्ज कराने का प्रावधान ठीक नहीं है। बसों में सभी सीटों पर बेल्ट नहीं आती है और अगर बस के स्ट्रक्चर से छेड़छाड़ करेंगे तो बीमा क्लेम नहीं होगा। महिला सहायक और शिक्षक का वाहन में होने का मानक भी अव्यवहारिक है। पुरानी नीति में स्कूली वाहन में क्षमता से डेढ़ गुना बच्चे बैठाने की अनुमति थी। इसमें कोई दिक्कत नहीं होती। अगर सभी मानकों का पालन कराया जाएगा तो ट्रांसपोर्ट शुल्क कईं गुना तक बढ़ जाएगा और अभिभावकों के साथ स्कूल प्रशासन को भी दिक्कत होगी। उन्होंने कहा था कि अव्यवहारिक मानकों को हटा लिया जाए तो ट्रांसपोर्ट शुल्क बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन ने सरकार से छात्र-छात्राओं के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा दिलाने की मांग भी की है।


बता दें कि नई परिवहन यान नियमावली में के अनुसार स्कूली वाहनों में जीपीएस, गति सीमा यंत्र (स्पीड गर्वनर) और सीसीटीवी अनिवार्य होगा। ये वाहन 40 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक गति से नहीं दौड़ेंगे। स्कूल प्रबंधन को चालक-परिचालक का चरित्र-प्रमाण पत्र भी लेना होगा। स्कूली वाहन में महिला-पुरुष सहायक के साथ एक शिक्षक का होना भी अनिवार्य कर दिया गया है। हर सीट पर सुरक्षा की दृष्टि से बेल्ट भी लगाने के निर्देश दिए गए हैं, जिससे कोई क्षमता से अधिक बच्चों को चाहकर भी बैठा न सके। अगर लापरवाही से कोई दुर्घटना होती है तो सीधे तौर पर प्रधानाचार्य व प्रबंधक को जिम्मेदार माना जाएगा और इसमें मुकदमा दर्ज कराने का प्रावधान भी है। 12 जून को स्कूलों को इस संबंध में तीन माह यानी 12 सितंबर तक नई परिवहन नीति के अनुसार व्यवस्था करने का अवसर दिया था।

जानकारों की मानें तो कुछ स्कूली वाहनों में अधिक बच्चे आ सकें, इसके लिए सीट निकालकर लकड़ी के फट्टे लगाए हुए हैं। इनमें बच्चों को भूसे की तरह ठूस दिया जाता है। वाहनों की फिटनेस के मामले में भी घोर अनियमितता बरती जाती है, यहां तक कुछ स्कूलों वाहनों में तो अवैध एलपीजी किट तक लगी होती है।

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