डवलपमेंट के साथ अब अपराधियों पर डीएम का शिकंजा, जिला जज-एसएसपी के साथ मिलकर राजीव शर्मा ने किया यूपी में पहली बार क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन पर मंथन

डवलपमेंट के साथ अब अपराधियों पर डीएम का शिकंजा, जिला जज-एसएसपी के साथ मिलकर राजीव शर्मा ने किया यूपी में पहली बार क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन पर मंथन
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मुजफ्फरनगर। जनपद मुजफ्फरनगर में नित्य ही कमाल की कलेक्टरी करने वाले आईएएस राजीव शर्मा ने एक बार फिर से ना सिर्फ अपने अनुभव से 'खाकी' को मुकदमों की पैरोकारों में पेश आने वाली दिक्कतों से निकलने के लिए कानून की रोशनी में ही रास्ते सुझाने का काम किया, बल्कि उनके द्वारा क्रिमीनल एडमिनिस्ट्रेशन को सशक्त बनाने की अनूठी पहल भी की। ऐसा प्रयास शायद ही जनपद में पहले कभी किसी कलेक्टर के द्वारा किया गया हो। अगर किसी आईएएस की कार्यप्रणाली की बात करें तो अक्सर यही देखा जाता है कि जिलों में तैनात डीएम शासन की विकास और जनकल्याणकारी योजनाओं एवं परियोजनाओं को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं, यदि अपराध नियंत्रण की बात आये तो त्यौहारों के मौकों पर शांति समिति की बैठक या फिर अभियोजन विभाग की समीक्षा तक ये दायित्व सीमित रहता है, लेकिन आईएएस राजीव शर्मा की कार्यप्रणाली इस परम्परा से अलग है। उनके द्वारा जहां शासन की योजनाओं का सकारात्मक कार्यान्वयन कराने में सफलता अर्जित की गयी, तो वो कानून व्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ ही अपराधियों को सजा दिलाने में भी काफी सफल नजर आते हैं। अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए उनके द्वारा जिला जज और एसएसपी के साथ मिलकर एक अभिनव प्रयोग कर विवेचनाओं को सशक्त बनाने की पहल की है। इसक प्रयास का असर भविष्य में बेहतर परिणाम के रूप में सामने आयेगा।



जिलाधिकारी राजीव शर्मा यहां पर जो भी कार्य कर रहे हैं, वो प्रशासनिक क्षेत्र में उनके अनुभव और पकड़ को तो दर्शाता ही है, साथ ही इस जनपद के लिए एक अभिनव प्रयोग भी बन रहा है। उनके द्वारा बाढ़ प्रबन्धन के लिए सोलानी नदी की खुदाई, बेसिक शिक्षा विभाग में ड्रेस वितरण से स्वयं सहायता समूह को जोड़ना, पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधारोपण, डीएम आवास पर हाई डेंटिसिटी बागवानी, हौम्पयोपेथी ज्वर रोधी दवा पिलाओ अभियान के साथ ही हाल ही में सीएम सामूहिक विवाह योजना में 1151 कन्याओं का विवाह कराने का रिकाॅर्ड कायम अपनी कार्यकुशलता को साबित किया है। इसके अलावा मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम में भी नये वोटर बनाये जाने के लिए उनके द्वारा एक कीर्तिमान स्थापित करते हुए यूपी में मुजफ्फरनगर को नवम्बर वन बनाने का काम किया। उनके द्वारा 'गुड पुलिसिंग' के लिए जो कदम उठाया, वो भी एक अभिनव प्रयास बन गया।

जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने क्रिमीनल एडमिनिस्ट्रेशन को और सशक्त एवं सक्षम बनाये जाने के उद्देश्य से ''क्राइम एण्ड क्रिमीनल एडमिनिस्ट्रेशन'' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जनपद में किसी कलेक्टर के द्वारा ऐसी कार्यशाला के आयोजन का कदम पहली बार उठाया गया। अभी तक जिलों में जिलाधिकारियों के द्वारा अभियोजन मामलों की प्रगति को लेकर समीक्षा की जाती रही है, लेकिन क्रिमीनल एडमिनिस्ट्रेशन को सशक्त बनाने के लिए ऐसा प्रयोग शायद ही किसी जिलाधिकारी के द्वारा किया गया हो। कलेक्ट्रेट स्थित जिला पंचायत के चौधरी चरण सिंह सभागार में जिलाधिकारी राजीव शर्मा की पहल पर जिला जज एस.के. पचैरी की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यशाला में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह, पुलिस अधीक्षक नगर ओमवीर सिंह के अलावा सभी पुलिस क्षेत्राधिकारी, एसएचओ, प्रत्येक थाने से दो-दो विवेचना अधिकारी, पेशी पैरोकार, डीजीसी (फौजदारी), एडीजीसी (फौजदारी), एसपीओ, अपर जिलाधिकारी प्रशासन अमित सिंह और सभी उप जिलाधिकारी उपस्थित रहे।

इस कार्यशाला में जिलाधिकारी राजीव शर्मा के द्वारा घटनाओं एवं मुकदमों की विवेचनाओं के समय आने वाली समस्याओं एवं बिन्दुओं को उन्हीं के माध्यम से ज्ञात किया गया और उनके सवालों के माध्यम से उजागर हुई विवेचनाओं की समस्याओं को समझते हुए उनका निराकरण कानून के दायरे में ही किस प्रकार से हो सकता है, इस पर जवाब दिये गये। विवेचना अधिकारियों की शंकाओं के समाधान के लिए जिलाधिकारी राजीव शर्मा के साथ जिला जज, एसएसपी व अन्य अधिकारियों ने प्रश्नोत्तर किये।

इस कार्यशाला में मुख्य रूप से पुलिस के सामने पेश आने वाली व्यवहारिक दिक्कतों को ही विवेचकों के द्वारा डीएम व अन्य अफसरों के सामने सवालों के रूप में रखा। ज्यादातर प्रश्नों का समाधान जिलाधिकारी राजीव शर्मा के द्वारा बड़ी सूझबूझ से दिया। इस कार्यशाला में जो सवाल प्रमुख रूप से विवेचकों ने उठाये और उन पर जवाब मांगा उनमें अधिकांश ऐसे रहे, जो हमारे सामने भी पेश आते हैं। इन सवालों में कई ऐसे भी बिन्दू रहे जिनको लेकर विवेचक के सामने काफी चुनौती भी पेश आती है। इन बिन्दुओं में से प्रमुख बिन्दुओं में जो सवाल विवेचकों ने उठाये, उनमें....

1. फर्जी मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर विवेचक क्या करे?

2. ब्लात्कार के मुकदमे में यदि कोई मेडिकल अफसर अपनी रिपोर्ट में ओपिनियन ना दे तो क्या करें?

3. मेडिकल एग्जामिनेशन से पहले ही पीड़ित द्वारा ये बता दिया जाये कि चोट कहां कहां पर है, तो कैसे रिपोर्ट करें?

4. किसी भी घटना को दर्शाने के लिए नक्शा नजरी किस तरह से बनाया जाये, इसमें क्या क्या सावधानी बरतें?

5. समाई साक्षी की क्या महत्ता है और पंचनामा भरते समय क्या सावधानी बरती जायें?

6. केस डायरी में में जब विरोधाभासी साक्ष्य आ जाये तो उनको कैसे समाहित करें?

7. विवेचना को पूरी करने के लिए कितनी समय सीमा कानून रूप से हो, अगर समय सीमा में विवेचना न हो सके तो विवेचक क्या करे?

8. धारा 164 के अन्तर्गत किसी पीड़ित के बयान में मेडिकोलीगल रिपोर्ट आवश्यक है या नहीं तथा धारा 164 के बयान से विवेचक बाध्य है या नहीं?

9. यदि कोई पीड़ित महिला है तो उसकी कस्टडी कहां पर दें और इसमें क्या सावधानी बरती जाये?

10. एफआईआर पर क्रास एफआईआर दर्ज होने जैसे मामलों में क्या किया जाये?

11. मुकदमों की सशक्त पैरवी के लिए घटना के गवाह कहां से कैसे जुटाये जायें?

12. होस्टीलिटी (रंजिशन घटनाओं) को कैसे रोका जाये, किसी एफआईआर के बाद मुल्जिम विदेश चला जाये तो उसकी गिरफ्तारी कैसे की जाये?

13. न्यायालयों से अपराधियों के लिए पुलिस रिमांड देने में इतनी समस्या क्यों और इनका समाधान कैसे हो?

14. चार्जशीट दाखिल होने के बाद मुकदमे से जुड़े और तथ्य आ जाये और पता चले कि मुकदमा फेक है तो इसको खारिज करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनायी जाये?

15. धारा 161 के अन्तर्गत बयान को एसएचओ कैसे वेरिफाई करे कि ये दिये गये हैं या नहीं?

16. मेडिकोलीगल रिपोर्ट मेडिकल अफसर के द्वारा कैपिटल लेटर में क्यों नहीं लिखी जाती है?

17. डीएनए सैम्पल कहां और कैसे स्टोर करें, धारा 156 (3) के अन्तर्गत केस में पुलिस द्वारा जांच आख्या को कोर्ट क्यों नहीं मानता?

18. 7 साल से कम सजा की प्रावधान वाली धाराओं में मुल्जिम की गिरफ्तारी नहीं हो सकती, लेकिन धारा 498ए में गिरफ्तारी का प्रावधान है, इस विरोधाभास पर क्या करें?

19. रिकवरी जहां पर सम्भव नहीं, तो वहां पर न्यायिक आयोग क्या करें?

20. डिस्कवरी वर्सेस रिकवरी पर विवाद अक्सर सामने आते हैं, ऐसे में क्या किया जाये?

21. मृत्यु पूर्व बयान में क्या करें, आॅनलाइन और एटीएम फ्राॅड के मामलों पर क्या करें?

22. 25 आम्र्स एक्ट के केस में किन बिन्दुओं पर ध्यान रखें, तमंचे से गोली चलने पर उसे दूसरी घटनाओं में दर्शाने की कड़ी को कैसे जोड़ा जाये?

इसी तरह के अन्य अनेक सवालों को कार्यशाला में आये विवेचकों ने जिलाधिकारी राजीव शर्मा के साथ ही अन्य अफसरों के सामने उठाया। विवेचकों के एक एक सवाल के जवाब का रास्ता जिलाधिकारी ने कानून के दायरे से ही निकाला। इस कार्यशाला से विवेचकों को 'गुड पुलिसिंग' को और सक्षम बनाने का अवसर भी मिला। डीएम राजीव शर्मा के हर जवाब से वो संतुष्ट नजर आये।

बता दें कि जानकारी के अभाव में कई बार पुलिस के हाथ से कई मुकदमे निकल जाते हैं। सही और सटीक ज्ञान न होने के कारण ही विवेचना भी कमजोर पड़ती है। अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि पुलिस अपने ऊपर हुए हमलों को लेकर ही धारा 307 के मुकदमे का बचाव न्यायालय में नहीं कर पाती है। डीएम राजीव शर्मा इस कार्यशाला के आयोजन को लेकर कहते हैं, ''ऐसे प्रयासों से मुकदमों की विवेचनाओं की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार होगा। इसके परिणामस्वरूप अभियोजक को अभियुक्तों की दोषसिद्धि कराने में सहायता भी प्राप्त होगी। उनका कहना है कि विवेचना को पूरा करने के लिए कानूनन 24 घंटे की समय सीमा तय है और यदि अच्छी जानकारी हो तो 75 प्रतिशत मामलों में विवेचना का काम सीआरपीसी के अन्तर्गत तय की गयी 24 घंटे की समय सीमा में ही पूरा हो जाता है। घटना की कहानी का पता इतनी अवधि में चल जाता है। विवेचक यदि 24 घंटे में विवेचना का काम पूरा कर लें तो पुलिस घटनाओं के बाद अनावश्यक रूप से बनने वाले सामाजिक, राजनीतिक दबाव से मुक्त होगी, क्योंकि विवेचना में देरी के कारण ही मामले बिगड़ने लगते हैं। वो कहते हैं कि सही जानकारी न होने पर पुलिस विवेचना में कई झोल करती है, फरद बरामदगी में भी चूक होती है। इसका खामियाजा न्यायालय में भुगतना पड़ता है और केस कमजोर पड़ जाता है। डीएम राजीव शर्मा कहते हैं कि अकेले पुलिस अफसरों के सहारे ही क्राइम कंट्रोल सम्भव नहीं है, जिलों में कलेक्टर भी यदि एक्टिव होकर आगे बढ़ें तो बेहतर से बेहतर रिजल्ट दिया जा सकता है। वो कहते हैं कि हर सप्ताह ऐसी कार्यशाला होती रहें तो पुलिसिंग बेहतर होगी और अपराध मुक्त समाज का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।

श्रीमान जिलाधिकारी राजीव शर्मा, जिला जज एस.के. पचैरी एवं एसएसपी सुधीर कुमार सिंह के द्वारा विवेचना को सशक्त और सक्षम बनाने के लिए की गयी इस कार्यशाला पर एसपी सिटी ओमवीर सिंह कहते हैं, ''ये एक अच्छा प्रयास है, इस कार्यशाला से विवेचना के प्रति लापरवाही के मामलों में कमी आयेगी। विवेचक को मुकदमों में आरोपियों को सजा दिलाने के लिए विवेचना के दौरान कई चुनौतियों से गुजरना पड़ता है, कुछ ऐसे सवाल भी होते हैं, जो विवेचना को उलझा देते हैं। कार्यशाला में आला अफसरों के द्वारा विवेचकों का मार्गदर्शन किया गया, जिससे उनको काफी कुछ सीखने को मिला और वो इस जानकारी के साथ अब बेहतर ढंग से आरोपियों को सजा दिलाने के लिए विवेचना कर पायेंगे। इस कार्यशाला के बाद ये तय किया गया है कि प्रत्येक मामले में विवेचक अपनी चार्जशीट सीधे अदालत में दाखिल करने से पूर्व परीक्षण के लिए पीओ ब्रांच को उपलब्ध करायेंगे, ताकि अदालत में जाने से पहले ही विवेचना की खामियों को दूर किया जा सके। अक्सर ये देखा जाता है कि चार्जशीट के अदालत में पहुंचने के बाद कई खामियां सामने आती हैं और इसका लाभ आरोपियों के द्वारा उठाकर सजा से बचने के रास्ते तलाश कर लिये जाते हैं, निश्चित तौर पर इस कार्यशाला का भविष्य में काफी लाभ मिलेगा।

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