आसान नहीं होगा ममता दीदी को सत्ता से बाहर करना

आसान नहीं होगा ममता दीदी को सत्ता से बाहर करना

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में सियासत की जबर्दस्त किलेबंदी हो रही है। ऐसे में तृणमूल कांगे्रस की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपनी सेना को मजबूत करना चाहती हैं। उनको पता है कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में उनका मुकाबला भाजपा से ही होगा। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री और राज्यपाल धनखड़ भी हमलावर हो गये हैं। पीएम मोदी ने तो कोलकाता में एक दुर्गा पूजा पंडाल का उद्घाटन भी किया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। ऐसे में ममता बनर्जी को सिर्फ कांग्रेस के भरोसे नहीं रह सकतीं। उन्होंने दार्जिलिंग के विद्रोही नेता बिमल गुरुंग को अपने साथ जोड़ा है। गोरखा आंदोलन के प्रमुख नेता रहे बिमल गुरुंग अब तक भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से जुड़े थे। दार्जिलिंग की 13 विधानसभा सीटों पर उनका कब्जा है। इसलिए गुरुंग के साथ आने से भाजपा के लिए अब ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर करना आसान नहीं रहेगा।

पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में चुनाव से पहले ममता बनर्जी सरकार को बड़ा फायदा और बीजेपी को गहरा धक्का लगा है। इसका कारण है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख बिमल गुरुंग ने बीजेपी से किनारा कर लिया है। गुरुंग ने सीधे राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है। वहीं, टीएमसी ने भी बिमल गुरुंग के एनडीए को छोड़ने के फैसले का स्वागत किया है। अब ममता सरकार बिमल के बल पर दार्जलिंग और बंगाल में अपना कितना प्रभाव छोड़ेंगी यह तो भविष्य की बताएगा।

तीन साल से फरार चल रहे जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के प्रमुख बिमल गुरुंग गोरखा वर्तमान में दार्जिलिंग में 13 विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि आगामी चुनावों में बीजेपी का टीएमसी से टकराना आसान नहीं होगा। क्योंकि जीजेएम के बीजेपी को सपोर्ट करने के दौरान टीएमसी के लिए साल 2009 से चुनौतियां कम नहीं रही थी। इधर, इस उठापटक को कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे एक चमत्कार और राजनीतिक तख्तापलटश् कहना शुरू कर दिया है।

मोर्चा ने 2011 और 2016 के राज्य चुनावों में तृणमूल के साथ गठबंधन किया था। गोरखालैंड को अलग राज्य बनाने के पक्षकारों ने टीएमसी और जीजेएम दोनों के पारस्परिक लाभ के लिए काम किया और भाजपा को छोड़ दिया था, लेकिन कड़े संघर्षों के बाद भी गोरखालैंड अलग राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं कर सका था। गोरखालैंड, भारत के अन्दर एक प्रस्तावित राज्य का नाम है, जिसे दार्जीलिंग और उसके आस-पास के भारतीय गोरखा बहुल क्षेत्रों (जो मुख्यतः पश्चिम बंगाल में हैं) को मिलाकर बनाने की मांग होती रहती है।

ममता सरकार ने उत्तरी बंगाल के चाय बागान के श्रमिकों के लिए किफायती आवास का निर्माण करने के लिए इस साल फरवरी में चा सुंदरी योजना शुरू की है। क्योंकि ममता बनर्जी की नजर बीजेपी द्वारा जीते गए क्षेत्रों पर टिकी हुई है। ममता को गुरुंग के राजनीतिक चरित्र को जनता के सामने पेश करने में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।ं गोरखालैंड राज्य की मांग के आंदोलन में कथित तौर पर हिस्सा लेने के लिए गुरुंग के खिलाफ 150 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं और वह साल 2017 से फरार चल रहे थे। बिमल गुरुंग ने अपने राजनीतिक चरित्र पर सफाई देने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा, मैं अपराधी नहीं हूं और न तो मैं आतंकवादी हूं और न ही राष्ट्र विरोधी। मैं एक राजनीतिक नेता हूं, और उन मामलों को राजनीतिक कारणों से मुझ पर थोपा गया है, मैं उन मामलों का राजनीतिक समाधान चाहता हूं।

बता दें कि जीजेएम भी पार्टी में गुटबाजी से जूझ रही है और पार्टी के नेताओं में तालमेल बैठाना गुरुंग के लिए आसान नहीं लग रहा है। वहीं, दुर्गा पूजा से पहले गुरुंग की वापसी ममता के लिए घाटे का सौदा भी हो सकती है। अब ममता सरकार पर यह पूरी तरह से निर्भर है कि जीजेएम में चल रही गुटबाजी और गुरंग की छवि को जनता के सामने कैसे पेश करना है। क्योंकि यह बड़ा मुश्किल प्रस्ताव है, लेकिन टीएमसी के पास बीजेपी को डुबोने के लिए और कोई अतिरिक्त चारा भी तो नहीं है। वहीं, गुरुंग भी राजनीति में अपनी वापसी के लिए बेताब हैं।

ममता बनर्जी के सामने कई दिक्कतें हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच उस समय वाकयुद्ध शुरू हो गया, जब राज्यपाल ने राज्य पुलिस पर राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगाया, जिसके जवाब में बनर्जी ने कहा कि कुछ लोग निहित राजनीतिक हितों के लिए पुलिस को बदनाम कर रहे हैं।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने एक व्यक्ति की हिरासत में हुई मौत के मुद्दे को उठाते हुए आरोप लगाया कि राज्य की राजनीतिक रूप से प्रेरित पुलिस शासन के हर क्षेत्र में दखल दे रही है। भाजपा का दावा है कि वह व्यक्ति उसका कार्यकर्ता था। धनखड़ ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लिखे पत्र में कहा कि पूर्वी मेदिनीपुर के कनकपुर गांव के निवासी मदन गोराई की मौत हिरासत में हुए अमानवीय अत्याचार, उत्पीड़न और मौत की एक और घटना है।

उन्होंने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं राज्य की छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं। धनखड़ ने कहा कि यह खुला रहस्य है कि राजनीतिक रूप से प्रेरित पुलिस शासन के हर क्षेत्र में दखल दे रही है और यह पुलिस की आदत बन गई है। गोराई को अपहरण के एक मामले में 26 सितंबर को पूर्वी मेदिनीपुर के पताशपुर में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने कहा है कि वह उसकी नहीं, बल्कि न्यायिक हिरासत में था जबकि भाजपा कह रही है कि उसे पुलिस हिरासत में रखा गया था।

राज्यपाल धनखड़ ने मुख्यमंत्री को पत्र में लिखा, यह सही समय है कि आप अपनी संवैधानिक शपथ को निभाएं, कानून का शासन लागू करें, राज्य में लोकतांत्रिक शासन सुनिश्चित करें और पुलिस एवं प्रशासन को 'राजनीतिक रूप से तटस्थ और जवाबदेह बनाएं। इसके बाद, बनर्जी ने किसी का नाम लिए बगैर कहा कि राज्य पुलिस और प्रशासन संकट से निपटने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए उन्हें बदनाम कर रहे हैं। ममता बनर्जी ने स्पष्ट रूप से भाजपा नेताओं का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया है कि राज्य पुलिस सरकार के साथ मिलकर भगवा दल के नेताओं की अप्राकृतिक मौत के हालिया मामलों के सबूत दबाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, ''कुछ लोग केवल पुलिस बल और राज्य पर दोषारोपण करने और उन्हें नीचा दिखाने में विश्वास करते हैं। इस प्रकार ममता बनर्जी भाजपा को टक्कर देने का ही प्रयास कर रही है। (केशव कांत कटारा-हिन्दुस्ताान समाचार फीचर सेवा)

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